हाड़ौती संभाग कोचिंग समिति ने रखा सरकार के समक्ष 5 सूत्रीय मांग पत्र
कोटा। हाड़ौती संभाग कोचिंग समिति ने लघु कोचिंग संस्थानों को सरकार की ओर से संबल दिए जाने की मांग की है। समिति के संभागीय अध्यक्ष बुद्धिप्रकाश शर्मा तथा जिला अध्यक्ष सोनिया राठौड ने बताया कि लघु कोचिंग संस्थान आर्थिक रुप से कमजोर क्षेत्रों में कम संसाधनों में पूरक शिक्षा और श्रेष्ठ परिणाम देने का काम कर रहे हैं।
जिन बस्तियों में शिक्षास्तर बहुत कम और सरकारी प्रयास नाकाफी हैं। वहां पर भी बच्चों को न्यूनतम सुविधा शुल्क में क्वालिटी शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है। वहीं नैतिक संस्कार भी दे रहे हैं। इन क्षेत्रों में कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण अभिभावक कईं बार न्यूनतम शुल्क देने की स्थिति में भी नहीं होते हैं। ऐसे में, सरकार को इन छोटे-छोटे शिक्षण संस्थानों को संबल प्रदान करने के उपाय करने चाहिए। आगामी बजट में इसे लेकर उचित नीति बनाने की जरूरत है।
समिति के महामंत्री धनेश विजयवर्गीय तथा वरिष्ठ उपाध्यक्ष ओमप्रकाश मेहता ने पत्रकारों को बताया कि 1 लाख से अधिक छात्र-छात्राओं वाले शिक्षण संस्थानों पर लागू किए गए मापदंड 100 से कम संख्या वाले कोचिंग संस्थान द्वारा फॉलो करना बहुत मुश्किल है। छोटे स्तर पर पूरक शिक्षा उपलब्ध करवा रहे कोचिंग संस्थानों को अलग नीति के माध्यम से मापदंडों में कुछ छूट दी जानी चाहिए।
प्रशासन द्वारा बड़े शिक्षण संस्थानों की तरह लघु शिक्षण संस्थानों पर डलने वाले अनावश्यक दबाव से मुक्ति दी जानी चाहिए। साथ ही, इन संस्थाओं को शहर शैक्षिक कार्यक्रमों एवं विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के कार्यक्रमों के लिए सामुदायिक भवन निशुल्क या अल्प शुल्क में उपलब्ध करवाया जाना चाहिए।
संभागीय संरक्षक राकेश मिश्रा तथा जिला संरक्षक आरके जांगिड़ ने कहा कि सरकार को लघु शिक्षण संस्थानों को जीएसटी से मुक्त किया जाना चाहिए। वहीं, एमएसएमई का लाभ लघु शिक्षण संस्थानों को भी प्रदान करने की योजना में शामिल करना चाहिए।
जिला उपाध्यक्ष अनिकेत प्रजापति ने बताया कि असामाजिक तत्वों द्वारा छोटे शिक्षण संस्थानों को अनावश्यक परेशान किया जाता है। ऐसे में, संस्थाओं एवं शिक्षकों का पक्ष जानकर ही पुलिस के द्वारा प्रति कार्रवाई की जाने के लिए आश्वस्त किया जाना चाहिए।
जिला संगठन मंत्री वीरेंद्र शर्मा ने बताया कि आठवीं 10वीं, 12वीं बोर्ड परीक्षा ली जानी चाहिए, क्योंकि इनके माध्यम से शिक्षा शिक्षक परीक्षा परिणाम में गुणवत्ता, श्रेष्ठता का उत्थान संभव हो सकता है। व्यवसायिक पाठ्यक्रम भी आठवीं से ही शुरू हो तो विद्यार्थी स्वावलंबी होकर स्वरोजगार की ओर बढ़ेगा तो इससे बेरोजगारी से देश और समाज मुक्त रह सकेगा।