कोटा। महावीर नगर विस्तार योजना दिगम्बर जैन मंदिर में चल रहे आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी ससंघ के पावन वर्षायोग के दौरान प्रवचन करते हुए माताजी ने कहा कि हमें अपने धर्म में बताए सन्मार्ग पर चल कर अपना जीवन सार्थक करना चाहिए।
सत्संग समय नहीं देखता, समर्पण देखता है। वह समर्पण उन बादलों की भांति होता है, जो बरसने से पहले धरती पर उमड़ता और घुमड़ता है। लेकिन, यह बादल धरती पर कितने दिन बरसते हैं। यह समय ही बताता है। समर्पण एक त्याग है, जो हर व्यक्ति नहीं कर पाता।
जैन दर्शन कहता है कि संसार में छोटे से छोटे जीव भी हो तो उनमें भी परमात्मा बनने की शक्ति विद्यमान है। केवल भगवान के दर्शन से मनुष्य अपने पापों का अन्त कर सकता है। जैन दर्शन में जिन दर्शन का बहुत बड़ा महत्त्व बताया है। दर्शन पाठ में कहा है कि जिनेन्द्र देव का दर्शन पाप को नाश करने वाला है।
संसार के अधिकतर प्राणी सुख की आशा में इन्द्रिय विषयों अर्थात वस्तुओं के पीछे भाग रहे है, परन्तु उन्हें फिर भी सुख प्राप्त नहीं होता है। जब तक पुण्य नहीं होगा तब तक पुण्य का फल शांति, आनन्द प्राप्त नहीं हो सकता है।
पुण्य बैंक बैलेंस के समान है यदि बैंक में बैलेंस हैं तो धन प्राप्त कर सकते है। किन्तु खाते में बैलेंस नहीं तो कुछ भी प्राप्त नही होता। इसलिए, जिन दर्शन कर पाप का अंत करें और पुण्य में वृद्धि करें।