नई दिल्ली। निर्भया गैंगरेप और हत्या मामले में गुनाहगार मुकेश कुमार सिंह ने अब अपने पुराने वकील पर ही आरोप मढ़ दिए हैं और कहा है कि उसे नहीं बताया गया कि क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करने के लिए तीन साल तक का वक्त होता है। ऐसे में तमाम कार्रवाई रद्द की जाए और उसे क्यूरेटिव पिटिशन और अन्य कानूनी उपचार के इस्तेमाल की इजाजत दी जाए। अबकी बार मुकेश ने अपने वकील एमएल शर्मा के जरिये सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
‘मुझे मौलिक अधिकार से वंचित किया गया’
मुकेश के वकील एमएल शर्मा की ओर से अर्जी दाखिल कर भारत सरकार, दिल्ली सरकार और एमिकस क्यूरी (कोर्ट सलाहकार) को प्रतिवादी बनाया गया है। अर्जी में कहा गया है कि उसे साजिश का शिकार बनाया गया है। उसे नहीं बताया गया कि लिमिटेशन एक्ट के तहत क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करने के लिए तीन साल तक का वक्त होता है। इस तरह देखा जाए तो उसे उसके मौलिक अधिकार से वंचित किया गया है। इसी कारण रिट दाखिल की गई है।
तीन साल तक दाखिल हो सकती है क्यूरेटिव पिटिशन
एमएल शर्मा की ओर से दाखिल अर्जी में कहा गया है कि लिमिटेशन एक्ट की धारा-137 में याचिका दायर करने की समय सीमा तय है। साथ ही कानूनी प्रावधान है कि, जिसमें याचिका दायर करने की समय सीमा तय नहीं है। उसमें तीन साल तक का वक्त होता है। इस तरह देखा जाए तो क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करने के लिए तीन साल तक की समय सीमा है।
ऐसे में मुकेश की रिव्यू पिटिशन खारिज होने के तीन साल तक उसे क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करने की समय सीमा थी, जो जुलाई 2021 तक होता है। कोर्ट सलाहकार ने जबरन वकालतनामा दस्तखत कराए और क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल कर दिया। सरकार ड्यूटी बाउंस है कि वह कानून का पालन कराए। इस मामले में मुकेश को कानूनी उपचार से वंचित होना पड़ा है।
आदेश खारिज हों
वकील ने नहीं बताया कि लिमिटेशन एक्ट के तहत क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करने के लिए तीन साल का वक्त होता है। जहां भी लिमिटेशन तय नहीं है वहां तीन साल का वक्त होता है। इस मामले में एमिकस क्यूरी ने तमाम कानूनी उपचार खत्म कर दिए और मुकेश फांसी के तख्ते तक पहुंच गया है।
मामले में पूरे प्रकरण की सीबीआई जांच होनी चाहिए। 6 दिसंबर 2019 से लेकर 3 मार्च 2020 तक के तमाम आदेश खारिज किए जाना चाहिए और मुकेश का कानूनी उपचार दोबारा बहाल किया जाए और क्यूरेटिव पिटिशन और अन्य आवेदन दायर करने की इजाजत हो।
20 मार्च को होनी है दोषियों की फांसी
दिल्ली की एक अदालत ने निर्भया के चारों दोषियों को मृत्यु होने तक फांसी पर लटकाने के लिये गुरुवार को 20 मार्च सुबह साढ़े पांच बजे का समय निर्धारित किया है। अदालत के इस कदम के बाद निर्भया की मां आशा देवी ने संवाददाताओं से कहा, ‘20 मार्च की सुबह हमारे जीवन का सवेरा होगा।’
उन्होंने कहा कि दोषियों को फांसी दिए जाने तक संघर्ष जारी रहेगा और उन्होंने उम्मीद जताई कि 20 मार्च फांसी की आखिरी तारीख होगी। उन्होंने यह भी कहा कि यदि मौका मिला तो वह दोषियों को मरते देखना चाहेंगी। दिल्ली सरकार ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेन्द्र राणा को बताया कि दोषियों ने अपने सभी कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल कर लिया है, जिसके बाद अदालत ने फांसी के लिए 20 मार्च की नयी तारीख निर्धारित की।
उधर, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि वह निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में उठे इस कानूनी सवाल पर 23 मार्च को विचार करेगा कि क्या एक मामले में मौत की सजा पाने वाले एक से ज्यादा दोषियों को अलग-अलग फांसी दी जा सकती है।
न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के पांच फरवरी के फैसले के खिलाफ केन्द्र की अपील पर सुनवाई स्थगित करते हुये कहा, ‘विचारणीय सवाल यह है कि क्या दोषियों को अलग-अलग या एकसाथ फांसी दी जा सकती है।’’ पीठ ने कहा, ‘‘हम इस सवाल पर विचार करेंगे।’
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि निर्भया मामले के चारों दोषियों को एक साथ ही फांसी देनी होगी। मौत की सजा का सामना कर रहे चारों दोषी– मुकेश कुमार सिंह (32),पवन गुप्ता(25), विनय शर्मा (26) और अक्षय कुमार सिंह (31) हैं। उनके वकील ने अदालत से कहा कि मौत की सजा के क्रियान्वयन की तारीख निर्धारित करने की कार्यवाही में अदालत के समक्ष अब कोई बाधा नहीं है।