बाड़मेर के रेतीले धोरों के बीच महक रही है केसर, जानिए कैसे हुआ कमाल

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बाड़मेर। केसर की खेती जन्नत ए हिंदुस्तान की शान है। यही केसर अब रेतीले बाड़मेर के एक खेत का नया ठिकाना नजर आ रही है। भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसे सरहदी बाड़मेर के चोखला गांव के किसान बाबूलाल ने रेत के धोरों में इसे लगाकर प्रगतिशील किसान के रूप में पहचान कायम की है। बाबूलाल के इस कारनामे से आसपास के किसान हैरान हैं।

वहीं इसके बारे में जानकारी लेने आ रहे है। पश्चिमी राजस्थान के रेतीले इलाके चौखला में कृषि कुंए होने के बाद इलाका आबाद हुआ है। अब कुछ मेहनती किसान रेतीली धोरों पर फसलों के साथ फल की पैदावार ले रहे है। अब यहां किसान नवाचारों से हर किसी को हैरत में डाल रहे है। इनमें बाबूलाल ने दो कदम आगे बढ़ाते हुए खुद के खेत मे केसर की खेती कर डाली है।

किसान बाबूलाल ने बताया कि गत वर्ष उन्होंने अपने रिश्तेदार के खेत में केसर के पौधे देखे, तो खुद ने भी खेती करने का मानस बनाया है। रिश्तेदार से केसर की खेती करने की सारी विधि समझी। फिर पिछले साल अगस्त में एक बीघा भूमि में गाय के गोबर की खाद डालकर जमीन को तैयार की। अक्टूबर के पहले हफ्ते में केसर का रोपण किया। इस साल फरवरी में केसर के पौधे पूरी तरह तैयार हो चुके और इन पर फूल आ गए है। मार्च के पहले हफ्ते में पूरे परिवार ने मिलकर केसर के फूलों को चुनना शुरू कर दिया है।

बाबूलाल ने आगे बताया कि अभी करीब 10 से 15 किलो केसर लगी हुई है। उन्होंने बताया कि केसर का पौधा 6 महीने में तैयार हो जाता है। एक बीघा भूमि में एक किलो बीज का रोपण किया। है। इसके अलावा एक लाख रुपए खाद इत्यादि पर भी खर्च हुए है।केसर की खेती के इस कारनामे में बाबूलाल की पत्नी लहरों देवी बराबर की हिस्सेदार है। वह बताती है कि कड़ी मेहनत और लगन सफल हुई।

गोबर की खाद का कमाल
आज लोगो के लिए अचरज बन चुके बाबूलाल ने बताया कि धोरों की धरती में केसर की खेती के लिए गोबर की खाद श्रेष्ठ है। पौधों को धूप से बचाना जरूरी है। पांच माह बाद केसर के पौधे पर डोडे लगने शुरू हो जाते हैं, उनमें केसर के फूल लगते हैं। इन पर पत्तियां लगती हैं। ये 2-3 दिन में पीले से लाल होनी शुरू हो जाती हैं। लाल होने पर इन्हें 48 घंटे के अंदर चुनना जरूरी होता है, अन्यथा ये खराब हो जाती हैं। उल्लेखनीय है कि एक तरफ जहां रेत के दरिया में बरसों तक अभाव और अकाल को ही स्थाई निवासी माना जाता था लेकिन बदलते परिवेश और यहाँ के खेतिहारो की मेहनत से अब यहां नई इबारत लिख दी है।