रिफंड के लिए गलत दावे करदाताओं को महंगे पड़ेंगे, आयकर विभाग की नजर से बच नहीं पाएंगे

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कोटा। इनकम टैक्स बचाने के लिए एचआरए, मेडिकल इंश्योरेंस, होम लोन और 80सी के तहत टैक्स सेविंग इनवेस्टमेंट्स में गड़बड़ी करने वालों की अब खैर नहीं है। टीडीएस और आईटीआर फॉर्म में दी गई जानकारी में मिसमैच का पता लगाने के लिए इनकम टैक्स विभाग एक खास टेकनीक का इस्तेमाल कर रहा है।

दिसंबर में मुंबई, दिल्ली और दूसरे कई बड़े शहरों की कई कंपनियों को धारा 133सी के तहत नोटिस भेजे गए हैं। यह सेक्शन 2014-15 में शुरू किया गया था। इसके तहत इनकम टैक्स विभाग डिटेल वेरिफाई करने के लिए नोटिस भेज सकता है। कंपनियों को दी गई जानकारी कंफर्म करने या करेक्शन स्टेटमेंट देने को कहा जा रहा है।

सूत्रों ने बताया कि इसका मकसद ऐसे मामलों का पता लगाना है जहां टैक्स की चोरी की गई है। इन मामलों में या तो कंपनियों ने कम टीडीएस काटा है या कर्मचारियों ने एक्स्ट्रा इनवेस्टमेंट डिक्लरेशन के जरिए रिफंड का दावा किया है। कर्मचारियों ने पहले इसकी जानकारी नहीं दी लेकिन आईटीआर भरते समय इसे शामिल कर लिया।

Asire Consulting के मैनेजिंग पार्टनर राहुल गर्ग ने कहा कि सेक्शन 133सी का अब तक बहुत कम इस्तेमाल हुआ है। लेकिन हाल में कई कंपनियों को इस सेक्शन के तहत नोटिस भेजा गया है। इससे लाइन-वाइज वेरिफिकेशन का रास्ता साफ होगा। यह टेक्नोलॉजी का स्मार्ट यूज है। विभाग को अच्छी तरह पता है कि मैन्युअली यह संभव नहीं है।

कानून के मुताबिक टीडीएस की सही गणना करने की जिम्मेदारी कंपनी की है। लेकिन कंपनियां इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देती हैं और कर्मचारियों के डिक्लरेशन को सही मान लिया जाता है। कई मामलों में कर्मचारी समय पर एक्चुअल डॉक्यूमेंट्स नहीं दे पाते हैं।

सीए मिलिंद विजयवर्गीय ने कहा कि यह गलत दावों को पकड़ने का इफेक्टिव टूल है। जिन कंपनियों को नोटिस मिला है, उन्हें तुरंत इसका जवाब देना चाहिए। ऐसा नहीं करने पर इसमें पेनल्टी का प्रावधान है। इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए।

अगर कोई कर्मचारी फर्जी दावे करता है और कंपनियां इसे स्वीकार करती हैं तो टैक्स ऑफिस के सिस्टम में यह खामी उजागर नहीं होती है। लेकिन दो तरह की इन्फॉरमेशन में अंतर तुरंत पकड़ में आ जाता है। अगर यह मामला टैक्स ऑफिस की पकड़ में आ जाता है तो इस बात की संभावना है कि सभी कर्मचारियों के रेकॉर्ड को खंगाला जा सकता है। इसका मकसद गलत दावों के आधार पर रिफंड के मामलों का पता लगाना है। इससे कंपनियां भविष्य में ज्यादा सतर्क होंगी और कर्मचारियों के दावों की गहरी छानबीन कर सकती हैं।