कोटा। राष्ट्रीय स्तर तक अपनी पहचान बना चुके कोटा के प्रख्यात इतिहासकार एवं शिक्षाविद डॉ. जगतनारायण के निधन पर गुरुवार को झालावाड़ रोड़ स्थित माहेश्वरी भवन में शोकसभा आयोजित की गई। जहां विभिन्न संस्थान के अध्यक्ष एवं पदाधिकारियों सहित कई इतिहासकार एवं साहित्यकारों ने उन्हे श्रृद्वांजलि अर्पित की।
शिक्षा नगरी ने खोया शिक्षाविद :राजेश कृष्ण बिरला
स्व.जगतनारायण के जीवन पर प्रकाश डालते हुए राजेश कृष्ण बिरला ने कहा कि डॉ. जगत नारायण ने इतिहास के रिसर्च एवं लेखन के क्षेत्र में करीब 60 वर्षो तक सक्रिय रहे। उन्होने राजस्थान के कई महाविद्यालयों में अध्यापन कार्य किया,इतिहास विभाग के अध्यक्ष,उपाचार्य व प्राचार्य भी रहे और वर्ष 1996 में वह पद से सेवानिवृत हुए। डॉ. जगतनायण ने इतिहास क्षेत्र में 24 स्वतंत्र खोज कार्य से उन्हे राष्ट्रीय पहचान मिली। शैलचित्रों की खोज व प्रकाशन में भी वह अग्रणी रहे। उनका जाने से शिक्षा नगरी ने शिक्षाविद खो दिया है।
बिरला परिवार के गुरू थे जगतनारायण
राजेश कृष्ण बिरला ने बताया कि वर्ष 1977—78 में राजकीय महाविद्यालय में इतिहास के व्याख्यता जगतनारायण से सम्पर्क हुआ वह उनके जीवनकाल तक चला। जगतनारायण ने ना केवल मुझे जीवन के कई अध्याय सिखाए अपितु हरि एवं ओम को भी समय-समय पर मार्गदर्शन देते रहे। शहर के इतिहास से जुडी बाते, शहर के बदलाव से रियासती इतिहास में पढने वाले फेरबदल, उन्हे प्रभाव को वह हरिकृष्ण बिरला एवं ओम बिरला से चर्चा करते थे। वह बिरला परिवार के पथ-प्रदर्शक रहे है। कठिन समय में उनकी राय हमारे लिए महत्वपूर्ण होती थी।
इतिहास के पुरोधा
भारतेन्दु समिति के अध्यक्ष हरिकृष्ण बिरला ने कहा कि डॉ. जगत नारायण इतिहास के ज्ञाता थे, वह स्वयं एक इतिहास के महाविद्यालय थे। उन्होंने महर्षि कण्व शोध संस्थान की स्थापना कर अनेक शोधार्थिओं का मार्गदर्शन किया। उनका निधन इतिहास शिक्षा के क्षेत्र में अपूरणीय क्षति है। उन्होनेे कहा कि हाडौती और राजस्थान के इतिहास के लिए डॉ.जगत नारायण ने जो कार्य किया वह बेमिसाल है और उनकी कमी को पूरा करना असंभव है।
चलते फिरते पुस्तकालय थे डॉ.जगतनारायण
हितकारी सहकारी समिति अध्यक्ष सूरज बिरला सचिव एडवोकेट चंद्रमोहन शर्मा ने अपनी संवेदनाएं प्रकट करते हुए कहा कि इतिहास के जगतनारायण जितने जानकार थे उसकी कल्पना भी करना मुश्किल है इसलिए उन्हे इतिहास का पुस्ताकालय भी पुकारा जाता था। उन्होंने अपने परिश्रम से हाडौती और राजस्थान के इतिहास पर गहन कार्य किया। इसके लिए उन्हे कई महाविद्यालय में बोम सदस्य भी नियुक्त किया गया था। बूढादीत के जैन मंदिर,आलनिया एवं बिजौलिया के शैलचित्रों की खोज,बरगू का दसवीं शताब्दी का शिव मंदिर,रंगपुर एवं माढ़ो में गुप्तकालीन प्रतिमाओं की खोज जैसे प्रमुख कार्य किए।दस शैलाश्रय क्षेत्रों की खोज ने उनकों राष्ट्रीय ख्याति दिलाई।
कई पुरस्कारों से नवाजे गए डॉ. जगतनारायण
अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप माथुर एवं इतिहासकार रामेश्वर शर्मा ‘रम्मू भैया’ ने कहा कि रियासत कालीन कोटा राज्य के इतिहास सहित कई पुस्तकों एवं शैलचित्रोंं की खोज के लिए उनकी राष्ट्रीय पहचान बनी और इसके लिए मेवाड फाउंडेशन उन्हे महाराणा कुंभा सम्मान से सम्मानित किया। इसके अलावा कई पुरस्कारों से उन्हे सम्मानित किया गया। उन्होने इंडियन कांउसिल ऑफ़ हिस्टोरिकल रिसर्च की परियोजना में सर्वेक्षण कार्य भी किया।
हाडौती इतिहास का सूर्य अस्त
कोटा कर्मचारी सहकारी समिति सभा नम्बर 108 की अध्यक्ष मीनू बिरला व सकल दिगम्बल जैन समाज अध्यक्ष विमल जैन ने डॉ. जगतनारायण के देहांत पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि डा. जगतनारायण हाडौती के सूर्य थे उन्होने हाडौती इतिहास को अपने 60 वर्ष दिए है। उनकी पहली पुस्तक अजमेर एवं मुगल एम्परर्स की रचना उनके अध्यापन के समय ही कर ली गई थी। उन्होने इतिहास के साथ संस्कृति कला, पुरातत्व, कला,पर्यटन से सम्बधित विषय पर कई लेख भी लिखे।
डॉ.जगतनारायण का जाना अपूर्णीय क्षति
रोटरी क्लब के सहायक प्रातंपाल सुरेश काबरा, महेश चंद अजमेरा प्रदेश मंत्री प्रादेशिक माहेश्वरी महासभा एवं कोटा महिला नागरिक सहकारी बैंक की अध्यक्ष मंजू बिरला ने अपनी संवदेनाए प्रकट करते हुए कहा कि डॉ. जगत नारायण बहु आयामी व्यक्ति के धनी थे वह एक कुशल फोटोग्राफर भी थे। उन्होंने हेरिटेज व पर्यटन अन्य विषयों पर उनके 1000 से अधिक छायाचित्र राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओंं में प्रकाशित हुए। राव माधोसिंह म्यूजियम ट्रस्ट के ट्रस्टी रहे व इंटेक के को-कन्वीनर तथा रॉक आर्ट, इतिहास परिषद सहित कई संस्थाओं में विभिन्न भूमिका का निर्वहन किया।