भाजपा को कोटा नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष बनाने के भी लाले पड़े, जानिए क्या है मामला

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-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। बहु प्रचलित कहावत कहावत-” सूत न कपास फिर भी जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा, पूरी तरह से चरितार्थ हो रही है भारतीय जनता पार्टी के कोटा नगर निगम उत्तर के नेता प्रतिपक्ष बनाने के मसले जहां भारतीय जनता पार्टी की स्थिति नाम मात्र की है लेकिन लगातार सत्ता सुख भोगती रही भारतीय जनता पार्टी को कोटा नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष बनाने के भी लाले पड़ गए।
कोटा में नगर निगम के गठन के बाद केवल एक बार डा. रत्ना जैन इस नगर निगम में कांग्रेस की महापौर रही है अन्यथा कोटा नगर निगम के गठन के बाद पहली बार श्रीमती सुमन श्रंगी के महपौर बनने के बाद से कोटा नगर निगम में लगातार भारतीय जनता पार्टी का ही वर्चस्व कायम रहा है और उसी एक अवसर को छोड़कर हर बार भारतीय जनता पार्टी ही इस निगम में काबिज होने में सफल रही है।

पिछले नगर निगम के चुनाव से पहले राज्य सरकार ने कोटा शहर के विस्तार को देखते हुये निगम को कोटा उत्तर और कोटा दक्षिण में तब्दील कर दिया था और भारतीय जनता पार्टी के लिए यह दुखद पहलू साबित हुआ कि पहली बार हुये दोनों ही नगर निगम के चुनावों में वह लाख कोशिश करने के बावजूद ना तो बहुमत हासिल कर सकी और कोटा नगर निगम दक्षिण में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच लगभग बराबर की कशमकश होने के बावजूद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और नगरीय एवं स्वास्थ्य शासन मंत्री शांति धारीवाल की कुशल रणनीति के चलते भारतीय जनता पार्टी न तो अपना महापौर और न ही उप महापौर बना सकी।

कांग्रेस दोनों ही पद हासिल करने में सफल रही।इधर कोटा नगर निगम (उत्तर) की तो बात करे तो 70 सदस्यों वाले इस नगर निगम में भारतीय जनता पार्टी के मात्र 12 पार्षद ही चुने गए हैं और तकरीबन दो साल तक किसी एक नाम पर सहमति नहीं बनने के बाद नेता प्रतिपक्ष के नाम पर चली लंबी जद्दोजहद के बीच प्रदेश नेतृत्व ने अपनी ओर से ही लव शर्मा को नेता प्रतिपक्ष घोषित कर दिया लेकिन इस नगर निगम में भारतीय जनता पार्टी के पार्षदों के बहुमत को प्रदेश नेतृत्व का यह फैसला कतई भी रास नहीं आ रहा है।

भारतीय जनता पार्टी को नियमानुसार 70 सदस्सीय कोटा नगर निगम उत्तर में कम से कम 7 पार्षदों का समर्थन होने की स्थिति में ही अपना नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने का अधिकार है लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने जिन लव शर्मा को अपना नेता प्रतिपक्ष घोषित किया है, उनके खिलाफ 12 सदस्यों वाले पार्षद दल में से 8 पार्षद खड़े हो गये है और निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़कर जीते 4 पार्षदों का भी समर्थन हासिल हासिल है।

इस हिसाब से विरोधी खेमे को बहुसंख्यक पार्षदों का बहुमत हासिल है और इसी गणितीय आंकड़े को मध्य मद्धेनजर रखते हुए इन विरोधी पार्षदों ने लव शर्मा को नकारते हुए अपनी ओर से नंदकिशोर मेवाड़ा को नेता प्रतिपक्ष घोषित कर दिया है और वह इस बात पर अड़े हुए हैं कि उन्हें नंदकिशोर मेवाड़ा के अतिरिक्त कोई और नेता प्रतिपक्ष केरूप में स्वीकार नहीं है और यदि प्रदेश नेतृत्व ने जिस तरह से एकतरफा फैसला करके लव शर्मा को नेता प्रतिपक्ष घोषित कर दिया है लेकिन उनके पक्ष में बहुमत नहीं होने के कारण उनको खारिज करके यदि नंदकिशोर मेवाड़ा को नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाया गया तो वह कोटा नगर निगम प्रशासन को लिखित में प्रस्ताव देकर भारतीय जनता पार्टी से अपनी असंबद्धता घोषित करवा लेंगे।

यानी समीकरण यह हुआ कि ऐसी सूरत में कोटा नगर निगम (उत्तर) में भारतीय जनता पार्टी के 12 में से मात्र 4 ही सम्बद्ध पार्षद बचेंगे तो ऐसे हालात में उनका नेता प्रतिपक्ष बने रहना संभव ही नहीं है। भारतीय जनता पार्टी के दो खेमों की लड़ाई की वजह से ही नेता प्रतिपक्ष के पद को लेकर यह सारा विवाद खड़ा हुआ है। जो पार्षद प्रदेश नेतृत्व की ओर से कथित रूप से घोषित किए गए नेता प्रतिपक्ष का विरोध कर रहे हैं, वह सभी कोटा उत्तर विधानसभा क्षेत्र से पूर्व में पार्टी के विधायक रह चुके प्रहलाद गुंजल के समर्थक हैं।

उन सभी का यह आरोप है कि पार्टी के प्रदेश नेतृत्व ने कोटा नगर निगम (उत्तर) में भारतीय जनता पार्टी की ओर से नेता प्रतिपक्ष घोषित करने से पहले यहां से निर्वाचित पार्टी के सभी पार्षदों से राय लेना तक जरूरी नहीं समझा। अगर यह आरोप सही है तो निशित रूप से प्रदेश नेतृत्व का ये फैसला गलत है क्योंकि

वर्तमान में कोटा उत्तर विधानसभा क्षेत्र में पूर्व विधायक। प्रहलाद गुंजल और उनके समर्थकों का वर्चस्व है और इस विधानसभा क्षेत्र से संबंधित कोटा नगर निगम (उत्तर) के नेता प्रतिपक्ष के बारे में यदि कोई फैसला करना था तो पार्टी लीड़रशिप को निश्चित रूप से पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल और उनके समर्थक पार्षदों की राय लेकर ही किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए था। उन्होंने किया हो, ऐसा लगता नहीं है। एेसे में पार्टी के फ़ैसले के खिलाफ हालात बन गए हैं और इसके लिए भी सीधे-सीधे रूप से पार्टी के प्रदेश नेतृत्व को दोषी ठहराया जा रहा है।

पिछले कोटा नगर निगम के चुनाव के बाद जब भारतीय जनता पार्टी अपना बोर्ड बनवाने में सफल हुई थी तो उस समय तो पार्टी ने महेश विजय को महापौर बनवा दिया था लेकिन उप महापौर के चयन के मसले पर इस पद पर प्रहलाद गुंजल खेमे की दावेदारी से विवाद उत्पन्न हो गया था और इसी का नतीजा यह निकला था कि भारतीय जनता पार्टी ने जब कोटा नगर निगम के उप महापौर के चुनाव के लिए श्रीमती सुनीता व्यास को अपना प्रत्याशी घोषित किया तो पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल के कट्टर समर्थक पार्षद बृजेश शर्मा नीटू भी पार्टी के फ़ैसले के खिलाफ उप महापौर के चुनाव में डट गये

यह दीगर बात है कि भारतीय जनता पार्टी तब जैसे-तैसे अपना उपमहापौर बनाने में सफल रही लेकिन इससे पार्टी की जरूर किरकिरी हुई लेकिन उस समय हुए घटनाक्रम से भी भारतीय जनता पार्टी ने इस बार भी सीख लेने की कोई कोशिश की हो, ऐसा लगता नहीं है क्योंकि कोटा नगर निगम (उत्तर) में अपना बोर्ड बनाने में विफल रहने के बाद जब नौबत विपक्ष में बैठने की हो तो नेता प्रतिपक्ष का चयन करने से पहले कम से कम इस विधानसभा क्षेत्र से पार्टी के विधायक रह चुके प्रहलाद गुंजल और उनके समर्थक पार्षदों से निश्चित रूप से राय ली ही जानी चाहिए थी।