मथुराधीश मंदिर: नव विलास लीला के साथ ही प्रभु के खान-पान और पहनावे में बदलाव

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कोटा। Mathuradhish Temple Kota: शुद्धाद्वैत प्रथम पीठ श्री बड़े मथुराधीश मन्दिर पर ठाकुर जी की नव विलास लीला के साथ ही उनके खान-पान और पहनावे में भी बदलाव आ गया है। पुष्टिमार्गीय परंपरा के अनुसार नवरात्र से ही हल्की गुलाबी ठंड मानते हुए यह बदलाव किए गए हैं। मन्दिर में ठाकुर जी को बिना रुई की ओढनी ओढायी जाने लगी है। प्रतिदिन दोनों अनोसर में सिंहासन से शैयाजी तक पेंडा रुई से भरी पतली गादी बिछाई जाने लगी है। जिससे हल्की ठंडी भूमि पर ठाकुरजी को शीत का आभास ना हो।

प्रथम पीठ युवराज मिलन कुमार गोस्वामी ने बताया कि पुष्टिमार्ग में ठाकुर जी की सेवा साक्षात स्वरूप में ही की जाती है। ऐसे में, जिस प्रकार से आम व्यक्ति का खान-पान और पहनावा बदलता है। उसी अनुरूप ठाकुर जी के खान-पान और पहनावे में भी बदलाव आता है। नवरात्र से हल्की गुलाबी ठंड की शुरुआत मानते हुए पुष्टिमार्ग में ठाकुर जी के सेवा क्रम को भी बदल दिया जाता है।

उन्होंने बताया कि मंगला दर्शन के पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला एवं सुगन्धित तेल फुलेल से अभ्यंग स्नान कराया जाता है।श्रृंगार आभरण सेवा में प्रभु को वनमाला से चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जा रहा है। कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण हीरा, पन्ना, माणक, मोती एवं नीलम के जड़ाव स्वर्ण के धराये जा रहे हैं।

भोग सेवा में हुआ बदलाव
ठाकुर जी की भोग सेवा के तहत गोपीवल्लभ भोग में चन्द्रकला (सूतर फेणी), दूध घर में सिद्ध की गई केसर-युक्त बासोंदी की हांडी आरोगायी जाती है। वहीं राजभोग में अनसखड़ी में दाख का रायता आरोगाया जाता है। भोग आरती में तला हुआ मेवा आरोगाया जाता हैं। साथ ही, सखड़ी में केसरी पेठा व मीठी सेव खडंरा प्रकार इत्यादि अरोगाया जाता हैं।