अमेरिका और ईरान की लड़ाई में बासमती चावल का निर्यात संकट में

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नई दिल्ली। ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध का असर जायकेदार चावल बासमती पर पड़ा है। प्रतिबंध की वजह से घरेलू बासमती निर्यातकों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। निर्यातक कंपनियां सरकार से मदद कीउम्मीद लगा रही हैं। उन्होंने ईरान को निर्यात किए गए चावल के लिए भुगतान के तरीके पर सरकार से स्पष्टीकरण का आग्रह किया है। इन्हीं आशंकाओं के चलते घरेलू बाजार में बासमती धान की कीमतें घटाकर बोली जाने लगी हैं।

भारत ईरान को अपने कुल बासमती निर्यात का लगभग 30 फीसद भेजता है। लेकिन अमेरिका ने ईरान पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए हैं। जिससे बासमती चावल निर्यातकों के लिए अब यह मुश्किल खड़ी हो गई है कि ईरान से किस मुद्रा में और किस तरह भुगतान प्राप्त किया जाए। इसे लेकर उन्होंने सरकार ने कुछ दिशानिर्देश देने का आग्रह किया है।

निर्यातकों की मुश्किलों की वजह से घरेलू चावल बाजार असमंजस में है। इसके चलते यहां धान के मूल्य में पांच से सात फीसद तक की गिरावट दर्ज की गई है।हरियाणा की मंडियों में बासमती के साथ 1,121 प्रजाति की लंबे चावल में भी गिरावट का रुख देखा गया है।

मंडियों से जुड़े लोगों को लगता है कि ईरान से निर्यात प्रभावित होने का सीधा असर घरेलू बाजार में पड़ना है। बासमती निर्यातक ईरान से ताजा निर्यात सौदा करने से बच रहे हैं। बासमती धान की खेती हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में प्रमुखता से होती है। चावल निर्यातकों ने वैश्विक बाजार में अब दूसरे ग्राहकों की तलाश शुरू कर दी है।

जितना बासमती, उतना क्रूड का समझौता
अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ के मुताबिक अकेले बासमती चावल के निर्यात से 30 हजार करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। ईरान सरकार से पिछले साल ही एक निर्यात समझौता हुआ था, जिसके तहत बासमती निर्यात के मूल्य के बराबर भारत को क्रूड ऑयल मिलना था।