अतीत को भूलकर वर्तमान में जीने की सोच अपनानी चाहिए: आदित्य सागर मुनिराज

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कोटा। भविष्य को सुंदर बनाने के लिए हमें वर्तमान में जीना होगा और भूतकाल में जो हुआ है उसे भूल कर आगे बढ़ना होगा। उन्होने कहा कि हम नकारात्मकता को जीवन में अधिक स्थान देते हैं। इससे सकारात्मकता की सोच पीछे हो जाती है। ​हमें अतीत को भूलकर वर्तमान में जीवन जीने की सोच अपनानी चाहिए।

यह बात आदित्य सागर जी मुनिराज ने चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन मंदिर समिति द्वारा आयोजित नीति प्रवचन में कही। जैन मंदिर रिद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में अध्यात्म विशुद्ध ज्ञान पावन वर्षायोग में मुनिराज ने अपने ज्ञान की वर्षा प्रवचनों के माध्यम से भक्तों पर की।

इस अवसर पर सकल दिगम्बर जैन समाज के कार्याध्यक्ष जे के जैन,चातुर्मास समिति के चातुर्मास समिति अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, ताराचंद बडला व इंदौर के सधर्मी बंधुओं को दीप प्रवज्जलन, चित्र अनावरण व पाद प्रच्छालन का अवसर प्राप्त हुआ।

आदित्य सागर महाराज ने कहा कि इस जीवन चक्र में जो चीजें प्रकृति में हमारे लिए नहीं लिखी है, हम उनकी उधेड़ बुन में लग जाते हैं और जीवन को कठिन बना लेते हैं । इसलिए जो हमें मिला है, उसे स्वीकार करें। यदि हासिल को आप चाहोगे तो आपके जीवन का आनंद दुगना हो जाएगा।

उन्होंने कहा कि जीवन में जो घटित हो चुका है, उसे बदला नहीं जा सकता है। हमें या तो गलतियां करके सीखना या समझदार बनकर दूसरों की गलतियों से सीख लेनी है। भूतकाल पछताने के लिए नहीं होता है। वह सीख लेने के लिए होता है।

उन्होंने कहा कि यदि हम भविष्य को सूर्य की भांति चमकाना चाहते हैं तो हमें प्रतिदिन लक्ष्य बनाकर कार्य करना होगा। यदि हमने 1 वर्ष इस परम्परा का निर्वहन कर लिया तो हमारे 100 में 95 प्रतिशत कार्य सिद्ध होंगे। उन्होंने कहा कि बडी इमारतें बनने में समय लगाता है। इसी प्रकार सफलता एक दिन में नहीं मिलती है। आपको परिश्रम व मेहनत करनी होती है, तभी कामयाबी प्राप्त होती है।