- चक्कर काटने को मजबूर कर्मचारी, कोरोना काल में आई भूखों मरने की नौबत
- अब कर्मचारी परिवार समेत सीएमओ पर करेंगे आमरण अनशन, प्रदर्शन
कोटा। प्रदेश की बिजली कंपनियों के 4 हजार कर्मचारी पेंशन लाभ लेने के लिए आफिस दर ऑफिस भटकने को मजबूर हैं। प्रदेश की पूर्व में आरएसईबी (RSEB) और बाद में पांचों कंपनियों से जुड़े रहे 50 हजार कर्मचारियों में से 46 हजार कर्मचारियों की पेंशन चालू कर दी गई। लेकिन, शेष बचे 4 हजार कर्मचारियों को अपनी पेंशन को शुरू कराने के लिए भटकना पड़ रहा हैं।
इस मामले को लेकर सीपीएफ विद्युत कर्मचारी कल्याण समिति के अध्यक्ष रमेश चन्द मीना तथा महामंत्री अशोक कुमार जैन ने मंगलवार को प्रेसवार्ता कर पत्रकारों को जानकारी दी। उन्होंने कहा कि बिजली प्रसारण निगम की हठधर्मिता के कारण से कर्मचारियों को भूखों मरने की नौबत है। ऐसे में, अब परिवार समेत विधानसभा, विद्युत भवन, ऊर्जा मंत्रालय, सीएमओ पर धरना, प्रदर्शन और अनशन करने की तैयारी की जा रही है।
उन्होंने बताया कि कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा के लिहाज से शिवचरण माथुर की तत्कालीन सरकार की सिफारिश पर विद्युत मंडल ने पेंशन योजना 1988 लागू की थी। जिसे गेजेट नोटिफिकेशन सरकार की स्वीकृति और सीपीएफ कमिश्नर से छूट प्राप्त जैसी औपचारिकताओं के बिना ही लागू कर दिया गया। जबकि तत्कालीन आरएसईबी (RSEB) के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स ने औपचारिकताएं करने का निर्णय किया था। लेकिन स्वीकृति नहीं ले पाने के कारण से कर्मचारियों में असमंजस की स्थिति बन गई।
योजना के विकल्प पत्र भरने की समय सीमा पहली बार सेवानिवृति से 6 माह पूर्व, दूसरी बार 8 माह पूर्व और तीसरी बार 19 फरवरी 2000 तय की गई। लेकिन, कर्मचारियों से अचानक 30 जून 1997 को ही स्कीम को बंद करते हुए पेंशन विकल्प लेना बंद कर दिया गया। जबकि सीपीएफ कमिश्नर से 30 सितंबर 1997 तक छूट प्राप्त थी।
ऐसे में बिजली प्रसारण में दूर दराज के क्षैत्रों में काम करने वाले कार्मिकों को इसकी जानकारी ही नहीं हो पाई। इस कारण से 50 हजार में से 4000 कर्मचारी पेंशन विकल्प पत्र भरने से वंचित रह गए। स्कीम को बंद करने का निर्णय भी बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स की मीटिंग में नहीं लिया गया।
समिति के मुख्य सलाहकार इकबाल हुसैन पठान ने बताया कि 4000 वंचितों को पेंशन देने के लिए चरण गुप्ता कंपनी को 5 लाख फीस देकर वित्तीय भार की गणना कराई गई। जिसने 20 वर्षों के लिए 478.36 करोड़ का वित्तीय भार बताया था।
वहीं, आरवीपीएन के वित्त निदेशक पत्र 3811/13-01-20 के माध्यम से 5000 करोड़ का वित्तीय भार बताकर विभाग और सरकार को गुमराह कर रहे हैं, जो तथ्यात्मक नहीं है। यदि सरकार वंचित कर्मचारियों को पेंशन का फैसला नहीं लेती है तो परेशान कर्मचारी परिवार समेत अनशन करने को मजबूर होंगे। वहीं आगामी निकाय चुनावों में पूरे राजस्थान में चुनावों का बहिष्कार करेंगे।
त्रिपक्षीय सुनवाई की मांग
अध्यक्ष रमेश चन्द मीना ने पत्रकारों को बताया कि राजस्थान की तत्कालीन अशोक गहलोत सरकार ने आरएसईबी का विभाजन कर पांच बिजली कंपनियों में बदला था। उस समय सीएम गहलोत ने कहा था कि किसी कर्मचारी के आर्थिक हित प्रभावित नहीं होंगे। लेकिन आरएसईबी की जिम्मेदारी को प्रसारण निगम उठाने में अक्षम साबित हुआ है।
कर्मचारी मामले को लेकर ऊर्जा मंत्री, मुख्यमंत्री, बिजली कंपनियों के प्रशासनिक अधिकारियों से मिल चुके और प्रधानंत्री तथा केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री को भी ज्ञापन भेज चुके, लेकिन कोई निर्णय नहीं हो पाया है। मामले को लेकर सिंगल बैंच, डबल बैंच और हाईकोर्ट ने कार्मिकों को पेंशन का हकदार माना है। जिस पर भी प्रसारण निगम अमल करने को तैयार नहीं है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि मामले को लेकर त्रिपक्षीय सुनवाई के लिए निष्पक्ष मंत्री की नियुक्ति की जाए।
4 हजार में से केवल ढाई हजार ही बचे हैं
उन्होंने बताया कि गेजेट नोटिफिकेशन के समय 50 हजार कर्मचारियों के लिए टैरिफ के माध्यम से फंड बनाया गया था। इनमें से 46 हजार कर्मचारियों के पेंशन लाभ प्राप्त करने के बाद 4 हजार कार्मिक पेंशन लाभ प्राप्त करने से वंचित रह गए थे। अब इन कर्मचारियों में से तकरीबन 1500 कर्मचारी पेंशन की आकांक्षा मन में लिए ही दिवंगत हो चुके हैं।
ऐसे में अब केवल ढाई हजार कर्मचारी ही शेष बचे हैं। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार ने बीमा और बैंक जैसे क्षैत्रों में पेंशन लाभ से वंचित रहे कर्मचारियों को विकल्प पत्र भरने का अवसर दिया है। ऐसा ही कुछ अन्य राज्यों में भी हुआ है, लेकिन राजस्थान सरकार में प्रसारण निगम के अकाउंट विंग के मुखिया रोड़े अटका रहे हैं। जबकि बाहर से आने वाले नए लोगों पेंशन लाभ दिया जा रहा है।