नई दिल्ली। केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा (Fiscal deficit) जून तिमाही में वार्षिक लक्ष्य के 21.2 प्रतिशत पर पहुंच गया। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार एक साल पहले की इसी अवधि में यह 18.2 प्रतिशत था। राजकोषीय घाटा सरकार के कुल व्यय और राजस्व के बीच के अंतर को दर्शाता है।
इससे पता चलता है कि सरकार को कितना उधार लेने की जरूरत है। लेखा महानियंत्रक (सीजीए) द्वारा शुक्रवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक राजकोषीय घाटा 2022-23 की पहली तिमाही के अंत में 3.51 लाख करोड़ रुपये था। देश का राजकोषीय घाटा मार्च 2023 को समाप्त होने वाले वित्त वर्ष में जीडीपी के 6.4 प्रतिशत पर रह सकता है, जबकि पिछले वर्ष यह 6.71 प्रतिशत था।
सीजीए द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक केंद्र सरकार की प्राप्तियां 5,96,040 करोड़ रुपये रही। यह 2022-23 के लिए कुल प्राप्तियों से संबंधित बजट अनुमान (बीई) का 26.1 प्रतिशत है। जून तिमाही में केंद्र सरकार ने कुल 9,47,911 करोड़ रुपये खर्च किए, जो 2022-23 के बजट अनुमान का 24 प्रतिशत है। बीते वित्त वर्ष 2021-22 में यह बजटीय अनुमान का 23.6 प्रतिशत था। सरकार का राजकोषीय घाटा 2022-23 के लिए 16,61,196 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है।
हालांकि जून तिमाही में सरकार का राजकोषीय घाटा अनुमान से कम बढ़ा है। इसकी वजह यह है कि सब्सिडी पर सरकार का खर्च कम हो गया है और साथ ही टैक्स कलेक्शन में बढ़ोतरी हुई है। महंगाई के कारण सरकार का टैक्स कलेक्शन बढ़ा है। इससे सरकार को जीएसटी कलेक्शन में ज्यादा राशि मिली है।
साथ ही इकनॉमिक एक्टिविटीज में सुधार से कॉरपोरेट टैक्स भी बढ़ा है। जहां तक खर्च की बात है तो फूड और फर्टिलाइजर्स पर सरकार की सब्सिडी अप्रैल-जून के दौरान कम होकर करीब 68,000 करोड़ रुपये रही। एक साल पहले समान अवधि में यह एक लाख करोड़ रुपये से अधिक थी।