नई दिल्ली। बैंकों की कर्ज वसूली करने में नाकामी उनके लिए अब गले की हड्डी बन गई है। हालत यह है कि बैंकों ने देश भर में अलग-अलग राज्यों में 18 हजार से ज्यादा कंपनियों के खिलाफ केस कर रखा है।
इन कंपनियों को बैंकों ने करीब 1.68 लाख करोड़ रुपए का कर्ज दे रखा है। जो कि उन्हें अब कंपनियों से नहीं मिल पा रहा है। बैंकर्स के अनुसार लंबी कानूनी प्रक्रिया की वजह से उनके लिए ये लोन वसूलना भी आसान नहीं है। सबसे ज्यादा केस महाराष्ट्र और दिल्ली में फाइल किए गए हैं।
रिपोर्ट में क्या हुआ खुलासा
ट्रांसयूनियन सिबिल की रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर 2017 तक देश के विभिन्न इलाकों में 18 हजार से ज्यादा मामले बैंकों ने अदालतों में फाइल कर रखे हैं। जिसमें से 1.68 लाख करोड़ रुपए ऐसे लोगों ने नहीं लिए हैं, जिन्होंने एक करोड़ रुपए से ज्यादा कर्ज ले रखा है।
बैंकों ने इनके खिलाफ देश के विभिन्न राज्यों में केस कर रखा है। इसके तहत अकेले महाराष्ट्र में 3595 मामले चल रहे हैं। उसके बाद दिल्ली में 919 , गुजरात में 906 केस चल रहे हैं। इसके अलावा 25 लाख रुपए से ज्यादा का लोन ले रखे 8594 विलफुल डिफॉल्टर हैं।
यानी ये ऐसे कर्जदार हैं जो जानबूझ कर कर्ज नहीं चुका रहे हैं। इन पर करीब 1.07 लाख करोड़ रुपए का बकाया है। विलफुल डिफॉल्टर के खिलाफ भी सबसे ज्यादा केस महाराष्ट्र में चल रहे हैं। जिसमें 1743 और पश्चिम बंगाल में 1009 केस फाइल किए गए हैं।
पीएसयू बैंकों के सबसे ज्यादा मामले
रिपोर्ट के अनुसार बैंकों के जो लोन फंसे हैं, उनमें सबसे ज्यादा मामले पब्लिक सेक्टर बैंकों के चल रहे हैं। दिसंबर 2017 तक पब्लिक सेक्टर बैंकों के 12600 से ज्यादा मामले चल रहे हैं। जबकि प्राइवेट सेक्टर बैंकों के 3800 से ज्यादा मामले चल रहे हैं।
बैंकर जी.एस.बिंद्रा के अनुसार बैंकों के लिए फंसे कर्ज वसूलना आसान नही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अदालत में मामला जाने के बाद लंबी प्रक्रिया शुरू हो जाती है। ज्यादातर कॉरपोरेट लोन में पर्सनल गारंटी नहीं होती है। ऐसे में बैंकों के लिए एसेट बेचकर पैसा वसूलना आसान नहीं होता है।
8.5 लाख करोड़ हो चुका है एनपीए
बैंकों के करीब 8.5 लाख करोड़ रुपए एनपीए हो चुके हैं। जिसमें से करीब 12 फीसदी लोन ऐसे हैं विलफुल डिफॉल्टर के हैं और उन पर बैंकों ने केस कर रखा है। इस मामले पर एसबीआई के पूर्व सीजीएम सुनील पंत का कहना है कि मौजूदा समय में लोन को मंजूरी देने में कमेटी एप्रोच चल रही है।
इस कमेटी में चार या पांच लोग होते हैं। बाद में लोन को लेकर कोई दिक्कत पैदा होती है तो किसी एक आदमी को ब्लेम करना मुश्किल होता है। अगर यह लोन किसी एक आदमी के सिग्नेचर से मंजूर हो जिसे इंडीविजुअल एप्रोच कहते हैं तो वह व्यक्ति इस प्रक्रिया में ज्यादा दिमाग लगाएगा क्योंकि इस प्रक्रिया में उसका पर्सनल स्टेक है।