जयपुर। कांग्रेस आलाकमान ने संकेत दिया है कि राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट पर अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। अगर पार्टी ने एक्शन लेकर पायलट की विदाई की, तो पायलट की स्ट्रेटजी कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है।
सचिन पायलट जैसे दमदार और युवा नेता को साथ लेने के लिए बीजेपी, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी जैसे दल तैयार हैं। उधर, उन पर एक्शन की बात कहने वाले प्रदेश कांग्रेस प्रभारी सुखजिंदर सिंह के भी सुर बदल गए हैं।
आलाकमान और राहुल गांधी से वार्ता के बाद अब रंधावा ने कहा है कि जल्दबाजी में फैसले नहीं होते, बड़े लीडर ही कुछ तय करेंगे। फोन पर मीडिया बातचीत में दिल्ली से रंधावा ने कहा कि पूरे मामले पर अभी विचार चल रहा है। हाईकमान को अभी प्रारंभिक जानकारी दी गई है, लेकिन अभी डिटेल में भी जानकारी दी जाएगी। हमने राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष से चर्चा की है। वरिष्ठ नेताओं से बातचीत करने के बाद ही कोई फैसले होते हैं, जिसमें समय लगेगा। जल्दबाजी में फैसले नहीं किए जाते।
दो दिन पहले सचिन पायलट पर एक्शन की बात कहने वाले रंधावा के बदले सुरों के सियासी मायने निकाले जाने शुरू हो गए हैं। रंधावा और वेणुगोपाल ने गुरुवार को दो-तीन बार कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे से मुलाकात की। प्रभारी महासचिव केसी वेणुगोपाल और सुखजिंदर सिंह रंधावा ने राहुल गांधी से भी मुलाकात की।
सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी ने रंधावा और वेणुगोपाल को स्पष्ट रूप से कह दिया है कि एक्शन लेने या नहीं लेने को लेकर मीडिया में कोई बयान जारी नहीं किया जाए। गांधी परिवार से हरी झंडी मिलने के बाद ही इस बारे में कुछ कहा जाए। इसके बाद रंधावा और वेणुगोपाल में से किसी ने मीडिया के सामने कुछ नहीं कहा। राहुल गांधी से मुलाकात के बाद केसी वेणुगोपाल और रंधावा ने फिर से खड़गे से मुलाकात की।
कांग्रेस आलाकमान राजस्थान में सीएम नहीं बना सकी। मुखिया का तख्ता पलट नहीं हो सका, इसका दर्द सचिन पायलट के साथ प्रियंका और राहुल गांधी को भी है। शायद यही वो कारण है कि कांग्रेस हाईकमान सचिन पायलट के बगावती तेवरों, प्रेसवार्ता के बयान और अनशन मामले पर जल्दबाजी में कुछ फैसला नहीं करना चाहता है।
सचिन पायलट पार्टी में बड़ा युवा चेहरा हैं। राजस्थान और हिमाचल में कांग्रेस पार्टी को जीत दिलाने में उनकी भूमिका रही है। कांग्रेस के सीनियर नेता उन्हें एसेट मानते हैं। पायलट राहुल गांधी और प्रियंका के अच्छे मित्र भी हैं। दूसरा चुनाव के माहौल के बीच पायलट पर कार्रवाई कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित हो सकती है। राजस्थान ही नहीं कर्नाटक, एमपी, छत्तीसगढ़ और आगामी चुनावों में सभी जगह इसका असर पड़ सकता है।
सचिन पायलट ने मामले पर अब चुप्पी साध ली है। 17 अप्रैल को पायलट शाहपुरा और खेतड़ी का दौरा करेंगे और जनसभाओं को संबोधित करेंगे। इन सभाओं में पायलट का क्या रुख रहता है, क्या पायलट फिर से गहलोत पर हमला बोलेंगे या उन्हें हाईकमान ने कड़ी नसीहत दे दी है, यह उनके भाषणों से स्पष्ट हो जाएगा। पायलट ने रंधावा के बयानों पर भी किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं दी है। सूत्र बताते हैं सचिन पायलट को कांग्रेस हाईकमान की ओर से बुलाया जा सकता है, लेकिन यह मुलाकात कब होगी इस पर असमंजस बना हुआ है।
सचिन पायलट खुद कांग्रेस पार्टी छोड़ने के मूड में नहीं हैं। वो लोकतांत्रिक तरीके से पार्टी के अंदर और बाहर पब्लिकली अपनी बात मजबूती से रखना चाहते हैं। पायलट को पता है कि कांग्रेस ने उन्हें निकाला तो इसका कांग्रेस को नुकसान होगा, पब्लिक सिम्पैथी पायलट के साथ हो जाएगी।
केंद्रीय संगठन में काम करें सचिन
गहलोत और पायलट की सियासी अदावत काफी पुरानी है। इसी कारण कांग्रेस में कई दौर की बैठकों के बाद भी इस विवाद पर उलझन बनी हुई है। एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने बताया कि पार्टी आलाकमान पायलट मामले का फैसला करने की जल्दबाजी में नहीं है। पार्टी कोई भी कदम उठाने से पहले फायदे और नुकसान का पूरा आकलन कर रही है। ।