गन्ने की राख से बनाई ग्रीन ब्रिक, लागत एक से तीन रुपए

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कोटा। बीटेक के स्टूडेंट्स ने गन्ने की राख से ईंट बनाने का तरीका ईजाद किया है। यह ईंट अन्य से हल्की है और सस्ती भी है। दस दिन के अंदर ही स्टूडेंट्स ने इसे तैयार किया है। सिविल इंजीनियरिंग के स्टूडेंट संजय सिंह, विवेक शर्मा व वसीम खान ने यह इनोवेशन किया है।

उन्होंने बताया कि इसमें 50 प्रतिशत मैटेरियल गन्ने की राख, 30 प्रतिशत पत्थर का चूरा व 20 प्रतिशत चूना रहा। इन सभी को मिक्स करके ईंट के सांचे में रखा गया है। नॉर्मल तापमान में रखकर उसको सूखने दिया। इसके बाद ईंट का रूप लिया।

इस ईंट की खासियत है कि इसको तराई की जरूरत नहीं पड़ती है। बाजार में मिलने वाले अन्य ईंटों की लागत करीब नौ से दस रुपए आती है। इस ईंट की लागत एक से तीन रुपए ही पड़ी। वहीं अन्य ईंटों का वजन तीन से साढ़े तीन किलो का रहता है। इसका वजन करीब दो से 2.5 किलो ही आया है।

41 प्रोजेक्ट किए गए प्रदर्शित
कॅरियर प्वाइंट यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स द्वारा तैयार किए गए ऐसे कई अच्छे प्रोजेक्ट देखने को मिले टेक्नोवेशन में। इस प्रदर्शनी में सोलर कार, इलेक्ट्रिक कार व हाईब्रिड बाइक की सवारी करने वाले रोमांचित हो उठे। हेल्थ व साइंस टेक्नोलॉजी के प्रोजेक्ट ने देखने को मिले। कंप्यूटर टेक्नोलॉजी से हाथ पर दौड़ता भेड़िया भी दर्शकों को खूब रास आया।

विभिन्न डिपार्टमेंट के कुल 41 प्रोजेक्ट प्रदर्शित किए गए। यूनिवर्सिटी के चांसलर प्रमोद माहेश्वरी, कॅरिअर पॉइंट के निदेशक ओम माहेश्वरी, सीपीयू के अकादमिक निदेशक गुरुदत्त कक्कड़, इलेक्ट्रिकल डिपार्टमेंट एचओडी कमल अरोड़ा सहित अन्यों ने अवलोकन किया। ग्लोबल पब्लिक स्कूल सहित विभिन्न स्कूलों, कॉलेजों व संस्थाओं के स्टूडेंट बड़ी संख्या में प्रोजेक्ट प्रदर्शनी देखने पहुंचे।

बिना मिट्टी के खेती की तकनीक तैयार की स्टूडेंट्स ने :बीएससी एग्रीकल्चर सैकंड ईयर के स्टूडेंट्स की टीम ने बिना मिट्टी की खेती की तकनीक तैयार की है। इसकी आइडिया उनको जापान व इजराइल में होने वाली खेती से मिला। इस टीम में कुलदीप अहीर, हेमंत जैन, मुरली मनोहर, जितेंद्र नागर, केशव कारपेंटर, मनोज सेन, मुकेश गुर्जर, देवकीनंदन व नितिन मेहता शामिल थे।

इसके तकनीक की तहत अलग अलग सीढ़ीनुमा आकार तैयार करके गोलाकार चीज में पौधों को लगाया जाता है। इस पंक्ति में आठ से दस पौधे लगाकर उनको बाल्टी में पानी की मोटर से पानी दिया जाता है। इसमें मिट्टी की जगह मिट्टी में शामिल पदार्थों को बतौर तरल पदार्थ के रूप में दिया जाता है। बाल्टी से पानी निकलकर विभिन्न पंक्तियों से गुजरता हुआ फिर से बाल्टी में आ जाता है। इससे पानी की भी बचत होती है।