नई दिल्ली। रिज़र्व बैंक ने स्केल-बेस्ड रेगुलेशन से जुड़े अक्टूबर 2021 के सर्कुलर्स में संशोधन करके गैर-बैंकिंग उधारदाताओं (non-banking lenders) के लिए कई नियामकीय बदलावों की घोषणा की है, जो बड़े NBFCs (गैर-बैंक वित्तीय संस्थान) को क्रेडिट जोखिम के संबंध में लगभग बैंकों के बराबर करते हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक ने मंगलवार को चार अलग-अलग सर्कुलर- एनबीएफसी के लिए बड़ा एक्सपोजर फ्रेमवर्क- अपर लेयर; फाइनेंशियल स्टेटमेंट में डिस्क्लोजर्स, पूंजी आवश्यकताओं के लिए स्केल-आधारित विनियमन- अपर लेयर; और उनके लोन तथा एडवांस पर विनियामक प्रतिबंध- जारी किए हैं।
अपर लेयर के साथ बड़े एक्सपोजर फ्रेमवर्क पर नियामक ने कहा कि इन विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों का उद्देश्य NBFCs में क्रेडिट जोखिम को एड्रेस करना है और बड़े एक्सपोजर की पहचान करना, जुड़े प्रतिपक्षों के समूह के मानदंडों को परिष्कृत करना और बड़े पैमाने पर रिपोर्टिंग मानदंडों को स्थापित करना है।
नियामक ने कहा कि किसी एकल प्रतिपक्ष के लिए एनबीएफसी के सभी एक्सपोजर मूल्य का योग हर समय उसके उपलब्ध पात्र पूंजी आधार के 20 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता है। हालांकि, बोर्ड 20 प्रतिशत से अधिक अतिरिक्त 5 प्रतिशत एक्सपोजर की अनुमति दे सकता है लेकिन यह पात्र पूंजी आधार के 25 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता है।
अतिरिक्त 5 प्रतिशत एक्सपोजर की अनुमति तभी मिलेगी अगर एनबीएफसी की बोर्ड-अनुमोदित नीति है, जिसमें ऐसी शर्तें निर्धारित की गई हैं जिनके तहत 20 प्रतिशत से अधिक एक्सपोजर पर विचार किया जा सकता है; और यदि यह आरबीआई को लिखित रूप में उन असाधारण कारणों से सूचित करता है जिनके लिए किसी विशिष्ट मामले में 20 प्रतिशत से अधिक जोखिम की अनुमति दी जा रही है।
लेकिन, नए मानदंड एक एनबीएफसी को बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण की अनुमति देते हैं, जो कि एकल प्रतिपक्ष के लिए अपनी टियर I पूंजी के 5 प्रतिशत से अधिक जोखिम सीमा को पार कर सकता है यानी टियर I पूंजी का 30 प्रतिशत और अगर अतिरिक्त जोखिम बुनियादी ढांचे के ऋण और/या निवेश के कारण है, तो यह 35 प्रतिशत तक जा सकता है।