गौचारण लीला के प्रतीक हैं मथुराधीश प्रभु
कोटा। शुद्धाद्वैत प्रथम पीठ श्री बड़े मथुराधीश टेंपल बोर्ड की ओर से युवराज गोस्वामी मिलन कुमार बावा के सान्निध्य में छप्पनभोग परिसर में चल रही श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के पांचवे दिन विभिन्न प्रसंगों का सुंदर चित्रण किया गया। पुष्टिमार्गीय रीति से कथाव्यास तुलसीदास शास्त्री श्रीमद्गोकुल ने बुधवार को पुष्टिपुरुषोत्तम श्रीकृष्णलीला चरित्र की कथा का वर्णन किया।
इस दौरान कथाव्यास ने कहा कि मथुराधीश प्रभु गोचारण लीला के प्रतीक हैं। मथुराधीश प्रभु दस रस और चार पुरुषार्थ से युक्त हैं। शुद्धाद्वैत के अनुसार ब्रह्म सत्, चित्, आनन्द स्वरूप हैं। उसका अनुयायी आत्म-समर्पण के रसात्मक प्रेम से भगवान की आनन्दलीला में लीन होने का इच्छुक होता है। वह भगवान के अनुग्रह पर निर्भर होता है। जीवों पर अनुग्रह करने के लिए ही भगवान अवतार होता है।
तुलसीदास शास्त्री ने कहा कि जीव के लिए भगवान के इस अनुग्रह या पोषण की आवश्यकता बताते हुए वल्लभाचार्य कहते हैं कि लीला-विलास के लिए जब एक से अनेक होने की ब्रह्म की इच्छा होती है, तो अक्षर-ब्रह्म के अंश-रूप असंख्य जीव उत्पन्न हो जाते हैं।
इस जीव में केवल सत् और चित् अंश होता है, आनन्द अंश तिरोहित रहता है, इस कारण उनमें भगवान के छह गुण – ऐश्वर्य, वीर्य, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य नहीं होते। वे दीन, हीन, पराधीन, दुखी, जन्म-मरण के दोष से युक्त, अहंकारी, विपरीत ज्ञान में भ्रमित और आसक्तिग्रस्त रहते हैं। भगवान अपने अनुग्रह से उसे पुष्ट कर उसकी दुर्बलता दूर कर देते हैं। किन्तु इस अनुग्रह के अधिकारी सभी जीव नहीं होते।
उन्होंने कहा कि केवल कर्म और ज्ञान द्वारा मुक्ति सुलभ हो सकती है। दुष्ट आसुरी जीवों का उद्धार नहीं होता, वे निरन्तर जन्म-मरण के बन्धन में पड़े रहते हैं। पुष्टिमार्ग में दीक्षित होते समय ही भक्त गुरु-आज्ञा से ‘श्रीकृष्ण: शरणम् नमः’ मन्त्र के उच्चारण द्वारा अपने तन-मन-धन-पुत्र-कलत्र आदि श्रीकृष्ण को समर्पित करने का संकल्प करता है और समस्त सांसारिक दोषों से निवृत्ति पा लेता है। इसके बाद भगवान को समर्पित किए बिना वह कोई भी वस्तु ग्रहण नहीं कर सकता।
कथा विश्रांति पर गोस्वामी मिलन बावा ने श्री भागवत स्वरुप की आरती की। प्रबंधक चेतन सेठ तथा मोनू व्यास ने बताया कि कथाव्यास द्वारा प्रतिदिन 3 से 6.30 बजे तक कथा सरिता बहाई जा रही है। गुरुवार को महारास एवं श्रीरुक्मिणी विवाह के प्रसंग का वर्णन होगा।