म्युचुअल फंड में निवेश होगा सस्ता, सेबी ने किया शुल्क ढांचे में व्यापक बदलाव

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मुंबई। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने 25 लाख करोड़ रुपये के म्युचुअल फंड उद्योग के शुल्क ढांचे में व्यापक बदलाव की आज घोषणा की। इससे परिसंपत्ति प्रबंधन कपंनियों के मुनाफे पर असर पड़ सकता है लेकिन निवेशकों को इससे फायदा होगा। नियामक ने 500 अरब रुपये संपत्ति वाले फंड हाउसों के लिए कुल व्यय अनुपात (टीईआर) को 1.75 फीसदी से घटाकर 1.05 फीसदी तक सीमित कर दिया।

कम परिसंपत्ति का प्रबंधन करने वाली कंपनियों को ज्यादा टीईआर वसूलने की अनुमति दी गई है। इसके साथ ही सेबी ने एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) के लिए अधिकतम एक फीसदी शुल्क तय कर दिया है। सेबी के चेयरमैन अजय त्यागी ने कहा, ‘म्युचुअल फंड उद्योग में तेजी से विकास हो रहा है। हालांकि इसका पूरा लाभ निवेशकों के साथ साझा नहीं किया जा रहा है।’

सेबी ने कहा कि उनकी गणना के मुताबिक टीईआर को कम करने से निवेशकों को 130 अरब रुपये के राजस्व पर करीब 15 अरब रुपये की बचत होगी। दूसरे शब्दों में इससे बड़े फंड घरानों के मुनाफे में 12 फीसदी तक की कमी आ सकती है। विशेषज्ञों ने कहा कि इस निर्णय से सूचीबद्घ परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों एचडीएफसी एमएफ और रिलांयस निप्पॉन एमएफ के शेयरों में गिरावट आ सकती है।

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों, खासकर प्रवासी भारतीयों के मामले में केवाईसी जरूरतों में ढील देने के एचआर खान समिति के सुझावों को नियामक ने स्वीकार कर लिया है। इस कदम से विदेशी निवेशकों के बीच भरोसा बढ़ेगा। इस माह की शुरुआत में खान समिति ने कहा था कि सेबी के विवादास्पद सर्कुलर का उपयोग केवाईसी तय करने के लिए किया जाना चाहिए न कि स्वामित्व निर्धारण के लिए।

समिति ने यह भी कहा था कि प्रवासी भारतीयों को विदेशी फंड का प्रबंधन और उसमें निवेश करने की अनुमति मिलनी चाहिए। त्यागी ने कहा कि खान समिति के लगभग सभी प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया गया है और जल्द ही अंतिम परिपत्र जारी किया जाएगा। सेबी ने विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के आधार पर सहमति प्रारूप और भेदिया कारोबार के नियमन में बदलाव के प्रस्ताव को भी स्वीकार कर लिया है।

नियामक सहमति के तहत भेदिया कारोबार जैसे नियमों के उल्लंघन मामले को ‘सैद्घांतिक दृष्टिकोण’ के आधार पर निपटाएगा। हालांकि बाजार की निष्ठा को प्रभावित करने वाले या निवेशकों को भारी नुकसान वाले मामले को इससे बाहर रखा जाएगा।

इन बदलावों से सेबी के पास लंबित मामलों का बोझ कम होगा क्योंकि पहले भेदिया कारोबार से जुड़े मामूली उलंघन के मामलों को भी सहमति के तहत नहीं निपटाया जा सकता था। नई सहमति व्यवस्था के दायरे से भगोड़े अपराधियों और जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों को बाहर रखा गया है। सेबी ने ऐसे लोगों और इकाइयों द्वारा आम लोगों से पैसे जुटाने पर भी रोक लगा दी है।

बाजार नियामक सेबी टीके विश्वनाथन समिति की सिफारिशों के आधार पर भेदिया कारोबार पर रोक लगाने (पीआईटी) और धोखाधड़ी तथा अनुचित कारोबारी गतिविधियों पर रोक लगाने (एफयूटीपी) वाले नियमों में भी बदलाव करेगा। इससे नियामक को धोखाधड़ी वाली गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए अधिक शक्ति मिलेगी।

प्रतिभूतियों में कारोबार की नई परिभाषा में कर्मचारी तथा एजेंट शामिल होंगे और भेदिया कारोबार करने वाली मुखौटा कंपनियों पर अंकुश लगाएगा। सूचीबद्ध कंपनियों को कीमत संबंधी संवेदनशील जानकारी का अनुचित प्रयोग रोकने के लिए व्यवस्था को ठीक करना होगा।

सेबी ने कहा कि वह टेलीग्राफ कानून के तहत फोन कॉल तथा इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के जरिये संवाद को ट्रैक करने की शक्तियां सरकार से लेगा। वर्तमान में सीबीआई, आयकर विभाग जैसी केंद्रीय एजेंसियों के पास ही इस तरह की शक्तियां हैं। त्यागी ने बताया कि इस प्रस्ताव के साथ कुछ निजता संबंधी मुद्दे जुड़े हैं और इसका उपयोग काफी सावधानी से करना होगा।

सेबी ने आईपीओ के लिए एकीकृत भुगतान प्रणाली (यूपीआई) आधारित ढांचे को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है, जो किसी भी प्रतिभूति को 3 दिन में सूचीबद्ध करने की अनुमति देता है। वर्तमान में यह समयसीमा 6 दिन है। नियामक ने प्रवर्तकों को सामान्य शेयरधारक के तौर पर श्रेणीबद्ध करने के लिए एक नए ढांचे को भी मंजूरी दी है। इसके लिए बोर्ड और शेयधारकों की मंजूरी जरूरी होगी।

सेबी ने कहा कि वह बड़े व्यवसायियों की वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए बॉन्ड बाजार की ओर ले जाने संबंधी एक नया ढांचा लेकर आएगा। यह व्यवस्था अगले वित्त वर्ष तक शुरू हो जाएगी। इस कदम से बैंकिंग व्यवस्था पर पडऩे वाला बोझ कम होगा और कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार को लाभ होगा। सेबी ने विभिन्न क्लीयरिंग कॉर्पोरेशंस के बीच एकीकृत कारोबार को भी अनुमति दे जी है, जो पीयर-टू-पीयर ढांचे के तहत किया जाएगा। इससे मार्जिन बढ़ेगा तथा कारोबार की लागत में कमी आएगी।

नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के कोलोकेशन मामले पर त्यागी ने कहा कि नियामक एक्सचेंज द्वारा दायर की गई सहमति याचिका की जांच कर रही है। नियामक ने इस मामले में 30 कंपनियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। आईसीआईसीआई बैंक के खुलासे संबंधी मामले पर त्यागी ने बताया कि नियामक द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस पर बैंंक और उसके प्रमुख ने अपने जवाब दर्ज कर दिए हैं।

त्यागी ने कहा कि 1 अक्टूबर से कारोबारी समय नहीं बढ़ाया जा रहा है क्योंकि एक्सचेंजों ने अभी तक विस्तृत संचालन योजना जमा नहीं की है। साथ ही, सेबी ने बताया कि वह कमोडिटी डेरिवेटिव्स में भी कारोबार शुरू करने के एनएसई और बीएसई के प्रस्तावों की जांच कर रहा है। सेबी ने कहा कि वह जल्दी ही क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की प्रक्रिया की समीक्षा करेगा और इस मामले पर सर्कुलर जारी करेगा।