कोटा में कैदी जैसे ही नहीं थे, खाना भी कैदियों वाला था, कोचिंग छात्रों का दर्द

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नई दिल्ली/कोटा। सुनहरे भविष्य की चाह में कोचिंग के लिए कोटा गए एक लाख से ज्यादा छात्र लॉकडाउन की वजह से वहीं फंस गए थे। हॉस्टलों और पीजी, जहां वे चहकते रहे थे, वे अब कैद खाने हो चले थे। इसलिए नहीं कि वे बंद थे बल्कि उनको खाना भी कैदियों वाला मिल रहा था। दाल पतली, रोटी में कटौती। कई छात्र तो डिप्रेशन में जाने लगे थे। वहां से लौटे छात्रों से जानिए उनकी आपबीती…।

कानपुर किदवई नगर की जाह्नवी तिवारी ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि लॉकडाउन में हॉस्टल जेल की तरह थी। जहां सिर्फ हम लोग कैद ही नहीं थे बल्कि खाना भी कैदियों वाला हो गया था। दाल पतली हो गई थी और रोटियों में कटौती की जा रही थी। किदवई नगर की ही सौम्या कहती हैं, हम तो चले आए लेकिन दूसरे राज्यों के बच्चे थोड़े मायूस हो गए। सबके मन में अनजाना सा डर था।

सब बच्चे अपने-अपने राज्यों की न्यूज देखकर विचलित होते थे। पढ़ाई में भी मन नहीं लगता था। लगता था न जाने क्या होगा। वंश का कहना था कि ऐसे संकट के समय परिवार से दूर रहना बहुत मुश्किल था। खाने की भी परेशानी रही। पहले लॉकडाउन के तीन दिन बाद ही पीजी की मेस बंद हो गई। ऐसे में केवल ऑनलाइन फूड डिलीवरी ही एकमात्र साधन था। रोज 200 रुपये खर्च करके केवल दो टाइम का ही खाना मिल पाता था।

घर के नजदीक आने पर मिली तसल्ली
लॉकडाउन की अवधि में काफी प्रयास के बाद अब जिले में कोटा राजस्थान से 31 लोग वापस लौटे हैं। इनमें 29 विद्यार्थी व 2 अभिभावक शामिल हैं। इन सभी को आगरा रोड स्थित दून पब्लिक स्कूल में क्वारंटीन सेंटर में रखा गया। कोटा में मेडिकल की कोचिंग कर रहे छात्र अभिषेक प्रताप ने बताया कि लॉकडाउन शुरू होने के दौरान कुछ दिन खाने की भी समस्या पैदा हो गई थी। हमने अपनी तकलीफें ट्विटर, सोशल मीडिया के माध्यम से सरकार तक पहुंचाई। सरकार ने इन तकलीफों को समझा और अब हमें हमारे घर के नजदीक तक पहुंचाया है।

ऐसा लगा था कि कोई सजा मिली हो
उन्नाव की शुचि बाजपेई बताती हैं कि न तो कोचिंग जा पा रही थीं और न ही तैयारी हो पा रही थी। कोटा में इस माहौल में रहना एक सजा लग रहा था। डिप्रेशन जैसे हालात सभी छात्र-छात्राओं में थे। कन्नौज के छिबरामऊ के आकाश शर्मा का कहना था कि 24 दिन बहुत कठिन कटे। सोच कर सिहर उठता हूं। एक कमरे में चार सहपाठियों के साथ रह रहा था। लॉकडाउन के शुरुआती दिन तो कट गए लेकिन जैसे-जैसे कोटा में कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ने लगी, वैसे-वैसे दिल भी बेचैन होने लगा। फोन पर मम्मी या पापा से बात होती थी तो वह भी डर जाते थे।