नई दिल्ली। साल 2018 के पहले 6 महीने में भारतीय कैपिटल मार्केट से करीब 48,000 करोड़ रुपए निकाले हैं, जो यह 10 सालों में सबसे बड़ी निकासी है। ग्लोबल क्रूड प्राइस में बढ़ोतरी और ट्रेड वार की चिंता, आउटफ्लो की मुख्य वजह है। इस दौरान उन्होंने डेट मार्केट से कुल 41,433 करोड़ रुपए जबकि जनवरी से जून के दौरान स्टॉक मार्केट से 6,430 करोड़ रुपए निकाले हैं। कुल मिलाकर 6 महीने में विदेशी निवेशकों ने भारतीय मार्केट से 47,836 करोड़ रुपए निकाले।
जनवरी-जून 2008 के बाद सबसे बड़ी निकासी
डिपॉजिटरी डाटा के अनुसार, फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (FPI) ने जनवरी-जून 2008 के दौरान कैपिटल मार्केट्स (इक्विटी और डेट) से 24,758 करोड़ रुपए निकाले थे। वहीं एफपीआई की हालिया निकासी, वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान 2008 में 41,216 करोड़ रुपए के आउटफ्लो से ज्यादा है। दिलचस्प बात यह है कि यह दूसरी बार है, जब एफपीआई ने साल के पहले छह महीनों में कैपिटल मार्केट पर मंदी का रुख ली है।
क्रूड कीमतों में बढ़ोतरी
रिलायंस सिक्युरिटीज के हेड ऑफ रिटेल ब्रोकिंग राजीव श्रीवास्तव ने कहा कि एफपीआई आउटफ्लो और इनफ्लो कई मैक्रो व माइक्रो फैक्टर्स पर निर्भर करता है। हमारे माइक्रो क्रूड प्राइस से जुड़ा हुआ है, जो जो भारत के लिए सबसे बड़ा इम्पोर्ट बिल है। क्रूड ऑयल में बढ़ोतरी से करंट अकाउंट डेफिसिट और उच्च घरेलू मुद्रास्फीति बढ़ी है।
करंट अकाउंट डेफिसिट बढ़ने का प्रेशर आईएनआर एक्सचेंज रेट पर पड़ता है और घरेलू स्तर पर महंगाई बढ़ने से ब्याज दरें बढ़ने पर दबाव होगा। कमजोर एक्सचेंज रेट्स और उच्च ब्याज दर से एफपीआई के लिए डॉलर रिटर्न कमजोर हुआ जिसकी वजह से वो अपना पैसा निकाल रहे हैं। इसके अलावा श्रीवास्तव ने कहा कि अमेरिकी ब्याज दरों में बढ़ोतरी एफपीआई निकासी की एक और वजह है।