सोयाबीन का वायदा खोल दे सरकार तो भाव 10 हजार रुपये क्विंटल तक जा सकता है

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नई दिल्ली। केन्द्र सरकार सोयाबीन का वायदा खोल दे तो भाव 10 हजार रुपये क्विंटल तक जा सकता है। वायदा व्यापार मूल्य जोखिम से बचाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। चार साल पहले जब वायदा कारोबार स्थगित किया गया था तब सोयाबीन का भाव उछलकर नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था।

किसानों को उसके उत्पादों पर बेहतर वापसी सनिश्चित करने के लिए समय-समय पर आवश्यक कदम उठाती रहती है जिससे कृषक समुदाय को फायदा भी होता है। इसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में नियंत्रित रूप से बढ़ोत्तरी करना और मूल्य समर्थन योजना के तहत कृषि जिंसों की खरीद करना भी शामिल है।

एमएसपी पर धान और गेहूं की अत्यन्त विशाल मात्रा की खरीद पहले से ही हो रही है जबकि हाल के वर्षों में दलहन, तिलहन एवं कपास की खरीद में भी जोरदार बढ़ोत्तरी हुई है।इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि इन जिंसों का बाजार भाव अक्सर एमएसपी से नीचे रहता है और किसानों को औने-पौने दाम पर अपना उत्पाद बेचने के लिए विवश होना पड़ता है।

सोयाबीन का मामला इसी श्रेणी में शामिल है जिसका थोक मंडी भाव घटकर एमएसपी से काफी नीचे आ गया है। सरकार को किसानों से इसकी भारी खरीद करनी पड़ रही है। इस स्थिति से बचा जा सकता था।

इस बार सोयाबीन का घरेलू उत्पादन कुछ बेहतर हुआ है और मंडियों में इसकी अच्छी आवक भी हो रही है। क्रशिंग-प्रोसेसिंग उद्योग अपनी जरूरतों के हिसाब से इसकी खरीद भी कर रहा है लेकिन कीमतों में तेजी-मजबूती आने का कोई ठोस संकेत नहीं मिल रहा है।

दिलचस्प तथ्य यह है कि सोयाबीन का बाजार भाव ऊंचा उठाने के उद्देश्य से सरकार ने खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में 20 प्रतिशत बिंदु की एकाएक बढ़ोत्तरी कर दी जिससे असर नहीं पड़ा। खरीफ सीजन की दोनों प्रमुख तिलहन फसलों-सोयाबीन तथा मूंगफली का भाव सरकारी समर्थन मूल्य से नीचे ही बना रहा।

अब एक अंतिम मगर महत्वपूर्ण विकल्प पर गंभीरतापूर्वक विचार किए जाने की जरूरत है। सोयाबीन एवं इसके मूल्य संवर्धित उत्पादों में वायदा कारोबार पर वर्ष 2021 से ही प्रतिबंध लगा हुआ है जिसे हटाए जाने की सख्त आवश्यकता है।

सरकार को किसानों से खरीद की जरूरत न पड़े, इसके लिए यह आवश्यक है कि सोयाबीन का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य के आसपास या उससे कुछ ऊपर रहे। इसमें वायदा कारोबार काफी महत्वपूर्ण उपकरण साबित हो सकता है।