जीएसटी की जगह फीस कम क्यों नहीं करते कोचिंग संचालक

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पेरेंट्स का  कहना है कि  “फ़ीस कम होगी तो नहीं पड़ेगा छात्रों पर भार “

कोटा। कोचिंग पर जीएसटी की दर 18 फीसदी होते ही संचालकों ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया। यह तो ऐसे बोल रहे हैं जैसे पेरेंट्स की जेब से नहीं उनकी जेब से जा रहा हो। कुछ प्रिंट मीडिया भी उनके पक्ष में बयान लेकर छाप रहे हैं। अगर छात्रों और पेरेंट्स के इतने ही हितेषी हैं तो अपनी फीस साल दर साल क्यों बढ़ा रहे हैं। जीएसटी की जगह फीस कम क्यों नहीं करते कोचिंग संचालक पेरेंटस पर तो वैसे ही भार कम हो जायेगा । 

शहर के कोचिंग से लेकर हॉस्टल तक सब मनमाने तरीके से छात्रों के अभिभावकों को से पैसा ऐंठ रहे हैं ।इतना ही नहीं अब तो कोचिंग संचालकों ने भी अपने खुद के हॉस्टल शुरू कर दिए हैं। जो लीज पर चल रहे हैं । प्रॉपर्टी डीलर्स से मिलकर पहले अपने फायदे का सौदा करते हैं , फिर वहां कोचिंग शुरू कर देते हैं । जिस एरिया में यह संस्थान अपने पैर पसारते वहां जमीनों के दाम आसमान छूने लगते हैं। कुछ कोचिंग संचालक तो रियल एस्टेट के मालिक तक हैं।

लंबे समय से हो रही है छूट की मांग 

कोटा के कोचिंग संचालक लंबे समय से सरकार से मांग कर रहे हैं कि कोचिंग काे भी सामान्य शिक्षा की तरह मानकर कुछ सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए। सर्विस टैक्स में कटौती की मांग भी इसमें शामिल है। कोटा में 1.25 लाख स्टूडेंट्स मेडिकल और इंजीनियरिंग की कोचिंग करते हैं। अब तक सालाना 187 करोड़ रुपए की राशि सरकार के अकाउंट में जाती थी, जो जीएसटी के बाद बढ़कर सालाना 225 करोड़ रुपए के करीब पहुंच जाएगी। जीएसटी का असर मात्र इंजीनियरिंग और मेडिकल पर ही नहीं, सीए, सीएस अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियां करवाने वाले इंस्टीट्यूट पर भी पड़ेगा। 

कोचिंग संचालकों का कहना है कि कोचिंग इंडस्ट्री को एजुकेशन सेक्टर नहीं मानने वाली सरकारें ही बच्चों पर बोझ बढ़ाती जा रही हैं। काउंसिल की ओर से जारी नई दरों के बाद अब कोचिंग छात्रों को 15 प्रतिशत सर्विस टैक्स की जगह 18 प्रतिशत जीएसटी देना होगा। कोटा में औसतन कोचिंग फीस एक लाख रुपए है।

अब तक जो छात्र एक लाख की फीस पर 15 हजार रुपए बतौर सर्विस टैक्स दे रहा था, अब उसको 18 हजार रुपए देना होगा। दो साल की कोचिंग पर छह और तीन साल की कोचिंग पर नौ हजार रुपए अतिरिक्त टैक्स देना होगा। जीएसटी लागू होने के बाद छात्र पर औसतन तीन हजार रुपए का अतिरिक्त भार जाएगा। पेरेंट्स का  कहना है कि जितना असर टैक्स बढ़ने से पड़ने वाला है , उतनी ही फीस कोचिंग संचालक कम कर दें। 

कोचिंग को ही इंडस्ट्री का नाम
शहर में कोचिंग संचालक दी एएसआई एसोसिएशन के मेंबर बन गए। फिर अधिकारयों से सांठगांठ कर इंद्रप्रस्थ इंडस्ट्रियल एरिया की उद्योगों की सस्ती भूमि खरीद ली।  उद्योगों की जगह खड़ीं हो गई विशालकाय इमारतें। इस तरह औद्यौगिक नगरी बन गई कोचिंग नगरी। अब वह कोचिंग को इंडस्ट्री का नाम देने लगे। 

नोट -यदि अभिभावक एवं छात्र हमारी बात से सहमत हैं तो आप कमेंट बॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया दीजिये। आप अपना नाम गोपनीय रखना चाहें या कोचिंग के संबंध में कोई शिकायत हो तो दस्तावेज के साथ हमें मेल कीजिये।

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