नई दिल्ली।कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी, ट्रेड वॉर और करंसी में गिरावट की वजह से अनुमान है कि अगले साल तेल की मांग ज्यादा नहीं बढ़ेगी। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इससे कच्चे तेल की कीमत भी कम होगी। ओपेक और इंटरनैशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) का कहना है कि कच्चे तेल के उत्पादन में कमी आने की वजह से दाम कम नहीं होंगे।
इनका अनुमान है कि अगले साल दुनियाभर में तेल की मांग में 13.6 लाख बैरल की बढ़ोतरी होगी। अगर 2014 के बाद से इसकी तुलना करें तो यह सबसे कम वृद्धि होगी। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक OPEC और IEA दोनों ही मांग को पूरी करने में सक्षम नहीं हैं। भारत और चीन जैसे देशों की करंसी में गिरावट की वजह से कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का असर और बुरा हो गया है।
इस समय लोगों को पेट्रोल और डीजल के लिए रेकॉर्ड कीमत अदा करनी पड़ रही है जबकि 2008 की तुलना में कच्चे तेल की कीमत अभी 45 फीसदी कम है। इसी वजह से भारत सरकार को तेल पर टैक्स में कटौती करनी पड़ी। इसके अलावा कंपनियों से भी तेल की कीमत में कमी करने को कहा गया है।
चीन में भी लोगों को पिछले साल के मुकाबले 28 फीसदी ज्यादा कीमत देनी पड़ रही है। तेल की मांग में कमी की वजह से IMF जैसे संगठन वैश्विक विकास दर में भी कमी कर सकते हैं। अमेरिका और चीन के बीच ड्यूटी वॉर से भी वैश्विक स्तर पर व्यापार में कमी आई है।
बता दें कि राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा प्रतिबंधों के ऐलान के बाद ईरान से होने वाले तेल के निर्यात में 39 फीसदी की कमी आई है। चार नवंबर से ये प्रतिबंध लागू होंगे। हालांकि ओपेक और रूस ने इस समस्या से निपटने के लिए काफी काम किया है।
सऊदी अरब ने भी रेकॉर्ड प्रॉडक्शन शुरू कर दिया है और लीबिया ने भी पिछले पांच साल की तुलना में सबसे ज्यादा उत्पादन किया है। अफ्रीका में तेल उत्पादक नाइजीरिया में होने वाले चुनाव की वजह से तेल का उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
IEA ने ओपेक द्वारा अतिरिक्त तेल सप्लाइ का लक्ष्य 20 लाख बैरल तक रखा है, लेकिन कई देशों में विवाद की वजह से अभी इसका टेस्ट नहीं किया जा सका है। हो सकता है कि वास्तविक तेल आपूर्ति इस लक्ष्य से आधी हो। जबतक अतिरिक्त आपूर्ति उपलब्ध नहीं होती तेल की कीमतों के बारे में सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।