Climate Change: प्रकृति के प्रति संवेदनहीन व्यवहार से धरती का बुखार बढ़ा: राजेंद्र सिंह

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जलवायु परिवर्तन पर कोटा विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित

कोटा। Seminar on Climate Change: विश्व जन आयोग बाढ़ सुखाड़ के अध्यक्ष एवं मेग्सेसे पुरस्कार विजेता डॉ. राजेंद्र सिंह ने कहा है कि प्रकृति के प्रति जो संवेदनहीन व्यवहार किया जाता है उसके परिणाम स्वरुप धरती का बुखार बढ़ रहा है। जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक सोच के साथ स्थानीय एक्शन प्लान से धरती पर हरियाली एवं पानी का काम बढ़कर धरती के बुखार को नियंत्रित किया जा सकता है।

राजेंद्र सिंह शुक्रवार को कोटा विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय जल बिरादरी एवं विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां एवं समाधान विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि हमारे देश में सामुदायिक विकेंद्रीकरण के तहत जल संरक्षण रचनाओं को व्यापक पैमाने पर सहेजना होगा। तरुण भारत संघ ने इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए 18000 जल संरचनाओं का निर्माण करवा कर एक दर्जन से अधिक छोटी बड़ी नदियों को पुनर्जीवित किया। चंबल बेसिन क्षेत्र में भी जल संरचनाओं को सुधार कर चंबल को सदा नीरा बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि जल जंगल और जीव के प्रति हमारे व्यवहार के कारण जलवायु परिवर्तन का संकट सामने है। वाटरमैन ने शिक्षा पद्धति को प्रकृति के शोषण के बजाय पोषण पर आधारित बनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हमें अपने परंपरागत जल प्रबंधन प्रणाली को पुनर्जीवित करना होगा। चंबल नदी को प्रदूषण, शोषण और अतिक्रमण से मुक्त करने की आवश्यकता है

उन्होंने कहा कि सामुदायिक जल प्रबंधन के माध्यम से खेती की किसानी और जवानी को बचाया जा सकता है। इस अवसर पर संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कोटा विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर नीलिमा सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय विभिन्न विभागों के माध्यम से धरती पर हरियाली बढ़ाने का काम किया जाना चाहिए और विश्वविद्यालय भी इसी पर विश्वास करता है‌।

कुलपति ने राजेंद्र सिंह की भावनाओं का सम्मान करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय परिसर में पानी की कमी को किस प्रकार पूरा किया जाए इसके लिए विश्वविद्यालय प्रशासन चिंतित है। वर्षा जल संग्रहण की संरचनाओं पर काम करने की जरूरत है। मुख्य वन संरक्षक आर के खेरवा ने बताया कि मुकुंदरा टाइगर रिजर्व की परिधि में संरचनाओं पर काम करके जंगल को समृद्ध बनाया जा सकता है। उन्होंने धारा के कैनवास क्षेत्र में परंपरागत जल प्रबंधन के काम पर जोर दिया।

विशिष्ट अतिथि स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के संस्थापक गोविंद राम मित्तल ने सरकार की नीतियों में कर्मियों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि समुचित नीति नहीं होने के कारण उद्योगों को भी पानी के संकट का सामना करना पड़ता है। मित्तल ने अपने व्याख्यान में कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए। मित्तल ने बताया कि डाइववर्जन चैनल बनने से कोटा शहर में भूगर्भ जल का संकट उत्पन्न हो गया है।

तरुण भारत संघ के प्रबंधक चमन सिंह ने कोटा के जल अभाव क्षेत्र मंडाना क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक जल संरचनाओं पर जन सहयोग से हो रहे कामों की विस्तृत जानकारी दी। संगोष्ठी की समन्वयक प्रोफेसर नीलू चौहान ने स्वागत भाषण में वर्षा जल संग्रहण की आवश्यकता को देखते हुए आगामी समय में विश्वविद्यालय की भूमिका पर चर्चा की।

चंबल संसद के समन्वयक बृजेशविजय वर्गीय ने अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए जल संकट के समाधान के लिए स्थानीय कार्यक्रमों की आवश्यकता जताई। इस अवसर पर संयोजन समिति की डॉक्टर श्वेता व्यास, डॉक्टर मृदुला खंडेलवाल, सपना भार्गव, डॉ. स्मृति जौहरी ने अतिथियों का स्वागत किया।

डॉक्टर पल्लवी शर्मा ने संगोष्ठी का संचालन किया। कार्यक्रम में गणमान्य नागरिकों में उपवन संरक्षक वन्य जीव अनुराग भटनागर, गायत्री परिवार के समाजसेवी जीडी पटेल, चंबल संसद के अध्यक्ष केबी नंदवाना, जल बिरादरी के अध्यक्ष सीकेएस परमार, बूंदी के विट्ठल कुमार सनाढ्य, वरिष्ठ जन कल्याण समिति के संस्थापक अध्यक्ष शंकर आसकंदानी, हम लोग संस्थान के डॉक्टर सुधीर गुप्ता, रविंद्र सिंह तोमर, डॉक्टर कृष्णेन्द्र सिंह, डॉ विनीत महोबिया, भवानी शंकर मीणा वन्य जीव विभाग के शोध छात्र मौजूद थे।