पटना। बचपन से अपने ‘महिला शरीर’ में खुद को असहज महसूस कर रही सौम्या आखिरकार आठ वर्षों की जटिल कानूनी प्रक्रिया और मेडिकल जांच के बाद स्त्री शरीर से मुक्त हो गई। अब वह पूरी तरह पुरुष बन चुकी है। 31 वर्ष की सौम्या का नया नाम समीर है। तमाम कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद युवती को जटिल ऑपरेशन से गुजरना पड़ा।
दरअसल, सौम्या ने दस दिन पूर्व पटना अपने परिजनों को फोन कर बेंगलुरु बुलाया था, जहां इस बात की जानकारी सौम्या के पिता को हुई कि उनकी बेटी अब सौम्या नहीं समीर बन गई है। अपने नाम का नामकरण भी उसने खुद किया था। बताया जा रहा कि जल्द ही समीर की शादी होनेवाली है।
युवती से युवक बनने की कहानी
युवती से युवक बनने की यह कहानी समीर भारद्वाज की है। वह समस्तीपुर जिले के मुजौना गांव के रहने वाले हैं। उनके पिता डॉ. लक्ष्मीकांत सजल जाने-माने शैक्षिक लेखक-विश्लेषक हैं। बचपन से ही सौम्या के हाव-भाव लड़कों जैसे थे। न तो उसे लड़कियों के कपड़े पसंद थे और न ही लड़कियों वाले चप्पल-जूते।
लड़कियों के ड्रेस में वह सिर्फ स्कूल जाती थी। बाकी वक्त लड़कों जैसे कपड़े पहनकर घूमती। तब, वह पटना के केंद्रीय विद्यालय, शेखपुरा की छात्रा थी। वह स्कूल की क्रिकेट टीम में थी। अच्छे परफॉर्मेंस की वजह से उसे काफी अवार्ड तो मिले ही, बिहार की महिला क्रिकेट टीम में भी उसका चयन हुआ।
उसने कई राज्यों के साथ मैच खेले और विपक्षी टीमों को धूल चटाई। दसवीं के बाद जब कोचिंग करने वह कोटा गई, तो राजस्थान की महिला क्रिकेट टीम में शामिल होने का उसे आमंत्रण भी मिला।
बनी एरोनॉटिकल इंजीनियर
सौम्या राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान से बारहवीं पास करने के बाद बेंगलुरु में एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की। पढ़ाई पूरी करने के बाद एरोनॉटिकल इंजीनियर के रूप में नौकरी के लिए उसे देश-विदेश की कई कंपनियों से ऑफर मिले। उसने एक कॉर्पोरेट कंपनी को ज्वाइन कर उसके ‘सेटेलाइट प्रोजेक्ट’ में काम शुरू किया।
इस बीच उसने आस्ट्रेलिया से ‘एस्ट्रोफिजिक्स’ में डिप्लोमा का ऑनलाइन कोर्स भी किया। तीन वर्षों बाद उसने कंपनी बदल ली। आज की तारीख में वह एक अमेरिकन कंपनी में है। उसने ‘एयरपोर्ट मैनेजमेंट’ में एमबीए की पढ़ाई भी की।
दो वर्षों तक काउंसिलिंग के बाद शुरू हुई प्रक्रिया
बचपन से ही सौम्या ‘महिला शरीर’ से मुक्ति पाना चाहती थी। एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरा करने के बाद से ही वह इसमें लग गई। वह भी घर-परिवार के सदस्यों को बिना बताए। इसके लिए पहले उसे मनोवैज्ञानिक रूप से दो वर्षों की काउंसिलिंग के दौर से गुजरना पड़ा। उसके बाद मानसिक और शारीरिक स्तर पर कई घंटों की जांच चली।
तब कहीं जाकर ‘उसे जेंडर आइडेंटिटी डिस्फोरिया’ का सर्टिफिकेट मिला। ‘जेंडर आइडेंटिटी डिस्फोरिया’ के सर्टिफिकेट के आधार पर हॉस्पिटल में इंडोक्रियोलॉजिस्ट के विशेषज्ञ द्वारा हार्मोन की जांच की गई। इसके साथ और भी कई तरह की कठिन जांच हुई। फिर, हार्मोन थेरेपी शुरू हुईं। इस थेरेपी के जरिये शरीर में ‘मेल हार्मोन’ की मात्रा बढ़ाई गई। इससे ‘पुरुष शरीर’ के रूप में उनका ‘महिला शरीर’ बदलने लगा।
एक लाख में एक ही व्यक्ति में ही संभव है बदलाव
खास बात यह है कि एक लाख में एक शरीर में ही ऐसा शारीरिक बदलाव संभव होता है। इसके बाद शुरू हुई कानूनी प्रक्रिया। जब यह प्रक्रिया पूरी हो गई, तो सर्जरी की बारी आई। बेंगलुरु के एस्टर सीएमआइ हॉस्पिटल में देश के जाने-माने सर्जन डॉ. मधुसूदन ने डॉक्टरों की अपनी टीम के साथ गत 22 जून को सौम्या की जटिल सर्जरी की।
तकरीबन छह घंटे तक चली सर्जरी पूरी तरह सफल रही। और सौम्या का शारीरिक पुनर्जन्म समीर भारद्वाज के रूप में हुआ। सर्जरी पर हुआ लाखों का खर्च सौम्या की कंपनी ने उठाया। समीर भारद्वाज अब एरोनॉटिक्स की दुनिया में नई उड़ान भरने को तैयार हैं।