नई दिल्ली। आपमें से लगभग हर किसी ने कभी न कभी रेलगाड़ी (Train journey) से यात्रा जरूर की होगी। उस दौरान कुछ खटके न खटके, बदबूदार टायलेट (Stinky toilet) ने जरूर ध्यान खींचा होगा। टॉयलेट (Toilet) की इस बदबू से निजात पाने के लिए रेलवे बोर्ड ने अब अपने सभी जर्मन तकनीक वाले (LHB) डिब्बों में हवाई जहाज की तरह टॉयलेट लगवाने का फैसला किया है। इसकी शुरूआत हो चुकी है और फिलहाल इसका परीक्षण नई दिल्ली से कालका के बीच चलने वाली शताब्दी एक्सप्रेस में किया जा रहा है।
रेलवे का कहना है कि यात्रा की कठिनाइयों को दूर करने पर लगातार काम हो रहा है। इसी क्रम में करीब 1]500 करोड़ रुपये की लागत से एलएचबी तकनीक वाले सभी एसी डिब्बों (LHB Coaches) में हवाई जहाज की तरह बायो वैक्यूम टॉयलेट (Bio Vacume Toilet) लगाया जाएगा। इसका पायलट परीक्षण किया जा रहा है, जिसे यात्रियों ने काफी सराहा है। अब इसका विस्तार सभी ट्रेनों में किया जाएगा।
रेलवे के एक अधिकारी का कहना है कि चाहे एसी डिब्बा हो या जनरल डिब्बा, टॉयलेट की बदबू हर जगह परेशानी का सबब है। इससे छुटकारा पाने के लिए इन डिब्बों में बायो वैक्यूम टायलेट लगाने की कवायद चल रही है। इसमें वैक्यूम प्रेसर से गंदगी को टैंक में खींच लिया जाता है। जब कहीं गंदगी का अंश ही नहीं बचेगा तो फिर बदबू के फैलने का कोई डर नहीं। इस प्रक्रिया में पानी की बहुत कम आवश्यकता होती है, इसलिए पानी की भी बचत होगी।
शुरूआत में प्रीमियम ट्रेनों में यह सुविधा
अधिकारी का कहना है कि शुरूआत में बायो-वैक्यूम टॉयलेट की सुविधा राजधानी, शताब्दी और दुरंतो सहित सभी प्रीमियम ट्रेनों में मिलेगी। तेजस और वंदे भारत एक्सप्रेस जैसी प्रीमियम ट्रेन में तो यह शुरू से ही है। अब नई दिल्ली और कालका के बीच चलने वाली शताब्दी एक्सप्रेस में भी लगाई जा चुकी है। अब, एलएचबी तकनीकी वाले सभी एसी डिब्बों में इसे लगाया जाएगा। उसके बाद एलएचबी तकनीक वाले सभी स्लीपर और जनरल डिब्बों में भी यही सिस्टम लगा दिया जाएगा।
लॉकडाउन में ही बदले जा रहे हैं
उत्तर भारत के तीन जोन, उत्तर रेलवे, उत्तर मध्य रेलवे और पूर्वोत्तर रेलवे इस दिशा में साथ मिल कर काम कर रहे हैं। इन्होंने लॉकडाउन के दौरान ही एलएचबी तकनीक वाले 600 डिब्बों में से परंपरागत टॉयलेट हटा कर बॉयो वैक्यूम टायलेट फिट कर दिया। इसी के साथ इस समय 714 एसी डिब्बों में भी इसी तरह के टॉयलेट लगाने की प्रक्रिया चल रही है। इसके भी शीघ्र ही पूरी होने की संभावना है।
एक डिब्बे में 13 लाख का खर्च
परंपरागत टॉयलेट को बायो वैक्यूम टायलेट में बदलने में एक टॉयलेट पर करीब सवा तीन लाख रुपये का खर्च आ रहा है। एक डिब्बा में अमूमन 4 टॉयलेट होता है। मतलब कि एक डिब्बे पर करीब 13 लाख रुपये का खर्च आ रहा है। इस समय देश भर में करीब 15,000 एलएचबी कोच हैं। इसलिए फैसला किया गया है कि एलएचबी तकनीक वाले सभी डिब्बों में क्रमिक रूप से ऐसे टॉयलेट लगाये जाएंगे। शुरूआत एसी डिब्बों से हुई है।
आने वाला है 1500 करोड़ रुपये का टेंडर
अधिकारी का कहना है कि बायो वैक्यूम टायलेट (Bio Vacuum Toilet ) के लिए के लिए शीघ्र ही 1500 करोड़ रुपये का टेंडर आने वाला है। अभी इसे अंतिम रूप देने की प्रक्रिया चल रही है। इसमें कहा जाएगा कि चाहे विदेशी ही कंपनी (Foreign Companies) क्यों नहीं हो, उसे टॉयलेट यहीं भारत में ही बनाना होगा। इससे मेक इन इंडिया (Make In India) अभियान को बढ़ावा मिलेगा।