राजस्थान में तीन लाख राज्य कर्मचारियों पर लटकी तलवार, जानिए क्या है मामला

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नई दिल्ली। राजस्थान में फर्जी दस्तावेजों के जरिए नौकरी पाने के मामले सामने आने के बाद करीब 3 लाख कर्मचारियों की नियुक्ति सवालों के घेरे में आ गई है। राज्य की भजन लाल शर्मा के नेतृत्व वाली सरकार ने इस संबंध में कड़ा फैसला फैसला लिया है।

राजस्थान सरकार ने फर्जी डिग्री रैकेट का खुलासा होने के बाद पिछले पांच वर्षों में भर्ती किए गए तीन लाख राज्य कर्मचारियों की नियुक्ति प्रक्रियाओं की जांच करने का फैसला किया है। इन 3 लाख सरकारी कर्मचारियों की डिग्रियों की भी जांच की जाएगी। फर्जी दस्तावेजों के जरिए नौकरी पाने के मामले सामने आने के बाद भजन लाल शर्मा के नेतृत्व वाली सरकार ने यह फैसला लिया है।

सरकार को विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में कथित धोखाधड़ी की गतिविधियों की सूचना मिली है। ऐसी भी खबरें आई हैं कि डमी उम्मीदवारों का उपयोग करके सैकड़ों लोगों को आदिवासियों के लिए आरक्षित नौकरियां मिलीं, जिनके लिए कट-ऑफ तुलनात्मक रूप से कम है।

सरकारी आदेश में कहा गया है कि प्रत्येक विभाग को एक आंतरिक समिति बनाकर जांच करने के लिए कहा गया है। समिति इस बात का पता लगाएगी कि परीक्षा देने वाला और नौकरी करने वाला व्यक्ति एक ही है कि नहीं। समिति पिछले पांच वर्षों में भर्ती किए गए कर्मचारियों की जांच करेगी।

पीटीआई भर्ती परीक्षा आयोजित करने वाले राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड द्वारा सफल उम्मीदवारों के प्रमाणपत्रों की जांच के बाद फर्जी डिग्री के रैकेट का खुलासा हुआ है। इनमें से 60 प्रमाणपत्र चूरू के ओम प्रकाश जोगेंदर सिंह (ओपीजेएस) विश्वविद्यालय द्वारा जारी किए गए थे। राजस्थान पुलिस ने हाल ही में विश्वविद्यालय पर छापा मारा था। पुलिस ने पाया कि यह विश्वविद्यालय कथित तौर पर फर्जी और पिछली तारीख की डिग्रियां जारी कर रहा था। विश्वविद्यालय में केवल सात लोग स्टाफ के रूप में काम कर रहे थे।

जांच में पता चला कि ओपीजेएस यूनिवर्सिटी ने अब तक 43000 फर्जी डिग्रियां बांटी हैं। जम्मू-कश्मीर और दक्षिणी राज्यों से बड़ी संख्या में छात्रों को ऐसी फर्जी डिग्रियां मिली हैं। 5 जुलाई को विश्वविद्यालय के संस्थापक-मालिक जोगिंदर सिंह दलाल, पूर्व अध्यक्ष सरिता करवासरा और पूर्व रजिस्ट्रार जितेंद्र यादव को इस रैकेट में उनकी कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार किया गया था।