- सावधान, अगर आपने भी चेक जारी किया है तो लग सकता है लाखों का चूना
- साइबर ठगों ने कानपुर से जुड़े दो दर्जन से अधिक खाताधारकों के खाते से
कानपुर । चेक क्लीयरिंग की आनलाइन व्यवस्था के बाद बढ़े चेक क्लोनिंग के गुनहगार कानपुर में भी हैं। दिल्ली में पांच आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद एसटीएफ ने अपनी नजरें कानपुर में चेक क्लोनिंग से ठगी के मामलों पर गड़ा दी हैं।
बैंकों की जांच में क्लोन चेक में असली चेक वाले मैटीरियरल मिलने के बाद एसटीएफ ने यहां के आंकड़े जुटाने शुरू कर दिए हैं। इन चेक का आंकड़ा निकालने के बाद एसटीएफ की जांच के दायरे में वह प्रिंटिंग प्रेस भी आ गए हैं, जहां चेक प्रिंट होते हैं।
सीटीएस चेक की आनलाइन क्लीयरिंग के बाद साइबर शातिरों ने चेक क्लोन करने शुरू किए। चेक क्लोनिंग के जरिये ठगी करने वाले इतने शातिर हैं कि उन्होंने बड़ी सफाई से ऐसे चेक तैयार किए कि बैंक ऐसे मामलों को पकड़ न पाए।
यही कारण रहा कि साइबर ठगों ने कानपुर से जुड़े दो दर्जन से अधिक खाताधारकों के खाते से चेक क्लोन कर ठगी की और ढाई करोड़ रुपये से अधिक का चूना लगा दिया।
एक बैंक अधिकारी ने बताया कि जांच कराने पर पता चला कि चेक का कागज, स्याही, यूवी (अल्ट्रा वायलेट) लैंप और यूवी स्कैनर पर ब्लू और व्हाइट लोगो, वाटरमार्क, कलर, कोड सब सही निकले।
यानी शातिरों के पास बैंक के गोपनीय पेपर, स्याही और लोगो पहुंच चुके हैं। बैंकिंग उद्योग इसे अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा खतरा मान रहा है। इसकी रिपोर्ट मुख्यालय भेज दी गई है। वहीं एसटीएफ ने दिल्ली में पिछले सप्ताह पांच शातिरों को पकडऩे के बाद अब कानपुर को भी रडार पर ले लिया है।
शातिरों के पास चेक मैटीरियल के रूप में कागज, स्याही और लोगों कैसे पहुंचे एसटीएफ इस दिशा में जांच कर रही है। क्लोनिंग के शातिरों के रैकेट में प्रिंटिंग प्रेस और उïससे जुड़े कर्मचारियों की मिलीभगत भी हो सकती है। जांच के दायरे में इसे भी लिया गया है।
बैंकों के मत्थे पड़ता है बोझ
चेक क्लोनिंग से ठगी के मामलों में न तो बैंक की गलती मानी जाती है और न ही खाताधारकों की। ऐसे में ठगी के शिकार बैंक खाताधारकों को पूरी रकम वापस करने का प्रावधान है।
हालांकि यह रकम खाताधारक के मूल बैंक शाखा से न लेकर उस शाखा से वसूल की जाती है, जहां चेक का भुगतान करा लिया गया है। भुगतान कोई भी करे लेकिन भुगतना बैंक को ही पड़ता है। सेंट्रल बैंक ने अपने खाताधारकों को करीब एक करोड़ रुपये वापस किए हैं।
बैंक नंबर उपलब्ध कराते
बैंक चेक की छपाई करने के लिए प्रिंटर्स को खाताधारकों के नाम, नंबर, माइकर कोड, बेस कोड सब उपलब्ध कराते हैं। इसी आधार पर चेक की छपाई होती है। ये नंबर गोपनीय होते हैं।
ये हैं सुरक्षा मानक
-बार कोड और उसमें अंग्रेजी में वीओआइडी (वॉयड) लिखना जरूरी
-बैंक का यूवी लोगो
-बैंक का वाटरमार्क
-माइकर बैंड, जिस पर चेक नंबर, माइकर कोड, बेस नंबर और ट्रांजेक्शन नंबर हो – गीली अंगुली से पोछा जाए तो चेक का रंग छूटे
-ये हुए हैं मामले
– अगस्त 2017 में हैकर्स ने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया शुक्लागंज उन्नाव शाखा के सात क्लोन चेक लगाकर किसानों के 75 लाख उड़ाए
-जून 2017 में सेंट्रल बैंक मीरपुर छावनी शाखा के दो चेक लगाकर कारोबारी के 3.20 लाख उड़ाए
-गांधीग्राम की सेंट्रल बैंक से सीओडी सहकारी समिति को 2.87 लाख रुपये का चूना
-सेंट्रल बैंक पनकी पावर हाउस शाखा के क्लोन चेक लगाकर करीब ढाई लाख रुपये उड़ाए
-एसबीआइ आइआइटी शाखा के 16 क्लोन चेक लगाकर आइआइटी के खाते से करीब 50 लाख उड़ाए
-पीएनबी लाजपत नगर शाखा में गाजियाबाद की चेक लगाकर 24.5 लाख रुपये निकाले
-केनरा बैंक गोविंद नगर शाखा में आइसीआइसीआइ बैंक की क्लोन चेक लगाकर करीब आठ लाख की चपत
क्लोन चेक को रिजेक्ट कर दे
सीटीएस चेक की क्लीयरिंग में अब चेक के बजाय उसकी इमेज जाती है। इमेज से केवल खाता संख्या, रुपये, तारीख का ही मिलान हो पाता है। इमेज से ये पता नहीं चलता कि चेक असली है या नकली। वहीं बैंकों के सेंट्रलाइज क्लीयरिंग डिपार्टमेंट में भी पूरे इंतजाम नहीं है।
कई शाखाएं यूवी स्कैनर के बजाय लैंप से चेक की पड़ताल करती हैं। ऐसे में बैंक कर्मी चेक की जांच अंगुली गीली कर करते हैं। सीटीएस प्रणाली में चेक सुरक्षा पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। स्कैनर में ही यह व्यवस्था हो कि वह क्लोन चेक को रिजेक्ट कर दे।
राजेंद्र अवस्थी, सहायक मंत्री नेशनल कंफेडरेशन आफ बैंक इम्प्लाइज
पूरी पड़ताल होनी चाहिए।
हमारे लिए चिंता का विषय यह है कि चेक क्लोन करने वालों के पास बैंकों के इतने गोपनीय मैटीरियल कैसे पहुंच रहे हैं। ऐसे में किसी भी बैंक कर्मचारी के लिए जान पाना मुश्किल हो जाता है कि चेक असली या है नकली। बैंक कर्मचारी को संदेह की दृष्टि से देखने से पहले पूरी पड़ताल होनी चाहिए।
प्रदीप राय, उप महामंत्री नेशनल आर्गनाइजेशन आफ बैंक वर्कर्स