नई दिल्ली। इन बच्चों की उम्र अभी खेलने-कूदने की है, मगर जो कारनामे उन्होंने किए हैं वो बड़े-बड़े नहीं कर पाते। अपनी जान को दांव पर लगाकर दूसरों को बचाना सबके बस की बात नहीं। बहुत लोग मूकदर्शक बने रहते हैं, मगर ये बच्चे नहीं। गणतंत्र दिवस से पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुल 32 बच्चों को राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से नवाजा। इनमें से तीन को बहादुरी के लिए सम्मान मिला है। वहीं इस मौके पर दरभंगा की ‘साइकिल गर्ल’ को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार (Rashtriya Bal Puraskar) से सम्मानित किया गया। प्रधानमंत्री वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के जरिए राष्ट्रीय बाल पुरस्कार पाने वालों से मुखातिब भी हुए।
इस दौरान पीएम मोदी ने बाल पुरस्कार विजेता सभी बच्चों को बधाई देते हुए कहा कि आपकी तरह मैं भी आपसे मिलने का इंतजार कर रहा था, लेकिन कोरोना की वजह से हमारी वर्चुअल मुलाकात हो रही है। बता दें कि 63 सालों में पहली बार है जब बहादुर बच्चे गणतंत्र दिवस परेड (Republic Day Parade) का हिस्सा नहीं होंगे। 1957 से यह सिलसिला लगातार चल रहा था, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण इस साल राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार प्राप्त करने वाले बच्चे राजपथ पर नहीं दिखेंगे।
पीएम मोदी ने कहा कि कोरोना ने निश्चित तौर पर सभी को प्रभावित किया है। लेकिन एक बात मैंने नोट की है कि देश के बच्चे, देश की भावी पीढ़ी ने इस महामारी से मुकाबला करने में बहुत भूमिका निभाई है। साबुन से 20 सेकेंड हाथ धुलना हो ये बात बच्चों ने सबसे पहले पकड़ी। उन्होंने कहा कि आपने जो काम किया है, आपको जो पुरस्कार मिला है, वो इसलिए भी खास है कि आपने ये सब कोरोना काल में किया है। इतनी कम उम्र में आपके द्वारा किए काम हैरान करने वाले हैं। आइए आपको बताते हैं कि बहादुरी के लिए सम्मान पाने वाले ये बच्चे कौन हैं और इन्होंने क्या किया है
किस श्रेणी में किसको मिला पुरस्कार
सरकार असाधारण योग्यता और उत्कृष्ट उपलब्धियों वाले बच्चों को यह पुरस्कार प्रदान करती है। इस बार ‘बाल शक्ति पुरस्कार’ की विभिन्न श्रेणियों के तहत देशभर के 32 बच्चों को राष्ट्रीय बाल पुरस्कार 2021 दिया गया है। इसमें कला और संस्कृति के क्षेत्र में 7 पुरस्कार दिए गए हैं, नौ पुरस्कार इनोवेशन के लिए दिए गए हैं और पांच शैक्षिक उपलब्धियों के लिए, सात बच्चों को स्पोर्ट्स कैटेगरी, तीन बच्चों को बहादुरी के लिए और एक बच्चे को समाज सेवा के क्षेत्र में उनके प्रयासों के लिए सम्मानित किया गया है।
कामेश्वर जगन्नाथ वाघमारे ने दो बच्चों को डूबने से बचाया
कामेश्वर जगन्नाथ वाघमारे उन बच्चों के लिए देवदूत बनकर आए थे जो नदी में डूब रहे थे। हुआ यूं कि एक दिन कंधार तालुका में घोडा गांव के पास बहने वाली नदी में तीन बच्चे नहा रहे थे। बहाव में फंसकर तीनों डूबने लगे। कामेश्वर उधर से गुजर रहे थे। उन्होंने जैसे ही बच्चों को डूबते देखा, एक पल न सोचा और नदी में छलांग लगा दी। दो बच्चों को बचाने में वह कामयाब रहे मगर तीसरे ने दम तोड़ दिया। इस बात का मलाल कामेश्वर को आज भी है। उन्हें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी सम्मानित कर चुके हैं।
कुंवर दिव्यांश सिंह ने जान पर खेल बहन की जिंदगी बचाई
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में रहने वाले कुंवर दिव्यांश सिंह की उम्र महज 13 साल है। मगर उन्होंने जो किया, उसकी हिम्मत बड़े-बड़े नहीं दिखा पाते। वह एक दिन स्कूल से वापस लौट रहे थे। साथ में उनकी छोटी बहन और कुछ बच्चे और थे। एक सांड ने उन सबपर हमला कर दिया। छोटी बहन को फंसा देख दिव्यांश ने अपने बैग को हथियार बनाया और सांड से भिड़ गए। आखिर में वह सांड को वहां से भगाने में कामयाब रहे। दिव्यांश को उनके इस कारनामे के लिए प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार मिले। इस साल उन्हें राष्ट्रीय बाल पुरस्कार में ‘बहादुरी’ कैटेगरी में सम्मान मिला है।
ज्योति कुमारी ने बीमार पिता को बिठाकर 1200KM चलाई साइकल
कोरोना वायरस के चलते पूरे देश में जब लॉकडाउन लगा, उस वक्त 15 साल की ज्योति गुरुग्राम में रहती थीं। पिता बीमार थे। यहां काम-धंधे का कुछ इंतजाम था नहीं तो भूखों मरने की नौबत आ गई। दरभंगा की ‘साइकिल गर्ल’ ज्योति ने हिम्मत दिखाई। बीमार पिता को पीछे बिठाया और एक सेकेंड-हैंड साइकल के पेडल मारने शुरू किए। मंजिल थी बिहार का दरभंगा जिला। ज्योति लगातार सात दिन तक साइकल चलाती रहीं। बीच-बीच में कहीं आराम करतीं। करीब 1,200 किलोमीटर का यह सफर जब पूरा हुआ तो ज्योति पूरे देश की मीडिया में छा चुकी थीं। ज्योति की तारीफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ने भी की थी।