आवश्यक का अर्जन व शेष का विसर्जन करना सीखें: आदित्य सागर मुनिराज

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कोटा। चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन समाज समिति की ओर से आयोजित चातुर्मास पर जैन मंदिर रिद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में आदित्य सागर मुनिराज ने शुक्रवार को अपने नीति प्रवचन में जीवन प्रबंधन पर कहा कि मनुष्य को जीवन में आवश्यकता के अनुसार ही अर्जन करना चाहिए। उसे अर्जन व विर्सजन में संतुलन बनाए रखना चाहिए।

अर्जन व विसर्जन में संतुलन न हो तो स्वर्ग को भी मनुष्य नर्क के सामान कर देगा। उन्होंने कहा कि आवश्यक का अर्जन, शेष का विर्सजन ये मानव की प्रवृति होनी चाहिए। यदि अधिक बोझा लेकर चलेगा तो मोक्ष मार्ग की गति धीमी हो जाएगी। मुनि के पास अधिक बोझ नहीं होता है, इसलिए उसकी मोक्ष की गति तेज व सीधी होती है।

प्राणी जब अर्जन का द्वार खोलता है, तो उसे विसर्जन का द्वार भी खुला रखना चाहिए। जब कुछ छोडोगे, तभी कुछ मिलेगा। मनुष्य को अर्जन व विसर्जन के सिद्धांत को समझना होगा। जब आप गुरू भक्ति करते हो, उसे समय देते हो, मंदिर आते हो तो आप पुण्य अर्जित कर पाप का विसर्जन करते हो। यदि धन कमा रहे हो तो उसका विसर्जन दान रूप में अवश्य करें। वरना वह धन, दहेज, अस्पताल, आयकर की रेट या संतान को जाना निश्चित है। आप उसका उपयोग नहीं कर सकते हैं ।

आदित्य सागर मुनिराज ने कहा कि जब आप लिमिटेड होते हैं तभी आप अनलिमिटेड बनते हो। जब जीवन में नियम बनाएंगे, आप सीमित होंगे तो ही आप असीमित सुख प्राप्त कर सकते हैं। जो इस जीवन के साथ जाएगा उसके अर्जन में समय देना चाहिए। ज्ञान व चरित्र का अर्जन करना श्रेष्ठ है।

इस अवसर पर सकल जैन समाज के पूर्व अध्यक्ष राजमल पाटौदी, रिद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा सहित कई शहरों के श्रावक उपस्थित रहे।