अब खेती किसानी पर भी लगेगा GST, ऐसे समझिए सरकार की मंशा को

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मुंबई। केंद्र सरकार खेती-किसानी के क्षेत्र में सुधार के लिए तीन विधेयक (बिल) लाई है। इन विधेयकों को लोकसभा पारित कर चुकी है। इसे लेकर पिछले कुछ दिनों से देश में किसानों का प्रदर्शन जारी हो गया है। खासकर उत्तर भारत के किसान इसे लेकर उग्र रूप अपना लिए हैं। इन तीनों ही कानूनों को केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के दौरान 5 जून 2020 को ऑर्डिनेंस की शक्ल में लागू किया था। अब यह चर्चा के लिए राज्यसभा में जाएगा। वहां से पास होने पर कानून लागू हो जाएगा। यह बिल किस तरह से किसान विरोधी है या किस तरह से इसका फायदा है, यह हम आपको बता रहे हैं।

ये तीन विधेयक हैं विवाद के कारण
कृषि सुधारों वाले तीन विधेयक हैं- द फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फेसिलिटेशन) बिल 2020; द फार्मर्स (एम्पॉवरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑफ प्राइज एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेस बिल 2020 और द एसेंशियल कमोडिटीज (अमेंडमेंट) बिल 2020। पर इस बिल से एक बात स्पष्ट है कि इसके लागू होने से किसानों पर जीएसटी सहित तमाम तरह के टैक्स लग जाएंगे। दूसरी बात किसानों के साथ धोखाधड़ी होगी। तीसरी बात बिल तो आ गई है, लेकिन इसमें किसानों के साथ अन्याय होने पर उसकी जिम्मेदारी या भुगतान कौन करेगा यह तय नहीं है।

एमएसपी पर आरोप क्या हैं और सरकार के जवाब क्या हैं
-विपक्षी दल यह आरोप लगा रहे हैं कि इस बिल से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) खत्म हो जाएगा। पर कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने यह साफ किया है कि एमएसपी खत्म नहीं होगा।

द फार्मर्स (एम्पॉवरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑफ प्राइज एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेस बिल 2020

कानून से क्या होगा– इसमें मुख्य रूप से कांट्रैक्ट पर खेती कराने की बात है। सरकार का दावा है कि खेती से जुड़े जोखिम किसानों के नहीं, बल्कि जो उनसे एग्रीमेंट करेंगे, उन पर शिफ्ट हो जाएगा। किसान एग्री-बिजनेस करने वाली कंपनियों, प्रोसेसर्स, होलसेलर्स, एक्सपोर्टर्स और बड़े रिटेलर्स से एग्रीमेंट कर आपस में तय कीमत पर उन्हें फसल बेच सकेंगे। इससे उनकी मार्केटिंग की लागत बचेगी। दलाल खत्म होंगे। किसानों को फसल का उचित मूल्य मिलेगा।

एग्रीमेंट में सप्लाई, क्वालिटी, ग्रेड, स्टैंडर्ड्स और कीमत से संबंधित नियम और शर्तें होंगी। यदि फसल की कीमत कम होती है, तो भी एग्रीमेंट के आधार पर किसानों को गारंटेड कीमत तो मिलेगी ही।

किसान क्या कहते हैं
खेती को सेवा का दर्जा जो दिया जा रहा है, जैसा कि बिल में ही है, उससे बहुत कुछ नुकसान होगा। सेवा सेक्टर जीएसटी के दायरे में आता है। और इसके तहत 18 प्रतिशत जीएसटी किसानों पर लगाया जाएगा। खेती को कॉर्पोरेट के जरिए अब चलाया जाएगा। इसमें टैक्स के बारे में स्पष्ट नहीं है। कुछ भी होगा सारे पावर जिला अधिकारी (डीएम) के पास हैं। किसानों के पास इतना समय या डीएम के पास इतना समय है कि वह इस मामले में देखेंगे?

दूसरी बात अगर खेती में नुकसान होगा तो इसका जिम्मा किसानों पर डाल दिया जाएगा। साथ ही किसान की रक्षा या पेमेंट की कोई गारंटी नहीं है। इसमें सरकार को चाहिए कि या तो वह गारंटी दे या फिर बैंक गारंटी दे।

द फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फेसिलिटेशन) बिल 2020
कानून से क्या होगा-ऐसा इको-सिस्टम बनेगा, जहां किसान मनचाहे स्थान पर फसल बेच सकेंगे। इंटर-स्टेट और इंट्रा-स्टेट कारोबार बिना किसी अड़चन कर सकेंगे। किसानों की मार्केटिंग लागत बचेगी। जिन इलाकों में किसानों के पास अतिरिक्त फसल है, उन राज्यों में उन्हें अच्छी कीमत मिलेगी। इसी तरह जिन राज्यों में शॉर्टेज है, वहां उन्हें कम कीमत में वस्तु मिलेंगी।

किसान क्या कहते हैं
इसमें मार्केटिंग के एमएसपी की कोई गारंटी नहीं है। यहां किसानों के हितों की रक्षा की बजाय व्यापारियों की रक्षा की गई है। किसान और व्यापारी दोनों के अंतर को समझना होगा। इसमें किसान को उचित मूल्य नहीं मिलेगा। इस बिल में स्वामिनाथन कमेटी की सिफारिश को लागू की जाए।

एसेंशियल कमोडिटी (अमेंडमेंट) ऑर्डिनेंस
कानून से क्या होगा-इस कानून से कोल्ड स्टोरेज और फूड सप्लाई चेन के आधुनिकीकरण में मदद मिलेगी। यह किसानों के साथ ही उपभोक्ताओं के लिए भी कीमतों में स्थिरता बनाए रखने में मदद करेगा। स्टॉक लिमिट तभी लागू होगी, जब सब्जियों की कीमतें दोगुनी हो जाएंगी या खराब न होने वाली फसल की रिटेल कीमत 50% बढ़ जाएगी। अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाया गया है। इससे उत्पादन, स्टोरेज, मूवमेंट और डिस्ट्रीब्यूशन पर सरकारी नियंत्रण खत्म हो जाएगा।

युद्ध, प्राकृतिक आपदा, कीमतों में असाधारण वृद्धि और अन्य परिस्थितियों में केंद्र सरकार नियंत्रण अपने हाथ में ले लेगी।

किसान क्या कहते हैं
यह किसान के लिए नहीं है, यह व्यापारियों के लिए है। किसान अनाज का स्टॉक तब करेंगे जब प्रोसेसिंग हो सकेगी। अब प्रोसेसिंग किसान कैसे कर पाएगा? अगर उसके पास इतना ही इंफ्रा और समय होता तो वह खेती की बजाय बिजनेस करता। प्रोसेसिंग कर भी ले तो जो वह बेचेगा, उस पर टैक्स लगेगा।

सरकार क्या कह रही है?
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का कहना है कि यह तीनों ही प्रस्तावित कानून भारत में किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद करेंगे। सरकार का फोकस किसानों को आत्मनिर्भर बनाने पर है। इसके लिए हर गांव में गोदाम, कोल्ड स्टोरेज बनाने की योजना पहले ही घोषित हो चुकी है। किसान रेल भी शुरू की है। ताकि किसानों को उनके माल की ज्यादा कीमत मिल सके।

किसान क्या कहते हैं- किसान कहते हैं कि यह जो भी कोल्ड स्टोरेज, गोदाम आदि की बात है यह तो पूरी तरह से कॉर्पोरेटाइज की बात है। किसान के पास इतना पैसा कहां है कि वह यह सब कर सके? यह पूरी तरह से पूंजीपतियों के लिए है।