कोटा। चंद्र प्रभु दिगंबर जैन समाज समिति की ओर से श्रमण श्रुतसंवेगी आदित्य सागर मुनिराज संघ का भव्य चातुर्मास जैन मंदिर ऋद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में जारी है। इस अवसर पर शुक्रवार को आदित्य सागर मुनिराज ने अपने नीति प्रवचन कहा कि जीवन में सफलता या पात्रता सिर्फ पैसे से नहीं बल्कि पुण्य के आधार पर मिलती है।
मनुष्य का भाग्य और नियति उसके कर्मों पर निर्भर करती है। हर व्यक्ति का नियोग और संयोग पहले से निर्धारित होता है। इस नियोग को न तो टाला जा सकता है, न ही जबरदस्ती बदला जा सकता है।
प्रवचन में कहा गया कि कई बार हमें वह चीज़ें नहीं मिलती, जिनकी हम उम्मीद करते हैं और बिना अपेक्षा के कुछ मिल जाता है। यह कर्म सिद्धांत का हिस्सा है। उन्होंने उदाहरण देते हुए समझाया गया कि किसी के पास भले ही साधना की क्षमता हो। परंतु जब तक नियति का उदय नहीं होता, वह सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। इसके साथ ही, जीवन में भक्ति और कर्म का विशेष महत्व बताया गया है।
पात्रता का निर्धारण कर्मों और नियति के अनुसार होता है। कई बार व्यक्ति चाहकर भी कुछ हासिल नहीं कर पाता। क्योंकि उसका कर्म उदय नहीं होता। ऐसे में व्यक्ति को स्थिरता और मन की शुद्धि बनाए रखनी चाहिए। क्योंकि यही भाव उसे आगे बढ़ने में मदद करते हैं।
जीवन में मानसिक स्थिरता और शुद्धता महत्वपूर्ण है। वर्तमान क्षण भविष्य की नींव है। इसलिए हर पल का सदुपयोग करना चाहिए। भविष्य अनिश्चित है, अतः वर्तमान में अपना सर्वश्रेष्ठ देना और जो मिला है, उसमें संतुष्ट रहना महत्वपूर्ण है।
इस अवसर पर चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज आदित्य, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, ऋद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, पारस कासलीवाल, पारस लुहाड़िया, दीपक नान्ता, पीयूष बज, दीपांशु जैन, राजकुमार बाकलीवाल, जम्बू बज, महेंद्र गोधा, पदम बाकलीवाल, अशोक पापड़ीवाल सहित कई शहरों के श्रावक उपस्थित रहे।