विश्व तंबाकू निषेध दिवस : घर में धूम्रपान से होता है बच्चों का स्वास्थ्य प्रभावित

2635

कोटा। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की ओर से शुक्रवार को विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर अमर निवास स्थित आरएसी गार्डन पर जागरुकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर फेंफड़ों की स्पाइरोमीटर जांच, फेफडों में कार्बन मोनो ऑक्साइड का लेवल चैक करने संबंधी जांच की गई। जिसमें 118 लोगों का स्वास्थ्य जांचा गया। वहीं ‘धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’’ तथा गांव ढाणी में चूल्हा बिगाड़ रहा ममता की सेहत’’ पोस्टर का विमोचन भी किया गया। विश्व तंबाकू निषेध दिवस 2019 को ‘तंबाकू एण्ड लंग हेल्थ’ पर फोकस किया गया है।

अगर नहीं चेते तो आक्सीजन भी खरीदनी होगी
आरएसी के डिप्टी कमांडेंट पवन जैन ने कहा कि स्वास्थ्य सबसे बड़ी पूंजी है। हम आरएसी लाॅन को ऑक्सीजोन के रूप में विकसित करना चाहते हैं। आरएसी के पास मेनपावर तो है, लेकिन संसाधनों का बहुत अभाव है। यदि पर्यावरण प्रदूषण इसी प्रकार बढता रहा तो आने वाले 10 सालों में हमें सांस लेने के लिए आक्सीजन भी खरीदनी होगी। आरएसी को देने के लिए आईएमए की ओर से विभिन्न चिकित्सकों ने 3 ट्रक मिट्टी की घोषणा की।

जागरूकता कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डाॅ. एस सान्याल ने कहा कि विश्व तंबाकू निषेध दिवस 2019 लोगों के स्वास्थ्य पर तंबाकू के प्रतिकूल प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करता है। धूम्रपान (स्मोकिंग) मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर कहर बरपाने के अलावा फेफड़ों के कैंसर, सांस की बीमारी का कारण बन सकता है। जिन घरों में धूम्रपान आम होता है, उन घरों के बच्चे न चाहते हुए भी जन्म से ही ‘धूम्रपान’ की ज्यादतियों के शिकार हो जाते हैं।

पेसिव स्मोकिंग या सेकंड हैंड स्मोकिंग भी उतनी ही समस्याएँ पैदा करती हैं जितनी किसी धूम्रपान करने वाले को हो सकती है। बच्चों में यह समस्या और गंभीर इसलिए हो जाती है, क्योंकि उनका विकास हो रहा होता है। साथ ही उनकी साँस लेने की गति भी वयस्कों से अधिक होती है। अधिक धूम्रपान से गले का कैंसर का खतरा भी रहता है।

डाॅ. केके डंग ने कहा कि कोई वयस्क एक मिनट में लगभग 16 बार साँस लेता है, जबकि बच्चों में इसकी गति अधिक होती है। पाँच साल का एक सामान्य बच्चा एक मिनट में 20 बार साँस लेता है। किन्हीं विशेष परिस्थितियों में यह गति बढ़कर 60 बार प्रति मिनट तक हो सकती है। जिन घरों में सिगरेट या बीड़ी का धुआँ रह-रहकर उठता है उन घरों के बच्चे तंबाकू के धुएँ में ही साँस लेते हुए बड़े होते हैं।

वे वयस्कों से अधिक तेज गति से साँस लेते हैं इसलिए उनके फेफड़ों में भी वयस्कों के मुकाबले अधिक धुआँ जाता है। धुएँ के साथ जहरीले पदार्थ भी उसी मात्रा में दाखिल होते हैं। देश के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं में बीड़ी पीना बहुत सामान्य है। इसी तरह शहरी भद्र समाज की आधुनिक महिलाओं में यहाँ तक कि लड़कियों में सिगरेट पीना फैशन बनता जा रहा है।

बच्चों को दिमागी लकवे की शिकायत
डाॅ. एमके जोशी ने कहा कि गर्भधारण की अवधि में सिगरेट या बीड़ी पीने वाली महिलाओं को कम वजन के बच्चे पैदा होते हैं। ऐसे बच्चों की रोग प्रतिरोधक शक्ति कम होती है तथा वे जल्दी किसी बीमारी से घिर जाते हैं। ऐसे बच्चों को दिमागी लकवे की शिकायत हो सकती है साथ ही सीखने में असमर्थता की भी समस्या होती है।

डाॅ. जीसी जैन ने कहा कि सिगरेट या बीड़ी के धुएँ का बच्चे की श्वास-प्रश्वास प्रणाली पर इतना विपरीत प्रभाव पड़ता है कि वे अस्थमा के भी शिकार हो जाते हैं। यदि बच्चे पहले से ही अस्थमा का शिकार हैं तो उसकी स्थिति सिगरेट के धुएँ से और बिगड़ सकती है। उसे अस्थमा के अनियंत्रित दौरे भी पड़ सकते हैं। सेकेंड हैंड स्मोकिंग के कारण हर साल अस्थमा के नए बाल रोगियों की संख्या बढ़ जाती है। धूम्रपान का धुआँ बच्चों में निमोनिया या पल्मोनरी ब्रोंकाइटिस अर्थात साँस के साथ उठने वाली खाँसी की समस्या पैदा कर सकता है।