निरक्षर नरेगा मजदूर का बेटा कुलदीप बनेगा आईआईटीयन

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कोटा । जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए लेने के साथ-साथ देने की सोच रखना भी बहुत जरूरी है और यह सोच संस्कारों से विकसित होती है, जो कि हमें परिवार, समाज और शिक्षकों से मिलते हैं। कुछ ऐसे ही संस्कारों को ध्येय मानते हुए अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रहा है बूंदी जिले के नैनवां के निकट पीपरवाला गांव निवासी निरक्षर नरेगा मजदूर व कृषक तेज सिंह का बेटा कुलदीप सिंह नरूका।

एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट के छात्र कुलदीप सिंह ने आईआईटी के परिणामों में 14001 रैंक प्राप्त की है। कुलदीप का कहना है कि इंजीनियरिंग के बाद आईएएस की परीक्षा देकर प्रशासनिक अधिकारी बनना चाहता हूं। गांव की स्थितियां बहुत प्रतिकूल है, यहां के लोगों के लिए सुविधाएं मुहैया करवाना चाहता हूं। गांव की तस्वीर बदलना चाहता हूं।

12वीं तक पढ़ाई के लिए तीन स्कूल बदले
कुलदीप ने बताया कि गांव बूंदी जिले के नैनवां कस्बे से करीब 7 किलोमीटर दूर पीपरवाला है। 50-60 घरों के इस गांव में सड़कें पूरी नहीं है। मूलभत सुविधाओं के नाम पर भी पानी और बिजली का कई बार संकट आ जाता है। पढ़ाई के लिए पांचवी तक स्कूल है। जब मैंने पांचवी पास की तो यहां से करीब 4 किलोमीटर दूर सुवानिया गांव में पढ़ने जाना पड़ा।

पढाई के लिए रोजाना 8 किमी पैदल चलना पड़ता था। यहां शिक्षक राकेश सर से अच्छा परिचय हुआ, उन्होनें कोटा जाने की सलाह दी तथा उनका तबादला बारां के मिर्जापुर होने पर मुझे भी उसी स्कूल में प्रवेश दिलवाया ताकि नियमित रूप से मेरा ध्यान रख सकें।

कोटा में एलन की मिली मदद
सुवानिया में दसवीं तक की पढ़ाई की और 95.83 प्रतिशत अंक हासिल किए। इसके बाद यहां के शिक्षकों ने साइंस मैथ्स लेने की बात कही और इंजीनियरिंग करने की सलाह दी। मैं मेरे गांव का पहला छात्र हूं, जिसने साइंस मैथ्स ली है, इससे पहले किसी ने साइंस तक नहीं ली। 12वीं तक की पढ़ाई सरकारी स्कूल मिर्जापुर से हुई और 12वीं बोर्ड में 96 % अंक प्राप्त किए।

इसके बाद शिक्षक ही एलन लेकर आए और यहां मेरी पारिवारिक स्थिति व निर्धनता को देखते हुए शुल्क में 65 प्रतिशत की रियायत दे दी गई। शेष राशि पिता ने गांव के परिचितों से कर्जा लेकर जमा करवाया। एलन में पढ़ाई और सकारात्मक माहौल के बाद मेरी प्रतिभा निखरी और मैंने बेहतर स्कोर किया।

मेरी खुशी में परिवार खुश
पिता मूलरूप से किसान हैं। गांव में 4 बीघा जमीन है, जिससे परिवार की गुजर-बसर होती है। दो छोटी बहनें सरकारी स्कूल में पढ़ रही हैं। जब कोटा जाकर पढ़ने की बात हुई तो पिता ने कहा तुम पढ़ो हम कैसे भी तुम्हारे के लिए पैसा लगाएंगे। मैं कोटा आ गया और पिता ने खेती का सीजन नहीं होने पर पिता नरेगा में काम भी किया। मां प्रीती कंवर गृहिणी हैं व 5वीं पास हैं। यहां जमकर मेहनत की और अब जेईई एडवांस्ड में 14001 रैंक प्राप्त की। परिवार ही नहीं पूरे गांव में खुशी है, सभी बधाई दे रहे हैं।