वर्षा जल प्रबंधन को प्राथमिकता देने की जरूरत

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कोटा। भारत में जल ग्रहण विकास की आवश्यकता और वर्षा जल प्रबंधन पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार शुक्रवार को यहां इंजीनियर्स भवन में शुरू हुई।

मुख्य वक्ता देहरादून के इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट अमेरिका स्टेट सेंटर के पूर्व चेयरमेन डॉ. केपी त्रिपाठी ने उद्घाटन सत्र में कहा है कि जल ग्रहण विकास वर्षा जल प्रबंधन की आत्मा है और इसके बिना जल ग्रहण का कोई मतलब नहीं है। खेत का पानी खेत में और गांव का पानी गांव में की बाते बहुत होती है, लेकिन इस काम को कोई करता है क्या?

परियोजना पूरी होते ही स्वयंसहायता समूह भी गायब हो जाते है। पारदर्शिता और सशक्तिकरण और भागीदरी इसमें बड़ी आवश्यक है। नए तालाब बनाने के साथ ही पुराने तालाबों को बहाल करना जरूरी है दुर्भाग्य से इस पर काम नहीं हो रहा। गांवों में भूल बढ़ाने के लिए खेतों के मेड़ो की ऊंचाई 30 सीमी तक रखनी चाहिए।

मुख्य अतिथि कृषि विभाग के पूर्व निर्देशक वीके बगड़ा ने कहा कि वर्षा जल संग्रहण को अनिवार्य करने की आवश्यकता है अन्यथा भूगर्भ जल का गहरा संकट हो जाएगा। महानरेगा पानी के संग्रहण की अवधारणा पर ही बना था,लेकिन जिला परिषदों के द्वारा इसकी मूल भावना पर काम नहीं हुआ और सड़कों आदि के विकास पर काम हुआ।

कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि राजस्थान सरकार के मुख्यमंत्री जल स्वालम्बन योजना के अतिरिक्त निर्देशक सीताराम बंजारा ने कहा कि प्रदेश में 100 एमएम औसत वर्षा होती है। 12 जिले रेगिस्तान में है। 30 प्रतिशत भूमि बंजर है तथा 80 प्रतिशत पानी संग्रहण नहीं होता।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सीडा परियोजना के पूर्व मुख्य अभियंता कैलाश भार्गव ने कहा कि सघन वृक्षारोपण ही जल संवर्द्धन का कारक है। नीम, पीपल, बड़, सीसम आदि के परम्परागत वृक्षों को बढ़ावा दिया जाए। बेहतर वन प्रबंध नही जल प्रबंधन की कुंजी है।

स्वागत भाषण में इंस्टीट्यूट के चेयरमेन सीकेएस परमार ने कहा कि जल ग्रहण की धारा को नई दिशा देने की जरूरत है। जल ग्रहण के नाम पर हाईड़ोलोजिकल ढांचे बनाए गए है। तकनीक सत्र में कोटा एनवायरमेंटल सेनीटेशन सोसायटी की अध्यक्ष डॉ. सुसेन राज ने ईको इंजीनियरिंग डिजायन पर प्रजेंटेशन दिया।

गेल के अभियंता महेंद्र प्रताप ने कहा कि पानी की एक बूंद भी समुद्र में नहीं जाने दी जाए। समुद्र में मीठा पानी जाना पानी की हत्या के बराबर है।एनआरएम के अतिरिक्त आयुक्त सीएम पांडे ने भूमि क्षरण एवं सामाजिक आर्थिक विकास के लिए सतत फूडग्रेन प्रोडक्शन पर जोर दिया।