नई दिल्ली। तुवर की चालू फसल अनुमान से कहीं बहुत का रहने के साथ के साथ-साथ बर्मा में अस्थिर राजनीतिक माहौल के बीच वहाँ हाजिर में तुवर स्टॉक बहुत ही कम बताया जा रहा है, और ऐसे में आगे बनने वाली शॉर्टेज को देखते हुए आपूर्ति कमज़ोर रहने की आशंका बढ़ गयी है। जिससे दाल की बिक्री कमजोर रहने के बावजूद पिछले एक पखवाड़े से क़ीमतें एक सीमित दायरे में घटने के बाद फ़िर धीरे धीरे संभलने की तैयारी में दिख रही है।
हालाँकि, क़ीमतें ऊपर के स्तर से कुछ ज्यादा घटकर नीचे जरूर आयी है लेकिन कमज़ोर उत्पादन के साथ साथ सरकारी ख़रीद भी कम रहने से जड़ में मंदी की बात कोई नही कर रहा है। हालाँकि, बीते कुछ दिनों के दौरान क़ीमतें 100-200 रुपए नीचे जरूर आ गयी हैं। चैतुआ तुवर जो पहले प्रचुर मात्रा में आती थी, अब धीरे-धीरे सिमटती जा रही है। वर्तमान में महाराष्ट्र व कर्नाटक में खरीफ सीजन वाली तुवर की आवक कही ज़्यादा तो कही कम मात्रा में जारी है। लेकिन दोनों ही राज्यों की फसलों में प्रति हेक्टेयर उत्पादकता कम बैठने से सकल उत्पादन में 35/40 फ़ीसदी की कमी दर्ज की गयी है।
दूसरी ओर बर्मा में तख़्तापलट के बाद जारी सैन्य शासन के ख़िलाफ़ जनता के सड़कों पर उतरने से वहाँ राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बना हुआ है। जबकि बर्मा की नई फसल में उत्पादकता कमज़ोर रहने के साथ-साथ देश में हालात असामान्य बने रहने से वहाँ कारोबार करने में काफ़ी अड़चनों का सामना करना पड़ रहा है। जबकि दूसरी ओर,देश में प्रमुख तुवर आयातक बन्दरगाह मुंबई एवं मुंदड़ा पर आयातित तुवर का स्टॉक नहीं के बराबर शेष रहने की जानकारी मिल रही है।
हालाँकि,चेन्नई बंदरगाह पर पहले के आए कंटेनर का थोड़ा बहुत स्टॉक जरूर बताया जा रहा हैं और वर्तमान में लगभग कारोबार इन्हीं मालों से किया जा रहा हैं। बाज़ार के जानकार विशेषज्ञों के अनुसार जल्दी में किसी भी तरह के कोई नए कोई वेसल्स के तुवर लेकर भारतीय बन्दरगाह पर पहुँचने की ख़बर नहीं है। जबकि बर्मा में मार्शल-ला लगने से कारोबारी माहौल दहशत वाला हो गया है और इस माहौल में आयातक अभी किसी भी तरह के नए सौदे करने में हिचक रहे हैं,और इनमें से अधिकाँश का मानना है कि कहीं भुगतान न अटक जाए।
हालाँकि इस बार सरकार ने अगले वित्त वर्ष 2021-22 के प्राइवेट के 4 लाख टन के तुवर आयात कोटे की घोषणा करते हुए उसमे ट्रेडर्स की हिस्सेदारी भी सुनिश्चित करने की जानकारी दी है और कारोबारी जगत को काफ़ी राहत मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
उधर, जलगांव, शोलापुर, नागपुर एव पुणे लाइन की मिलें तुवर की लगातार सक्रियता के साथ खरीद कर रही है, जिससे इन मंडियों में ही देशी तुवर का व्यापार 6700/6800 रुपए प्रति क्विंटल पर सुना जा रहा हैं। जबकि अकोला मंडी में तुवर 2400 बोरी की आवक के बीच कारोबार 6450/6700 रुपये प्रति कुंतल औऱ बिल्टी व्यापार 25 रुपये की बढोत्तरी के साथ 6950/6975 रुपये प्रति कुंतल सुना गया।
लातूर व उदगीर में बिल्टी व्यापार लगभग 50 रुपये की बढ़ोत्तरी के साथ कृमशः 6950/7050 रुपये व 6825/6850 रुपये प्रति कुंतल रहा। जबकि दिल्ली दाल दलहन बाजार में लेमन तुवर का व्यापार 6550/6575 रुपये और महाराष्ट्र लाइन का व्यापार 6650/6900 रुपये प्रति कुन्तल पर मज़बूत रहा। गौरतलब रहे है कि वर्तमान में मध्य प्रदेश, बिहार एवं झारखंड में तुवर की नई फ़सल लगभग तैयार है लेकिन जानकार इन क्षेत्रों में क्षेत्रों में सब्जियों की बिजाई बढ़ने से उतपादन में गिरावट आने की आशंका व्यक्त कर रहे है।
दूसरी ओर, देश के लगभग बन्दरगाहों के साथ साथ उत्पादक क्षेत्रों की मंडियों में भी तुवर का देशी-विदेशी पुराना स्टाक बहुत कम शेष बचा है जबकि दाल मिलें भी वर्तमान में हैंड टू माउथ चल रही हैं। यही कारण है कि तुवर में थोड़ी सी ग्राहकी निकलते ही क़ीमतें 200/300 रुपए प्रति क्विंटल तक तेज सुनी जाने लगती है।
आगे अप्रैल माह से 15 जुलाई तक रहने वाली भरपूर शादियों में बिहार, बंगाल, असम, पूर्वी यूपी एवं मध्य प्रदेश में तुवर दाल की ख़पत बड़े पैमाने पर की जाती है। तुवर का कुल उत्पादन गत वर्ष बीते वर्ष देश तुवर का कुल उत्पादन 33-35 लाख टन के आसपास रहने का अनुमान है, हालाँकि शुरुआती दौर में अधिक बिजाई आंकड़ों के बाद इस बार भी अधिक रहने के अनुमान लगाए जा रहे थे, लेकिन बाद में पकने की अवस्था के समय मौसम का मिज़ाज बिगड़ने से अब उत्पादन निर्धारित अनुमान से कही कमज़ोर रहने की खबरें मिल रही है।
हालाँकि, देश की वार्षिक तुवर ख़पत बढ़ती हुई आबादी के साथ तेज़ी से बढ़ रही है। जानकार उत्पादन व आपूर्ति के बीच गहराते इस अन्तर को बर्मा सहित कुछ अफ़्रीकी देशों से तुवर का आयात करके पूरा किया जाता है। इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए तुवर के आगे के व्यापार में दूर-दूर तक जोख़िम नज़र नहीं आ रहे है।