श्री कृष्णा में कृष्ण का किरदार भगवान कृष्ण की कृपा से ही मिला : बालकृष्णनन

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मुंबई। रामानंद सागर के श्री कृष्णा में कृष्ण के बाल्यावस्था की भूमिका निभाने वाले अशोक कुमार बालकृष्णनन् इन दिनों खूब चर्चा में है। कृष्ण की बाल लीलाओं को बखूबी निभाने वाले अशोक कुमार बालकृष्णनन अब साउथ इंडियन फिल्मों में अभिनय कर रहे हैं। कोरियोग्राफर से एक्टर बनें अशोक श्रीकृष्ण के पुन:प्रसारण से बहुत खुश हैं और नॉस्टैल्जिक हो रहे हैं। उनका कहना है कि उन्हें श्रीकृष्ण का किरदार भगवान कृष्ण की कृपा से ही मिला।

भगवान कृष्ण के साथ वे इसका श्रेय अपने डांस के गुरुजी और उनकी ट्रेनिंग और अपनी मां राधा बालकृष्णनन् के प्रोत्साहन को देते हैं। बातचीत में उन्होंने बताया कि रामानंद सागर के श्रीकृष्णा में उन्होंने इतना महत्वपूर्ण रोल कैसे मिला।

अशोक ने बताया, ‘चार साल की उम्र से मैंने भरतनाट्यम सीखना शुरू किया था। एक दिन मुंबई के जुहू में इस्कॉन में डांस परफॉर्मेंस था जिसमें उन्होंने हिस्सा लिया था। यह सार्वजनिक था तो इसमें कोई भी परफॉर्म कर सकता था। मैं उस आयोजन में अपनी परफॉर्मेंस दे रहा था तब एक शख्स की नजर मुझ पर पड़ी जो कि श्रीकृष्णा सीरियल की कास्टिंग का हिस्सा थे।

उस रोल के लिए ऐसे चाइल्ड आर्टिस्ट की जरूरत थी जो कि डांस भी जानता हो क्योंकि उसमें कालिया नाग मर्दन जैसी सीक्वेंस भी थी जिसमें नाग के फन पर नाचना था। उन्होंने ऑडिशन के बारे में जानकारी मां को दी थी।’ उन्होंने बताया, ‘मां को यकीन था कि मैं सिलेक्ट हो जाऊंगा क्योंकि मुझे आत्मविश्वास की कमी नहीं थी और नाचता भी अच्छा था। लेकिन जब वहां गए तो पता चला कि एक दिन में 700 बच्चों का ऑडिशन हुआ और न जाने कब से ऑडिशन चल ही रहा होगा। हजारों बच्चों में चयन को लेकर थोड़ा सोच में पड़ गए। लेकिन आखिरकार सिलेक्ट हो ही गया।’

अशोक कहते हैं, ‘हम बच्चे रामायण, महाभारत देखकर बड़े हुए, हमारी परवरिश में ही वह था। लेकिन जिन्हें टीवी पर देखा उन्हें अपने सामने देखना किसी जादू से कम नहीं था। रामानंद सागर जी, मोती सागर जी से मिलना सपने से कम नहीं था। रामानंद सागर जी का ऑरा ही ऐसा है कि कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाए। मेरे जैसे चाइल्ड आर्टिस्ट के साथ तो वे दादा-पोते की तरह रहे।’

रामानंद सागर ने उन शब्दों को अशोक कभी नहीं भूल सकते। वे कहते हैं, गोवर्धन पर्वत उठाने के सीन के बाद देवराज इंद्र के साथ संवाद में उन्होंने मेरी खूब तारीफ की थी। 14 पेज के डॉयलॉग्स सरल शब्दों में इतनी सरलता से निकले थे। पूरे सेट पर तालियां बजाई गई। सागर जी ने कहा था कि जब एक्टर अच्छा होता है तो लिखने में मजा आता है।

मां के बेहद करीब हैं अशोक
चार साल की उम्र में भरतनाट्यम के लिए मेरा मां ने प्रोत्साहित किया था। मेरा भाई अरुण मृदंग का प्रशिक्षण लेने जाते थे तो उनके गुरुजी ने नोटिस किया कि मैं इंस्ट्रूमेंटल की बजाए डांस में अच्छा कर सकता हूं। उन्होंने मेरी मां को कहा कि इसे नृत्य का प्रशिक्षण दो, बहुत अच्छा करेगा। जैसे कि परंपरा है दशहरा पर कुछ नया शुरू करने की तो मेरी मां ने मुझे नृत्य सीखने भेज दिया। भरतनाट्यम सीखने वाला मैं ही एकमात्र लड़का उस क्लास में था।

कभी चिढ़ भी होती थी कि कोई लड़का नहीं। एक तरह से गोपियों से घिरा हुआ तभी से था। गुरुजी को मेरी इस शिकायत के बारे में पता चला तो उन्होंने कहा कि भरतनाट्म करते हुए भी बॉडी लैंग्वेज में मस्‍कुलेरिटी झलकती है जो कि अच्छी बात है। उन्होंने अपने खुद के गुरुजी टी. एस. कादिरवेलु पिल्लई से प्रशिक्षण की बात कही जो कि हेमा मालिनी जी तक को प्रशिक्षण दे चुके हैं। उनका सबसे कम उम्र का शागिर्द होने का अवसर मुझे मिला।