नयी दिल्ली। आपकी मोटर इंश्योरेंस पॉलिसी, खासतौर पर उसमें शामिल ओन डैमेज कॉम्पोनेंट यानी आपको होने वाले नुकसान के कवरेज वाला हिस्सा एकदम अलग दिख सकता है। इंश्योरेंस रेगुलेटर IRDAI ने मोटर मालिक को होने वाले नुकसान को कवर करने वाले हिस्से की समीक्षा के लिए पब्लिक कॉमेंट के लिए एक्सपोजर ड्राफ्ट जारी किया है।
प्रॉडक्ट रिव्यू के लिए इंडस्ट्री एग्जिक्यूटिव्स को लेकर बनाए गए वर्किंग ग्रुप की कई सिफारिशें स्वीकार की गई हैं। मोटर इंश्योरेंस पॉलिसी में क्या छह अहम बदलाव हो सकते हैं, हम आपको उसके बारे में बता रहे हैं।
प्रीमियम को कस्टमाइज किया जा सकेगा
प्रीमियम कैलकुलेशन के लिए टेलिमैटिक्स का इस्तेमाल करने की सिफारिश स्वीकार की गई है। वर्किंग ग्रुप ने अपनी सिफारिश में कहा था, ‘टेलिमैटिक्स डेटा के लिए सेंट्रल रिपॉजिटरी यानी स्टोरेज और मेन्टिनेंस फसिलिटी बनाई जा सकती है जहां कॉमन पूल के लिए अलग-अलग स्रोतों से डेटा जमा किए जा सकते हैं। इंश्योरेंस कंपनियों के लिए डेटा रिपॉजिटरी का काम करने वाला इंश्योरेंस इन्फर्मेशन ब्यूरो ऑफ इंडिया (IIBI) डेटा को मैनेज और प्रॉटेक्ट कर सकता है।’
डिजिट जनरल इंश्योरेंस लिमिटेड के अपॉइंटेड ऐक्च्युअरी आदर्श अग्रवाल ने कहा, ‘उपलब्ध डेटा के आधार पर पे ऐज यू ड्राइव और पे हाउ यू ड्राइव कवर ऑफर किए जा सकते हैं। इंश्योरेंस कंपनियां पॉलिसी ऑफर करते वक्त इन बातों पर गौर कर सकती है कि गाड़ी कितने किलोमीटर चलाई जाती है और उसे ड्राइवर कैसे यूज करता है।’ मतलब, टेलिमैटिक्स या मोबाइल ऐप के जरिए हासिल ड्राइविंग बिहेवियर के डेटा बेहतर होने पर कस्टमर को कम प्रीमियम का रिवॉर्ड मिलेगा।
सम-एश्योर्ड का कंप्यूटेशन नए तरीके से होगा
IRDAI ने प्राइवेट कारों और टूव्हीलर्स के लिए नए सम एश्योर्ड/इंश्योर्ड डिक्लेयर्ड वैल्यू (IDV) कैलकुलेशन रूल्स की रूपरेखा तैयार की है। पुरानी प्राइवेट कारों के मामले में सम अश्योर्ड की रकम मैन्युफैक्चरिंग कंपनी की करंट लिस्टेड प्राइस से गाड़ी के अजस्टेड डेप्रिसिएशन को घटाकर निकाली जाएगी।
वर्किंग ग्रुप ने जो ऑप्शंस सुझाए हैं, यह उनमें से एक है। दूसरे ऑप्शन में नई कारों के लिए शुरुआती तीन साल के सम अश्योर्ड में इनवॉइस वैल्यू सहित मौजूदा ऑन रोड प्राइस शामिल हो सकता है। उसमें रोड टैक्स और रजिस्ट्रेशन चार्जेज और अक्सेसरीज की वैल्यू को भी शामिल होगा।
आपको इनवॉइस ऐड ऑन नहीं लेना पड़ेगा। यह बेस पॉलिसी में शामिल होगा। चौधरी कहते हैं, ‘अभी अगर आप 10 लाख की कार खरीदते हैं, फिर डेढ़ लाख रुपये रोड टैक्स और रजिस्ट्रेशन में चुकाते हैं तो आपकी IDV ~10 लाख ही रहती है।
नई प्रस्तावित व्यवस्था में पहले तीन साल के लिए सम अश्योर्ड 11.5 लाख का होगा।’ तीन साल के बाद सम अश्योर्ड नए डेप्रिसिएशन टेबल के हिसाब से कैलकुलेट किया जाएगा। तीसरे साल के बाद सातवें साल तक डेप्रिसिएशन 40% से 60% के बीच होगा। उसके बाद सम अश्योर्ड इंश्योरेंस कंपनी और पॉलिसी बायर के बीच तोलमोल से तय होगा।
बेहतर फ्लड डैमेज कवर
आजकल की बेस मोटर पॉलिसी में पानी घुस जाने से इंजन को होने वाला नुकसान कवर नहीं होता। पॉलिसीहोल्डर्स को इसके लिए ऐड ऑन ऑप्शन चुनना होता है। चौधरी के मुताबिक, ‘ड्राफ्ट को जस का तस स्वीकार कर लिया जाता है तो यह बेस पॉलिसी में कवर हो जाएगा। हालांकि ऑयल लीकेज डैमेज इंजन प्रोटेक्ट में ही कवर होगा।’
नो क्लेम बोनस स्लैब
IRDAI ने नो क्लेम बोनस के लिए स्टैंडर्ड ग्रिड का प्रस्ताव दिया है। अग्रवाल कहते हैं, ‘अभी हर इंश्योरेंस कंपनी की लॉन्ग टर्म पॉलिसी के अपने NCB स्लैब हैं। दूसरी इंश्योरेंस कंपनी के पास जाने पर मामला फंस जाता है। स्टैंडर्ड NCB ग्रिड होने पर यह मसला सुलझ जाएगा।’ NCB पॉलिसी होल्डर से लिंक होता है जिसे वह नई गाड़ी में शिफ्ट कर सकता है। ड्राफ्ट नॉर्म्स लागू होने पर NCB नई गाड़ी पर क्लेम किया जा सकता है, बशर्ते नई गाड़ी पुरानी गाड़ी के क्लास की होगी।
स्टैंडर्डाइज डिडक्टेबल्स
करंट कंपल्सरी डिडक्टेबल्स वह रकम होती है जो क्लेम प्रोसेस होने से पहले पॉलिसी होल्डर को अपनी जेब से निकालनी होती है। इसे स्टैंडर्ड डिडक्टेबल्स का नाम दिया गया है और रिवाइज्ड डिडक्टेबल्स के सेट का प्रस्ताव दिया गया है। मिसाल के लिए क्लेम के केस में टोटल लॉस सहित सम अश्योर्ड का 1% या 500रुपये, जो भी ज्यादा होगा, उसका बोझ टू-वहीलर पॉलिसीहोल्डर उठाएगा। दूसरी गाड़ियों के मामले में डिडक्टेबल सम अश्योर्ड का 1% या ₹2,500 होगा लेकिन ₹35,000 से ज्यादा नहीं होगा।
टोटल लॉस के रूल्स
गाड़ी चोरी होने या टोटल लॉस के क्लेम के केस में इंश्योर्ड पर्सन को गाड़ी का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट कैंसल कराना होगा। कैंसल कराए गए RC सरेंडर करने पर ही क्लेम सेटलमेंट हो पाएगा।