खामोश लब हैं झुकी हैं पलकें, दिल में उल्फत नई नई है…

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कोटा के राष्ट्रीय दशहरा मेले में सजी शेर-ओ-शायरी की महफिल

कोटा। कभी इश्क, कभी खुमारी तो कभी जोश और कभी जुनून में डूबे असरारों ने कोटा के 131वें राष्ट्रीय दशहरा मेले को शायराना महफिल में बदल दिया। अदबी महफ़िल में एक से बढ़कर एक शायरों ने अपनी दिलकश शायरी से श्रोताओं के दिल जीत लिए। शेर-ओ-शायरी की इस खास महफिल में प्यार, इश्क़ और मोहब्बत के रंग बिखरे, तो वहीं सामाजिक कटाक्ष और जीवन की सच्चाइयों से भरी नज्मों ने लोगों के दिलों को छुआ।

मुशायरे की शुरुआत मशहूर शायरा शबीना अदीब के मंच पर आते ही विजयश्री रंगमंच तालियों से गूंज उठा। उन्होंने अपने दिलकश शेरों और ग़ज़लों से महफिल को चार चांद लगा दिए। उनकी शायरी में मोहब्बत की नजाकत और गहराई साफ झलकती थी।

“ख़ामोश लब हैं, झुकी हैं पलकें, दिलों में उल्फ़त नई-नई है, अभी तक़ल्लुफ़ है गुफ़्तगू में, अभी मोहब्बत नई-नई है।” इन पंक्तियों ने दिलों की धड़कनों को और तेज कर दिया। शबीना अदीब की शायरी “आज दुनिया को यह तरकीब बता दी जाए, दुश्मनी प्यार की लहरों में बहा दी जाए। मरने वालों के लिए लोग दुआ करते हैं, मेरे मरने की अफवाह उड़ा दी जाए।” जैसी एक के बाद एक नज़्म सुना दर्शकों को मोहब्बत की उन अदाओं से रूबरू कराया, जिनमें नएपन का एहसास और भावनाओं की नर्मी शामिल थी। उनकी शायरी ने जैसे दिलों के तार छेड़ दिए और दर्शकों को एक अलग ही दुनिया में ले गईं।

शाहिद अंजुम ने अपनी शायरी से महफिल में जोश भर दिया। उनकी आवाज़ और उनकी शायरी में चंबल के पेड़ों जैसी मजबूती थी।
“तूफ़ानों में पले हुए चंबल के पेड़ हैं,
हम लोग बाग़ के नहीं जंगल के पेड़ हैं,
हंस कर उतार लेते हैं सांसों में ज़हर को,
सांपों के साथ रहते हैं संदल के पेड़ हैं।”

इन पंक्तियों ने श्रोताओं को चंबल के संघर्षपूर्ण जीवन से जोड़ा और उनके भीतर छिपी ताकत और हिम्मत को उजागर किया। शाहिद अंजुम की नज़्म “जब तक हम मिट्टी के घर में रहते हैं, गांव के सारे लोग असर में रहते थे। अब इस्लाबाद में भी महफूज नहीं, अच्छे खासे रामनगर में रहते थे।” सुना न सिर्फ झकझोरा बल्कि भटके हुए लोगों को सही राह दिखाने की भी कोशिश की।

ताहिर फराज ने अपनी गहरी शायरी से मोहब्बत और जिंदगी के नए आयाम सामने रखे। उनकी शायरी में न केवल मोहब्बत का खुमार था, बल्कि जिंदगी के सफर की उलझनों का भी जिक्र था।
“मिरी मंज़िलें कहीं और हैं मिरा रास्ता कोई और है,
हटो राह से मिरी ख़िज़्र-जी मिरा रहनुमा कोई और है।”
उनकी नज़्म “देखकर तुमको दिल धड़कता है, ये मुहब्बत नहीं तो क्या है? नज़र बचा के गुजरते हो तो गुजर जाओ, मैं आईना हूं मेरी अपनी जिम्मेदारी है।” ने न सिर्फ श्रोताओं को मोहब्बत की मीठी तासीर में डुबोया, बल्कि जीवन की वास्तविकताओं से भी रूबरू कराया।

सिकंदर हयात गड़बड़ ने माहौल को मस्ती और ठहाकों से भर दिया। उनकी हास्य से भरपूर शायरी ने दर्शकों को लोटपोट कर दिया। उनकी मशहूर ग़ज़ल “दिल लगाने का सवाल आया तो दिल काँप गया…” ने श्रोताओं को हंसी के ठहाकों में डुबो दिया। उन्होंने इश्क में डूबे नौजवानों को आईना दिखाते हुए “कुछ देर जो उनके दर का दरबान बन गया, रोजे की जाली चूमकर सुल्तान बन गया।” और “दिल लगाने का सवाल आया तो दिल कांप गया, अपने पिटने का खयाल आया तो दिल कांप गया।” खूब तंज भरे शेर श्रोताओं की खिदमत किए।
उनकी शायरी ने दशहरा मेले में खुशियों का रंग घोल दिया।

इकबाल असहर की शायरी ने महफिल में एक संजीदा माहौल बना दिया। उनकी नज्मों में जिंदगी की हकीकत और मोहब्बत की भावनाओं का खूबसूरत संगम था

“ठहरी ठहरी सी तबीयत में रवानी आई,
आज फिर याद मोहब्बत की कहानी आई।
आज फिर नींद को आंखों से बिछड़ते देखा,
आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई।” इसके बाद उन्होंने “मुद्दतों बाद मयस्सर हुआ मां का आंचल, मुद्दतों बाद हमें नींद सुहानी आई।” और “सिलसिला खत्म हुआ जलने जलाने वाला, अब कोई ख्वाब नहीं नींद उड़ाने वाला” शेर सुना माहौल संजीदा कर दिया। उनकी शायरी में वो गहराई थी जिसने श्रोताओं के दिलों में एक खास जगह बना ली।

विजय तिवारी ने अपनी शायरी के जरिए समाज की सच्चाइयों को उजागर किया और व्यवस्था पर जमकर कटाक्ष किए। उनकी नज्म “सदियों से ये काम किसी ने नहीं किया, भूखों पर सियासत तो सबने की मगर रोटी का इंतजाम किसी ने नहीं किया…” ने श्रोताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया। “खेल खिलौने ले जा बाबू, मुन्ना दिल बहला लेगा। तेरा मुन्ना खेलेगा तो मेरा मुन्ना खा लेगा” जैसी शायरी के जरिए उन्होंने समाज की विडंबनाओं का सटीक चित्रण किया।

अज्म शाकरी और जिया टोंकी ने इश्क़ की खूबसूरती को अपनी नज्मों के जरिए बयां किया। उनकी शायरी में मोहब्बत की कशिश और तड़प साफ झलक रही थी।
जिया टोंकी की नज़्म” बहुत पावन बहुत शीतल बहुत निर्मल है ये धरती। मेरी इस आस्था का नाम हिंदुस्तान रख देना।” और “इश्क की कायनात कुछ न थी, इश्क का झगड़ा था बात कुछ न थी” सुना मुशायरे में चार चांद ही लगा दिए।

वहीं अज्म शाकरी ने कहा “जितना तेरा हुक्म था उतनी सँवारी ज़िंदगी, अपनी मर्ज़ी से कहाँ हमने गुज़ारी ज़िंदगी।” सुना दिल के तार ऐसे छोड़े कि “बेच आए हैं खुद को सस्ते में, अब खड़े रो रहे हैं रस्ते में” सुनते ही श्रोताओं ने कलेजा निकाल कर रख दिया।

इन पंक्तियों ने दर्शकों को मोहब्बत के उन अनकहे लम्हों से जोड़ दिया जो हर दिल में बसते हैं। कोटा का राष्ट्रीय दशहरा मेला इस बार केवल रौनक और उत्सव का नहीं, बल्कि अदबी महफिल का गवाह भी बना। शायरी की इस महफिल ने लोगों के दिलों में मोहब्बत, जज़्बात और हौसले की नई रौशनी भर दी।

कार्यक्रम में जिला वक्फ कमेटी के पूर्व अध्यक्ष निजामुद्दीन बबलू, समाजसेवी सफदर हुसैन बोहरा, जिला वक्फ कमेटी के उपाध्यक्ष साजिद जावेद, पूर्व उपाध्यक्ष वाहिद कुरैशी, मेला समिति अध्यक्ष विवेक राजवंशी, अतिरिक्त मेला अधिकारी महेश गोयल उपस्थित रहे।

बुलंदियों पर ठहरना कमाल होता है
किया टॉकी ने नजर नजर में कमाल होता है.. बुलंदियों पर ठहरना कमाल होता है..” पढ़ते लोकसभा स्पीकर ओम बिरला की तारीफ की। उन्होंने कहा कि बिरला दिल्ली में निष्पक्ष स्पीकर होते हैं और कोटा में केवल लाडले सांसद होते हैं। संचालन पुरुषोत्तम शर्मा और भूपेंद्र राठौर ने किया।