जीवन जीने की कला सीखनी चाहिए: आर्यिका सौम्यनन्दिनी

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कोटा।श्री दिगम्बर जैन मंदिर महावीर नगर विस्तार योजना में पावन चातुर्मास कर रही आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी संघ के पावन सान्निध्य में रविवार को धर्मानुष्ठान किया गया। इस दौरान जैन मंदिर से संत नामदेव भवन महावीर नगर विस्तार योजना तक श्रीजी की शोभायात्रा निकाली गई। जिसमें श्रावक-श्राविकाएं नाचते गाते चल रहे थे।

संत नामदेव भवन में 1008 जिन सहस्रनाम व्रत का सामूहिक उद्यापन, 1008 अद्भुद रिद्धि सिद्धि मंत्रों से समन्वित वृहद् शांतिधारा का आयोजन किया गया। इस दौरान ‘‘कर तू प्रभु का ध्यान…’’ समेत विभिन्न भजनों की प्रस्तुति दी गई। उद्यापन के लिए किए गए हवन में श्रावक श्राविकाओं ने आहुतियां दीं।

धर्मानुष्ठान में प्रवचन करते हुए आर्यिका सुयोग्यनन्दिनीमाताजी ने कहा कि साधु-संत बहती नदी के समान हैं जो धर्म प्रभावना के लिए सदैव चलते रहते हैं। जिस प्रकार नदियों को रोकने के लिए डेम बनाए जाते हैं। कुछ समय के लिए बहती हुई नदियां रूक जाती है वैसे ही संतों का भी विराम एक स्थान पर हो जाता है और कुछ समय रूक कर फिर आगे विहार कर लेते हैं।

माताजी ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति ने अपने जीवन के कल्याण के लिए कुछ समय साधना और पुण्य प्राप्त करने सत्संगों में शामिल होकर उसका लाभ प्राप्त करना चाहिए। चातुर्मास के माध्यम से धार्मिक त्यौहारों के साथ ही प्रवचनों के माध्यम से सभी श्रावकों को जीवन जीने की कला सीखनी चाहिए। यह परंपरा निरंतर बनी रहे जिससे आपका मोक्ष मार्ग प्रबल हो सके।