34 हजार करोड़ का जीएसटी चोरी, सरकार ने जताया संदेह

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नई दिल्ली। जुलाई-दिसंबर के बीच जीएसटी नेटवर्क में फाइल रिटर्न्स का प्राथमिक विश्लेषण करने पर संदेह पैदा हो रहा है कि कारोबारियों ने 34,000 करोड़ रुपये की टैक्स देनदारी छिपा ली है। यह मुद्दा शनिवार को आयोजित जीएसटी काउंसिल मीटिंग में उठा।

अब उन कारोबारियों को नोटिस भेजा जा सकता है कि जिन्होंने जीएसटी रिटर्न्स- 1 और जीएसटीआर- 3बी में अलग-अलग देनदारी बताई है। जीएसटीआर- 1 का इस्तेमाल अभी मुख्य रूप से सूचना के मकसद से हो रहा है।

1 अप्रैल से ई-वे बिल, GST काउंसिल की मुहर
विभागीय सूत्रों ने LEN DEN NEWS को बताया कि उन लोगों पर विशेष जोर दिया जाना है जिन्होंने दोनों रिटर्न फाइलिंग्स में बड़ा अंतर रखा है। साथ ही यह भी कहा कि जीएसटी लागू होने के बाद टैक्स की चोरी बढ़ी है।

कई मामलों में व्यक्तिगत करदाताओं की विस्तृत जानकारी का विश्लेषण करने के बाद परिणाम को राज्यों के साथ साझा किया जाएगा ताकि ‘संदेहास्पद’ लोगों पर कार्रवाई की जा सके।

लेकिन, संदेह का सिर्फ यही कारण नहीं है। सीमा शुल्क विभाग ने रिटर्न्स के आंकड़े का विश्लेषण करने के बाद बताया है कि आयातित उत्पादों की कीमत बहुत कम बताई गई है।

एक अधिकारी ने उदाहरण दिया कि हो सकता है 10,000 रुपये के मोबाइल फोन की कीमत 7,000 रुपये दिखाई गई हो। अधिकारियों को संदेह है कि ऐसा हर पायदान पर कम जीएसटी चुकाने के मकसद से किया गया।

GST रिटर्न की मौजूदा व्यवस्था 3 महीने बढ़ी
दरअसल, जीएसटी कलेक्शन अनुमान से लगातार कम रहे हैं क्योंकि सरकार टैक्स चोरी रोकने के विभिन्न पहलुओं को लागू करने में असफल रही है। इनमें खरीद-बिक्री की कीमत का पता लगाने के लिए इनवॉइस मैचिंग और फैक्टरियों से शोरूम तक सामान के पहुंचने की पूरी गतिविधि पर नजर रखने के लिए ई-वे बिल्स जैसे पहल शामिल हैं।

अधिकारियों का कहना है कि कई बिजनसमेन को लगा कि सरकार जीएसटीआर-1 और जीएसटीआर- 3बी का मिलान नहीं करनेवाली। इस वजह से भी कारोबारियों ने दोनों में अलग-अलग आंकड़े भरे।

हालांकि, टैक्स कंस्लटंट्स का कहना है कि दोनों में अंतर के उचित कारण भी हो सकते हैं क्योंकि टैक्स पेमेंट के वक्त कई महीनों से जमा इनपुट टैक्स क्रेडिट का इस्तेमाल मौजूदा अवधि के क्रेडिट के साथ किया जाता है।