गहलोत सरकार की फ्री स्मार्टफोन योजना पर तलवार लटकी, हाईकोर्ट का नोटिस

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जोधपुर। राजस्थान में गहलोत सरकार की महत्वकांक्षी इंदिरा गांधी स्मार्टफोन गारंटी कार्ड योजना पर जोधपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से 5 अक्टूबर तक जवाब मांगा है। हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को नोटिस जारी किया। याचिकाकर्ता अधिवक्ता मुदित नागपाल ने राजस्थान हाईकोर्ट की मुख्य पीठ में आयोजना विभाग के 21 अगस्त 2023 के आदेश को चुनौती दी।

इसमें स्वतंत्रता दिवस पर मुख्यमंत्री के भाषण में एक करोड़ चिरंजीवी कार्ड धारक परिवारों की महिला मुखिया को इंटरनेट कनेक्टिविटी वाला स्मार्टफोन गारंटी कार्ड देने के संबंध में दिशा-निर्देश दिए गए थे। याचिका की सुनवाई मंगलवार को जस्टिय विजय बिश्नोई तथा जस्टिस योगेंद्र कुमार पुरोहित की खंडपीठ में हुई। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास बालिया तथा अधिवक्ता संजीत पुरोहित ने पैरवी की।

अधिवक्ताओं ने तर्क दिए कि राजस्थान सरकार द्वारा शुरू की गई इंदिरा गांधी स्मार्टफोन योजना को राज्य की कल्याणकारी गतिविधि नहीं कहा जा सकता है। योजना के उद्देश्यों और कार्यान्वयन से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि यह तर्कसंगतता और आनुपातिकता की कसौटी पर खरी नहीं उतरती। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। आदेश में चिरंजीवी कार्ड धारकों के परिवारों की एक करोड़ महिला मुखियाओं को राज्य सरकार द्वारा दिए जाने वाले गारंटी कार्ड वितरित करने का प्रस्ताव है।

सरकार की इस प्रतिबद्धता का राज्य की अर्थव्यवस्था और राज्य सरकार के बजट पर भारी वित्तीय प्रभाव पडे़गा। जिसे राज्य बजट और विनियोग अधिनियम में न तो अनुमोदित किया गया है और न ही घोषणा करने से पहले कोई वित्तीय मंजूरी ली गई।आयोजना विभाग का आदेश न केवल उसके अधिकार क्षेत्र से परे है, बल्कि यह राजस्थान वित्तीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम, 2005 के प्रावधानों तथा वर्ष 2023-24 के लिए राजस्थान सरकार द्वारा जारी मध्यम अवधि की राजकोषीय नीति विवरण के प्रतिकूल है।

याचिका में तर्क दिया कि यह गारंटी कार्ड योजना सरकार पर प्रत्यक्ष देनदारी बढ़ा सकती है, उन्हें राज्य विधानसभा के किसी भी अनुमोदन के बिना वितरित करने की कोशिश की जा रही है। राजस्थान सरकार ने एक करोड़ चिरंजीवी कार्ड धारक परिवारों की सभी महिला मुखियाओं को ऐसे गारंटी कार्ड जारी करने का प्रस्ताव दिया है, जो जरूरी नहीं कि समाज के वंचित या पिछड़े तबके से हों।