बैंकों के NPA का फैसला अब RBI के हाथों में 

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नई दिल्ली। सरकार ने बैंकों के फंसे कर्ज (एनपीए) की समस्या को हल करने के लिए अमोघ अस्त्र छोड़ दिया है। सरकार ने फंसे कर्ज की पहचान करने और उनका हल निकालने का अधिकार बैंकों से लेकर रिजर्व बैंक को दे दिया है। अब रिजर्व बैंक एक उच्च स्तरीय समिति बनाएगा जो यह तय करेगा कि फंसे कर्ज के मामलों को किस तरह निपटाया जाए।

सरकार ने आरबीआई को यह अधिकार “बैंक नियमन (संशोधन), कानून, 2017” के जरिये दिया है जिसे बृहस्पतिवार देर रात राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने मंजूरी दी है। इस संशोधन के जरिये सरकार ने रिजर्व बैंक को यह अधिकार दिया है कि अगर कोई व्यक्ति या कंपनी कर्ज चुकाने में नाकाम रहता है या डिफॉल्ट होता है तो आरबीआई बैंकों को दिवालियेपन पर बने नए कानून के तहत कार्रवाई करने को कह सकता है।

 फंसे कर्ज के 60 मामले सरकार चिन्हित भी कर चुकी है, जिन पर आरबीआई को कदम उठाने हैं।अध्यादेश के जरिये सरकार ने “बैंक नियमन, कानून, 1949” की धारा 35ए के बाद दो नई धाराएं- 35एए और 35एबी जोड़ी हैं। धारा 35एए के तहत केंद्र सरकार आरबीआई को डिफॉल्टरों के दिवालियेपन की प्रक्रिया शुरू करने के लिए बैंकों को निर्देश देने के अधिकार का प्रावधान किया गया है।

इसी तरह धारा 35एबी के तहत रिजर्व बैंक एक समिति का गठित करेगा जो बैंकों को फंसे कर्ज के मामलों को सुलझाने के लिए परामर्श देगी। बैंक इस समिति को प्रस्तावित हल के विकल्प सौंप देंगी जिसके बाद यह समिति बेहतर विकल्प का चयन कर बैंकों को कदम उठाने का निर्देश देगी।

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने शुक्रवार को कहा कि फंसे कर्ज का हल तलाशने के लिए परिसंपत्तियों की बिक्री, अलाभकारी शाखाओं को बंद करने और कारोबार बढ़ाने की पहल जैसे उपाय शामिल हैं। जेटली ने कहा कि जब भी नॉर्थ ब्लॉक यानी वित्त मंत्रालय ने बिना शक्तियों के बैंकों के कामकाज में दखल दिया है, उससे बैंकों का भला नहीं हुआ है।

उल्लेखनीय है कि बैंकों के फंसे कर्ज की राशि बढ़कर उनके कुल लोन की 17 प्रतिशत हो गयी है जो कि देश की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सर्वाधिक है। ताजा आंकड़े बताते हैं कि दिसंबर, 2016 तक देश के बैंकों के पास 6.40 लाख करोड़ रुपये का सकल एनपीए हो चुका है।

बढ़ते एनपीए से सरकारी बैंकों की स्थिति बेहद खराब है। इन्हें घाटा हो रहा है और इनकी स्थिति सुधारने के लिए सरकारी खजाने से राशि दी जा रही है। यही नहीं बढ़ते एनपीए की वजह से ये बैंक कर्ज की दर भी सस्ता नहीं कर पा रहे हैं जिससे आम जनता के हित प्रभावित हो रहे हैं।