हाथियों की होली होती थी आम जनता के मनोरंजन का बहुत बड़ा साधन
-कृष्ण बलदेव हाडा-
वैसे तो कोटा में होली का त्योहार हर साल धूमधाम से मनाया जाता है और रंगों और उमंगों के इस त्योहार पर न केवल कोटा शहर बल्कि पूरे संभाग के सभी शहरी आबादी क्षेत्रों में विशेष धूम रहती है लेकिन रियासतकाल में जब यहां कोटा के महाराव का शासनकाल हुआ करता था, तब मनाई जाने वाली होली के त्यौहार की परंपरा ही अलग हुआ करती थी।
निश्चित रूप से रियासतकाल में जिन रीति-रिवाजों और परंपराओं के साथ होली का यह त्यौहार मनाया जाता था, वैसा मनाना आज के मौजूदा हालात और परिस्थितियों में शायद मुमकिन नहीं हो पाए क्योंकि तब होली का यह पर्व केवल धर-परिवारों, मित्रों तक ही सीमित नहीं होता था बल्कि इसका समूचा आयोजन लोगों के विशाल समूह के साथ कई धार्मिक रीति-रिवाजों और पुरानी परंपराओं का निर्वहन करते हुए बड़े पैमाने पर मनाई जाता था।
पूरा पर्व न केवल उत्साह से सरोबार होता था बल्कि पूरी शांति और सहभागिता के साथ आपसी धार्मिक सौहार्द कायम रहता था और ऐसी परंपराओं की आज के दौर में कल्पना करना थोड़ा सा मुश्किल नजर आता है। यदि स्टेट टाइम’ की परंपराओं की बातें करें तो उस समय की होली मनाने के रीति रिवाज और आज के तौर-तरीकों में बहुत अंतर है।
जैसे वर्तमान में कोटा में रंगों-उमंगों का त्योहार होली और उसके अगले दिन धुलेंडी का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन रियासतकाल में कोटा में हाथियों की होली यहां के लोगों के मनोरंजन का सबसे बड़ा जरिया हुआ करती थी।
कोटा के जाने-माने इतिहासकार स्वर्गीय डॉ. जगत नारायण ने अपनी पुस्तक ‘महाराव उम्मेद सिंह द्वितीय एवं उनका समय’ में रियासतकाल में कोटा के राजपरिवार की ओर से आयोजित होने वाली इस हाथियों की होली का विवरण किया है।
कोटा के इतिहास की महत्वपूर्ण झलक दिखाती अपनी इस किताब में होली का उल्लेख करते हुए डॉ. जगत नारायण ने लिखा है कि ‘हाथियों की होली कोटा की जनता के मनोरंजन का सबसे बड़ा कार्यक्रम होता था। रियासतों के समय राजपरिवार के पास रिसाला में तो खूब हाथी होते थे तो तत्कालीन जागीरदारों-ठिकानेदारों के पास भी हाथी होते थे।
डॉ. जगत नारायण ने अपनी किताब में जिक्र किया है कि तब महाराव उम्मेद सिंह के शासनकाल में महाराव दोपहर 12 बजे पतंगी रंग की पोशाक पहनकर गढ़ से जनानी ड्योड़ी पहुंचकर चंद्र महल में रानी के साथ होली खेलते थे जबकि तत्कालीन महाराव के हुक्म के अनुसार जागीरदार-सरदार हाथी के ऊपर बैठते थे।’
स्वर्गीय डॉ. जगत नारायण लिखते हैं कि इसके बाद महाराव की उपस्थिति में कोटा के पाटनपोल, घंटाघर, रामपुरा से लाडपुरा तक हाथियों का यह काफिला होली खेलते गुजरता था, जिसे देखने हजारों लोग उमड़ पड़ते थे और तब चारदीवारी के भीतर सिमटे कोटा का सारा वातावरण ही उल्लास में हो जाता था।
बीते कुछ दशकों पहले तक कोटा में ऐसे कुछ महावत परिवार निवास करते थे जिन्होंने हाथी पाल रखे थे। इनमें से ज्यादातर महावतों ने उस समय लगभग उपेक्षित पड़े कोटा के नयापुरा इलाके में मुख्य सड़क मार्ग गुजरने की वजह से दो भागों में विभक्त हो चुके रियासतकाल से ही राजपरिवार की निजी मिल्कियत रहे क्षार बाग जहां दिवंगत राज प्रमुखों का अंतिम संस्कार किया जाता था, के बड़े हिस्से पर व्यक्तिगत लाभ के लिये कब्जा करके वहां हाथी पाल रखे थे, जिसका उपयोग वे त्योहारों, शादी-ब्याह में हाथियों को किराए पर देने में करते थे।
लेकिन कुछ साल पहले इस पूर्व राज परिवार के मुखिया पूर्व सांसद महाराव इज्यराज सिंह की धर्मपत्नी और वर्तमान में कोटा जिले के लाडपुरा विधानसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी की विधायक श्रीमती कल्पना देवी ने व्यक्तिगत रूप से रूचि लेकर इन महावतों सहित बरसों से डेरा डाले बैठे पंडे-पुजारियों के कब्जे से ऐतिहासिक धरोहर छार बाग एवं पुरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण यहा स्थित छतरियों को मुक्त कराने में विशेष रुचि दिखाई और इन अतिक्रमियों को हटवाकर वहां चारदीवारी करवाई ताकि भविष्य में कोई वहां आकर कब्जे ना कर सकें।
वैसे कोटा के पूर्व राजपरिवार के इस निजी अंतिम संस्कार स्थल इस ऐतिहासिक क्षार बाग, जहां उनके पूर्वजों की स्मृति में ऐतिहासिक एवं कलात्मक छतरियां भी बनी हुई है और इसे छत्र विलास के नाम से ज्यादा जाना जाता है, के विकास और सौन्दर्यीकरण में कोटा उत्तर से कांग्रेस के विधायक और राज्य सरकार में मंत्री शांति धारीवाल ने सबसे अधिक अहम भूमिका निभाई है।
डेढ़ दशक पहले वर्तमान एवं तत्कालीन नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल के प्रयासों से क्षार बाग के नाना देवी मंदिर वाले हिस्से का जीर्णोद्धार-सौंदर्यीकरण एवं मनोरंजन स्थल के रूप में विकास हुआ तो महावतों को यहां से हटना पड़ा। अब कोटा में कुछ ही महावत परिवार ऐसे हैं जिनके पास हाथी बचे हैं। वैवाहिक सीजन में दूल्हे की सवारी के लिए किराए पर देने का धंधा करते हैं।
हालांकि कोटा में होली का उल्लास आज भी कम नहीं हुआ है। खासतौर पर धुलेंडी के दिन ढोल-ताशे, चंग बजाते नाचते-गाते लोगों के हुजूम जब शहर की मुख्य सड़कों-गलियों में गुलाब-अबीर उड़ाते एक-दूसरे के चेहरे को उससे मलते देखते हैं तो मन खुशी से सराबोर हो जाता है।