SMS से क्षमा याचना मात्र औपचारिकता: आर्यिका सौम्यनन्दिनी

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कोटा। महावीर नगर विस्तार स्थित दिगम्बर जैन मंदिर पर पर्यूषण पर्व का आगाज किया गया। जिसमें पहले दिन उत्तम क्षमा धर्म के तहत एक दूसरे से उत्तम क्षमा कहकर क्षमायाचना की गई। इस दौरान श्रीजी का पूजन, शांतिधारा और अभिषेक किया गया। इस दौरान प्रवचन करते हुए आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी ने कहा कि वर्तमान में क्षमा याचना मात्र औपचारिकता रह गयी हैं।

उन्होंने कहा कि कुछ वर्षों पूर्व, एक परिचितों की सूची बनाकर, उनके पास क्षमावाणी कार्ड डाक द्वारा प्रेषित कर अपने क्षमा भाव याचना प्रेषित करी जाती थी। वर्तमान में एसएमएस कर क्षमा याचना की औपचारिकता पूरी कर दी जाती है। क्षमा धर्म ऐसे नहीं होती है।

वास्तव में क्षमा मांगने की विधि है कि, जिसके साथ हमारी गांठ बंधी है उनसे पत्र लिखकर, गाँठ बंधने की तिथि दुर्व्यवहार का उल्लेख करते हुए, उसके चित्त को दुःख होने का निमित्त स्वयं को स्वीकारते हुए क्षमा याचना करनी चाहिए। इसमें लिखना चाहिए कि आज उत्तम क्षमा के अवसर पर, मैं आपसे अनुरोध करता हूँ की आप उस प्रसंग को भूल कर मुझे क्षमा करें।

आजकल हम क्षमा वाणी के अवसर पर एसएमएस कर मात्र औपचारिकता पूरी करते हैं। किन्तु, गांठ बनी रहती है। इससे क्षमावाणी के उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती है। माताजी ने कहा कि अहिंसा द्वारा ही इस संसार को शांति की राह पर ले जाया जा सकता है। इस दिन भी हृदय के अंतरंग से, विनम्रतापूर्वक संसार के समस्त जीवों से क्षमा याचना कर अपने आत्म भावों की विशुद्धि करते हैं।

क्रोध के प्रसंग उत्पन्न होने पर भी क्रोधित नहीं होना उत्तम क्षमा धर्म है। क्रोध पैदा हो ही जाए तो अपने विवेक से, नम्रता से उसे विफल कर देना चाहिए। अपने भीतर क्रोध का कारण ढूंढना, क्रोध से होने वाले अनर्थों को सोचना, दूसरों की बेसमझी का ख्याल न करना ही उत्तम क्षमा धर्म है। हमें इस दिन क्षमा के गुणों का चिंतन करना चाहिए।