मुंबई। देश में मुंबई, दिल्ली और चेन्नै जैसे बड़े एयरपोर्ट्स पर यात्रियों की संख्या का भारी दबाव है तो अगरतला, देहरादून, गुवाहाटी, जयपुर, कोझिकोड, लखनऊ, पुणे, श्रीनगर और त्रिची जैसे छोटे एयरपोर्ट भी अपनी क्षमता से अधिक यात्रियों को संभाल रहे हैं।
संभावना है कि भारतीय एयरपोर्ट सिस्टम वित्त वर्ष 2022 तक अधिकतम संरचनात्मक क्षमता को पार कर जाएगा और यदि नए एयरपोर्ट प्रॉजेक्ट्स में देरी हुई तो यह पहले भी हो सकता है।
सभी संभव ढांचागत और ऑपरेशनल सुधार के बाद अधिकतम यात्रियों को संभालने की एयरपोर्ट की क्षमता को अधिकतम संरचनात्मक क्षमता कहते हैं। इसके बाद एक मात्र विकल्प है अलग-अलग जगहों पर नए एयरपोर्ट बनाना।
एयरलाइंस के लिए सबसे बड़ी चुनौती आगमन/प्रस्थान के लिए समय और पार्किंग का स्थान हासिल करना है। भारतीय विमानन कंपनियां अगले 5 साल में 350-400 नए विमान लाएंगी।
CAPA रिपोर्ट के मुताबिक, ‘इन विमानों को भी कहीं उड़ाया जाएगा। मेट्रो शहरों के एयरपोर्ट्स के अति व्यस्त होने की वजह से एयरलाइंस कंपनियों को अगले 3 साल में टियर-2 शहरों पर फोकस करना होगा।’
इसके अलावा पार्किंग की समस्या है। कंपनियां A320 और B737 जैसे विमानों को रात में कहां पार्क करेंगी? रातभर के लिए पार्किंग स्पेस पाना अभी ही एयरलाइंस कंपनियों के लिए चुनौती है। अगले 5 साल में इतने नए विमान आने से यह समस्या और भी बढ़ेगी।
सीएपीए-साउथ एशिया के सीईओ और डायरेक्टर कपिल कौल इसे ‘निकटतम संकट की स्थिति’ बताते हैं। उन्होंने कहा, ‘इतने बड़े एयरपोर्ट ढांचा विकास के वास्तविक प्लान को तैयार करने के लिए कुछ सालों का समय लगेगा।
संकट जैसी स्थिति में भी भारत का बर्ताव अनौपचारिक और अपर्याप्त है। 2030 तक 5-6 करोड़ अतिरिक्त यात्रियों को संभालने के लिए नए एयरपोर्ट्स के निर्माण की जरूरत है।’ 2030 तक भारत में 55 नए एयरपोर्ट्स की आवश्यकता है।
इसके लिए करीब 150,000-200,000 एकड़ जमीन की चाहिए। इस पर करीब 36-45 अरब डॉलर निवेश की आवश्यकता है।
पिछले 3 सालों में घरेलू यात्रियों की संख्या 18.9 फीसदी की गति से बढ़ी और 6.1 करोड़ से 10.3 करोड़ हो चुकी है। भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा घरेलू बाजार है।