श्रीकृष्ण जन्मोत्सव को रिवर फ्रंट से जोड़कर धार्मिक पर्यटन की संभावनाओं की तलाश

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चंबल रिवर फ्रंट को कृष्ण जन्मोत्सव के साथ धार्मिक पर्यटन की संभावनाओं से इसलिए भी जोड़ा जा रहा है कि पुराने कोटा के परकोटे के भीतर के हिस्से में स्थित पाटनपोल में जिस स्थान पर श्री मथुराधीश मंदिर अवस्थित है, वह 1100 सौ करोड़ रुपए से भी अधिक की लागत से विकसित किए गए चंबल रिवर फ्रंट के एक बिल्कुल ही नजदीक है।

-कृष्ण बलदेव हाडा-
राजस्थान के कोटा में भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव के भव्य कार्यक्रमों की शुरुआत गुरुवार से ही होने जा रही है और गुरुवार मध्य रात्रि को जन्मोत्सव के साथ और अगले दिन कोटा शहर के विभिन्न मंदिरों में जन्माष्टमी के अवसर पर सजाई जाने वाली झांकियों को देखने के लिए उमड़ने वाले लोगों के कारण कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व अपने चरम पर होगा।

चूंकि इसी महीने कोटा में विश्व स्तरीय चंबल रिवर फ्रंट का उद्घाटन होने वाला है तो कृष्ण जन्मोत्सव को धार्मिक पर्यटन की संभावनाओं को बढ़ाने की दृष्टि से भी देखा जा रहा है। कोटा में शुद्धाद्वैत की प्रथम पीठ के श्री बड़े मथुराधीश का मंदिर कोटा के पाटनपोल में है जो वल्लभ संप्रदाय के लाखों अनुयाईयों के आराध्य है।

चंबल रिवर फ्रंट को कृष्ण जन्मोत्सव के साथ धार्मिक पर्यटन की संभावनाओं से इसलिए भी जोड़ा जा रहा है कि पुराने कोटा के परकोटे के भीतर के हिस्से में स्थित पाटनपोल में जिस स्थान पर श्री मथुराधीश मंदिर अवस्थित है, वह 1100 सौ करोड़ रुपए से भी अधिक की लागत से विकसित किए गए चंबल रिवर फ्रंट के एक बिल्कुल ही नजदीक है।

यदि वल्लभ संप्रदाय की प्रथम पीठ के इस प्राचीन प्रसिद्ध मथुराधीश मंदिर को धार्मिक पर्यटन के साथ जोड़ा जाए तो पर्यटन की संभावनाओं के नए द्वार भी खोले जा सकते हैं। कोटा का श्री मथुराधीश मंदिर 550 साल से भी अधिक पुराना है और इस मंदिर में 350 साल से भगवान मथुराधीश विराजमान है। मंदिर चंबल नदी के तट पर विकसित किए गए।

पुराने कोटा शहर वाले छौर पर रिवर फ्रंट के बिल्कुल नजदीक है। यहां मंदिर प्रांगण से रिवर फ्रंट बिलकुल सटा हुआ है। कुछ एक कदम ताल के साथ मंदिर से चम्बल रिवर फ्रंट पहुंचा जा सकता है।

कोटा में रियासत काल से ही जन्माष्टमी का पर्व भव्य तरीके से मनाया जाता रहा है। कोटा के जाने-माने इतिहासकार स्वर्गीय डॉक्टर जगत नारायण की पुस्तक ‘कोटा के महाराव उम्मेद सिंह द्वितीय एवं उनका समय’ के अनुसार जो विवरण मिलता है,उसके हिसाब से भी कोटा में दो दिन तक जन्माष्टमी के अवसर पर जबरदस्त धूम रहती थी।

पहले दिन जहां मंदिरों को भव्य तरीके से सजाया जाता था व धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए जाते थे तो दूसरे दिन पूरे नगर के लोग मंदिरों में भगवान कृष्ण की झांकियों के दर्शनों के लिए उमड़ पड़ते थे।

रियासत काल में भी जन्माष्टमी के दिन कोटा के गढ़ में भगवान श्री ब्रजनाथ जी के के दर्शन होते थे और उस समय नगर के सभी मंदिरों और हिंदू धर्मावलंबियों के घरों में जन्माष्टमी का जागरण और कीर्तन बड़े उत्साह के साथ आयोजित किया जाता था। कोटा रियासत की ओर से भगवान श्री ब्रजनाथ जी को 3 तोपों की सलामी दी जाती थी।

जन्माष्टमी के अगले दिन शहर के सभी मंदिरों पर सजाई गई झांकियों के देखने के लिए नगर की जनता बड़े पैमाने पर आती थी और पूरे शहर में एक उल्लास का माहौल होता था। सड़कों पर जन्माष्टमी की झांकियां देखने के लिए निकलने वाले लोगों का हुजूम नजर आता था।

स्वर्गीय डॉक्टर जगत नारायण की पुस्तक के अनुसार महाराव उम्मेद सिंह द्वितीय खुद भादवा बुध नवमी के दिन कोटा के 3 बड़े मंदिर श्री मथुरेश जी, श्री बड़ा महाप्रभु जी व छोटे मथुरेश जी के मंदिर भगवान के दर्शन करने,झांकियां देखने के लिए जाते थे। इस अवसर पर तीनों मंदिरों में ठाकुर जी के दर्शन के लिए खास तौर पर बनाए हुए चांदी के खिलौने भेंट किए जाते थे। मंदिर के कर्मचारियों को नगदी भेंट की जाती थी।

उस समय कोटा में जन्माष्टमी के अवसर पर 8 दरीखाने लगते थे और उनका उद्देश्य यह रहता था कि बुलाए जाने वाले सभी व्यक्ति यहां उपस्थित हो सके। इस अवसर पर हरि कीर्तन दर्शन एवं ठाकुर जी की सवारी निकलती थी । सारे नगर में अनुपम धार्मिक साजसज्जा होती थी और घर-घर, मंदिर-मंदिर में सजावट की जाती थी, झांकियां बनाई जाती थी जिन्हें देखने के लिए लोग आते थे।

ऐसी ही परंपराओं का निर्वहन आज भी किया जा रहा है। जन्माष्टमी के दिन कोटा शहर के अधिकांश मंदिरों को सजाया जाएगा। विभिन्न धार्मिक उत्सव का आयोजन होगा। मध्य रात्रि से लेकर देर रात तक लोग भगवान श्री कृष्ण की झांकी के दर्शन करने के लिए पहुंचेंगे और यह सिलसिला पूरे दिन जारी रहेगा।

कोटा में इसीलिए जन्माष्टमी के अगले दिन सार्वजनिक अवकाश की पुरानी परंपरा भी रही है। क्योंकि देर रात्रि से लेकर अगले दिन तक लोग भगवान कृष्ण की झांकियों के दर्शन के लिए मंदिरों में जाते हैं।