आध्यात्मिक चेतना का सशक्त माध्यम है योग : आर्यिका सौम्यनन्दिनी

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कोटा। दिगंबर जैन मन्दिर महावीर नगर विस्तार योजना में चातुर्मास कर रही आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी ने अपने प्रवचन में कहा कि योग आध्यात्मिक चेतना के जागरण का एक सशक्त माध्यम है। जो हमें मानचित्र, विचार, भाव, प्राण और आत्मा की शुद्धि के द्वारा परमतत्व से जोड़ता है। परमानंद और शांति की अनुभूति ही योग दर्शन के रूप में प्रकट होती है।

आर्यिका ने कहा कि योग का केंद्र चित्त को माना जाता है। चित्त की वृत्तियों को यदि निग्रह यानी नियमन या नियंत्रण हो गया तो जीवन की सारी समस्याओं का समाधान स्वयं हो जाएगा। आज के दौर में तो व्यक्ति अपनी लालसाओं को पूरा करने की होड़ में सबसे आगे निकलने को आतुर हैं।

साध्वी सौम्यनन्दिनी ने कहा कि यह दौड़ उसमें लालच, स्वार्थ, ईष्या, क्रोध, अहंकार जैसी जानलेवा दुष्प्रवृत्तियां जगा सकती हैं। यह दूसरों से ज्यादा तो उसके खुद के लिए ही हितकर है, जिससे असीमित तनाव व हताशा (डिप्रेशन) जैसे शारीरिक व मानसिक विकार उत्पन्न होते हैं। इनका केंद्र तो चित्त या मन ही है। वह संयमित और संतुलित होगा तो जीवन की सही दिशा और गति तय कर सकता है।