नई दिल्ली। लद्दाख की गलवां घाटी में चीनी सैनिकों ने अपने स्थान से पीछे हटना शुरू कर दिया है। भारतीय सेना भी अपने स्थान से पीछे हटी है। समाचार एजेंसी एएनआई ने बताया है कि 48 घंटों तक चली गहन कूटनीतिक चर्चा, सैन्य जुड़ाव और संपर्क के चलते चीनी सैनिक पीछे हटने को तैयार हुए हैं। एनएनआई ने बताया कि इन बैठकों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लेह यात्रा हुई, जिससे चीन को एक निर्णायक और दृढ़ संदेश गया।
वहीं, भारतीय सेना के सूत्रों ने बताया है कि दोनों देशों के बीच आपसी सहमति के बाद पूर्वी लद्दाख के चार प्वाइंट्स, जिनमें पेट्रोलिंग प्वाइंट 14 (गलवां घाटी), पेट्रोलिंग प्वाइंट 15, हॉट स्प्रिंग्स और फिंगर क्षेत्र से चीनी सेना पीछे हटी है।
सूत्रों ने बताया कि सीमा विवाद को लेकर कोर कमांडर स्तर की बैठक में लिए गए निर्णय के अनुरूप चीनी सेना ने विवाद वाले क्षेत्र से टेंट, वाहनों और सैनिकों को 1-2 किलोमीटर पीछे कर लिया है। सूत्रों ने बताया है कि चीनी भारी बख्तरबंद वाहन अभी भी गलवां नदी क्षेत्र के गहराई वाले इलाके में मौजूद हैं। हालांकि, भारतीय सेना सतर्कता के साथ स्थिति की निगरानी कर रही है।
सूत्रों ने बताया है कि चीनी सैनिक पेट्रोलिंग प्वाइंट 14 से पीछे हटे हैं। बता दें कि, यहीं पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हुई थी। बताया गया है भारतीय सेना भी थोड़ा पीछे हटी है। वहीं, चीनी सैनिकों की इस स्थिति को लेकर भारतीय सेना की तरफ से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
सूत्रों ने कहा है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत के जिम्मेदार रुख और संदेश को विश्व स्तर पर मान्यता मिली हुई है। बीजिंग में भारत-चीन संबंधों के जानकारों की भी यही राय है कि वर्तमान सीमा विवाद को हल किया जाना चाहिए। सूत्रों ने कहा है कि भारत ने बीजिंग को एक निर्णायक संदेश दिया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा उसके लिए सर्वोपरि है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजील डोभाल और चीन के विदेश मंत्री इस बात पर सहमत हुए हैं कि दोनों देशों को भारत-चीन सीमा पर शांति को बढ़ावा देना चाहिए और द्विपक्षीय रिश्तों को बढ़ाना चाहिए। साथ ही दोनों देशों को मतभेदों को विवाद के रूप देने से बचना चाहिए। विदेश मंत्रालय ने इस बात की जानकारी दी है।
मंत्रालय ने बताया कि इस तरह चीनी सेना ने एलएसी के पास तैनात अपने जवानों को पीछे भेज दिया और सीमा पर शांति स्थापित करने की प्रक्रिया में तेजी ले आई। इस संबंध में, वे आगे इस बात पर सहमत हुए कि दोनों पक्षों को एलएसी पर तनाव कम करने को लेकर चल रही प्रक्रिया को शीघ्रता से पूरा करना चाहिए। दोनों पक्षों को कई स्तरों पर सेनाओं को पीछे भेजना चाहिए।
विदेश मंत्रालय ने कहा कि उन्होंने फिर से पुष्टि की कि दोनों पक्षों को वास्तविक नियंत्रण रेखा का पूरी निष्ठा से सम्मान करना चाहिए और निरीक्षण करना चाहिए। साथ ही यथास्थिति को बदलने के लिए एकतरफा कार्रवाई नहीं करनी चाहिए और भविष्य में किसी भी घटना से बचने के लिए एक साथ काम करना चाहिए, ताकि तनाव की स्थिति से बचा जा सके।
बता दें कि, 30 जून को तनाव कम करने के लिए हुई बैठक में दोनों पक्षों ने तय किया था कि चीनी सेना निर्माण संरचनाओं, जवानों और सेना के वाहनों को गलवां घाटी से तीन दिन में हटाएगी। वहीं, पैंगोंग त्सो और हॉट स्प्रिंग्स से पांच दिनों के भीतर पीछे हटना होगा। हालांकि, पैंगोंग में फिंगर क्षेत्र में सैन्य निर्माण का समाधान खोजने में समय लगने की संभावना थी।
गौरतलब है कि, गलवां घाटी में 15-16 जून की दरमियानी रात भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हो गई थी। इस झड़प में सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे। शहीद जवानों में कर्नल रैंक के एक अधिकारी भी शामिल थे। वहीं, इस हिंसक झड़प में चीनी पक्ष के भी 43 जवान हताहत हुए थे। हालांकि, चीन ने अपने हताहत सैनिकों के बारे में जानकारी साझा नहीं की।
सीमा पर हुई झड़प के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव अपने चरम पर पहुंच गया है। सीमा पर तनाव का असर देश में देखने को मिलना शुरू हो गया है। हाल ही में, भारत सरकार ने टिकटॉक समेत चीन के 59 एप्स पर प्रतिबंध लगा दिया था।
झड़प में शहीद हुए जवानों को लेकर देश में लोगों के बीच चीन के प्रति आक्रोश है। लोग चीनी सामानों का बहिष्कार कर रहे हैं। भारत सरकार ने भी चीनी कंपनियों को दिए गए प्रोजेक्ट को रद्द करना शुरू कर दिया है।