Student Suicide: कोचिंग के अच्छे परिणाम देकर भी आत्महत्या में अग्रणी क्यों है कोटा!

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छात्र की सुसाइड से बेखबर कोटा के कोचिंग संस्थानों में जश्न मनाया जा रहा है।

कोचिंग सिटी कोटा के संयुक्त प्रवेश परीक्षा में अच्छे परिणाम देने के बावजूद यहां रहकर तैयारी कर रहे कोचिंग छात्रों के आत्महत्या करने का कारण समझ से परे है। क्योंकि प्रशासनिक स्तर पर भी ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कोचिंग छात्रों के उत्साहवर्धन और उनका मनोबल बढ़ाने के लिए हर संभव कोशिश की जा रही है। कोटा में ही अल्प समय के लिए कोचिंग छात्र रह चुके वर्तमान के कोटा कलक्टर डॉ. रविंद्र गोस्वामी इस दिशा में काफी सार्थक प्रयास भी कर रहे हैं। कोचिंग छात्रों का मनोबल बढ़ाने की ऐसी ही कई सार्थक कोशिशें हो चुकी है लेकिन यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। 

-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा।
राजस्थान के कोचिंग सिटी कहे जाने वाले कोटा में मंगलवार को एक अवयस्क कोचिंग छात्र छत्तीसगढ़ राज्य के सूरजपुर जिले के निवासी शुभ कुमार चौधरी ने संयुक्त प्रवेश प्रवेश परीक्षा (जेईई) का परिणाम आने के साथ ही फांसी का फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली। वह महज 16 साल का था और कोटा के ज्यादातर कोचिंग संस्थान संचालक,हॉस्टल और मैस मालिक केन्द्र सरकार की लाई गई उस गाइड़ लाइन का विरोध कर रहे हैं जिसके मुताबिक कोचिंग संस्थानों में 16 साल से कम उम्र के छात्रों को दाखिला नहीं मिलेगा।

यहां उल्लेखनीय तथ्य यह है कि कोचिंग छात्र शुभ कुमार चौधरी ने न जाने किन परिस्थितियों से वशीभूत होकर आत्महत्या जैसा दुर्भाग्यशाली कदम उठाया लेकिन उसे महज 14 साल की अत्यन्त कम उम्र में ही कोचिंग के लिए कोटा भेज दिया था क्योंकि वह पिछले दो सालों से कोटा में रहकर कोचिंग कर रहा था। यह इस साल की किसी कोचिंग छात्र के आत्महत्या करने की चौथी घटना है और बोरखेड़ा में रहने वाली जिस कोचिंग छात्रा ने पिछले दिनों आत्महत्या की थी, वह भी दुर्योग से महज 19 साल की ही थी।

किसी अंजाम की आशंका के बिना निजी आर्थिक लाभ से वशीभूत होकर कोटा के कुछ कोचिंग संस्थानों के संचालक केन्द्र सरकार की इस गाइड़ लाइन का खुलकर विरोध कर रहे हैं जिन्हें साथ मिल रहा है उन व्यापारी संस्थाओं से जुड़े नेताओं सहित कुछ राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों का होटल, मैरिज गार्डन,रेस्टोरेंट वगैरह के साथ बड़ी संख्या में हॉस्टल-मैस भी चला रहे हैं।

कोचिंग संस्थानों में 16 साल से कम उम्र के छात्रों को दाखिला नहीं देने की गाइड़ लाइन का विरोध कर रहे कोचिंग संस्थानों के संचालकों में भी उनका सुर ज्यादा उंचा है जिन्होंने अपने कोचिंग संस्थानों के परवान चढ़ने के बाद बीते कुछ सालों में लगे हाथ सैकेण्ड़री स्तर के स्कूल भी खोल लिए हैं और मैस संलग्न हॉस्टल भी ताकि तिहरी कमाई का मौका हाथ से न फ़िसल जाए।

जिस 16 वर्षीय कोचिंग छात्र शुभ कुमार चौधरी ने मंगलवार को आत्महत्या की है,उसके सम्बन्ध में यह बात भी निकल कर सामने आ रही है कि वह संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) की तैयारी के साथ कोटा के ही एक सैकेण्ड़री स्कूल में दसवीं कक्षा का विद्यार्थी भी था। खेल यह है कि कोचिंग संस्थानों के अतिरिक्त सैकेण्ड़री स्कूल भी खोले गए हैं और प्रवेश परीक्षाओं में तैयारी के साथ बाहर से आने वाले कोचिंग छात्र इन्ही कोचिंग संस्थानों के संचालित सैकेण्ड़री स्कूलों में प्रवेश लेकर पढ़ते हैं और इन कोचिंग संस्थान संचालकों का कोचिंग के साथ पढ़ाई और हॉस्टल-मैस का धंधा साथ-साथ साझे से चलता है।

कोचिंग की तैयारी के पहले कोटा के माहौल के अभ्यस्त होने का मानसिक दबाव भी इस कदर हावी कर दिया गया है कि ऎसे बाहरी छात्रों की तादाद हजारों में है जो कोटा शहर के ” माहौल में ढ़लने “के लिए कोचिंग के इतर या साथ तैयारी के लिए 14-15 साल की अल्पायु में ही अपने घर-परिवार से सैंकड़ों-हजारों किलोमीटर दूर कोटा चले आते हैं और कुछ दुर्भाग्यशाली मामलों में नतीजे बहुत ही भयावह साबित होते हैं।

कोचिंग छात्राओं की आत्महत्याओं की घटनाओं के बीच कोटा के नए जिला कलक्टर डॉ. रविन्द्र गोस्वामी अपनी ओर से कोचिंग छात्रों में सकारात्मक ऊर्जा भरने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। वे कई तरह के नवाचार अपना रहे हैं जिनमें डिनर विद कलक्टर को सर्वाधिक सराहा जा रहा जिसमें वे व्यक्तिश: न केवल कोचिंग छात्र-छात्राओं के बीच पहुंच कर उनकी हौसला अफ़जाई करते हुए दिल की बात सुन रहे हैं बल्कि समस्याओं से निजात पाने के हल बता रहे है और कोचिंग छात्र के रूप में अपने अनुभवों को साझा करते हुए छात्र-छात्राओं के  समस्यारूपी सवालों का जवाब देकर संतुष्ट रखने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।

जिला कलक्टर डॉ. रविन्द्र गोस्वामी के प्रयास निश्चित रूप से बिना दो राय सराहनीय हैं लेकिन कोटा के कोचिंग छात्रों के मानसिक मनोबल को उंचा बनाए रखने की सार्थक कोशिशें पहले भी हुई हैं लेकिन अपने मजबूत आर्थिक तंत्र-ताकत और उसके बूते पर हासिल की गई राजनीतिक शक्ति,विज्ञापनों की बंदरबांट के खेल में कुछ बड़े मीड़िया हाउस की मौन सहमति के बूते पर यह कोचिंग संचालक पूरे दमखम के साथ ऐसी किसी भी सकारात्मक प्रशासनिक ऊर्जा भरी कोशिशों को नाकाम करने में कमी नहीं छोड़ते और काफी हद तक कामयाब भी हुए हैं।

कुछ कोचिंग संस्थान संचालकों की मनमानी का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि पिछले साल जब कोटा में कोचिंग छात्रों के आत्महत्या का ग्राफ तेजी से बढ़ा तो तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को दखल करना पड़ा और उन्होंने वीडियो कांफ्रेंस के जरिए कोटा के कोचिंग, हॉस्टल,मैस संचालकों से जुड़ कर उन्हें कई नसीहत दे डाली।

इस वीसी के बाद राज्य सरकार ने यह स्पष्ट निर्देश जारी किया कि रविवार को कोचिंग संस्थान नहीं खुलेंगे यानी शैक्षणिक गतिविधियां पूरी तरह से बंद की गई। कोटा के तत्कालीन कलक्टर ने तो उत्साह के साथ कोटा के कोचिंग संस्थानों में ” संडे को फ़न-डे ” के रूप में मनाने के न केवल घोषणा की बल्कि हर संभव कोशिश भी की, लेकिन संचालकों की मनमानी का आलम यह रहा कि ऐसे ही एक फ़न-डे यानी संडे के दिन 27 अगस्त को एक कोचिंग संस्थान न केवल खुला बल्कि उसी दिन टेस्ट भी लिया गया और टेस्ट देने के बाद दो कोचिंग छात्रों ने टेस्ट का परिणाम की प्रतीक्षा किए बिना ही आत्महत्या कर ली।